Martyrdom Forgotten: घोषणा का संवेदनहीन पालन 

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Martyrdom Forgotten: घोषणा का संवेदनहीन पालन 

 

जम्मू कश्मीर के हिंसक दौर में स्पेशल DG CRPF रहने के कारण तथा एक नागरिक के रूप में मुझे इस बात से पीड़ा हुई कि पुलवामा के एक अमर शहीद अश्विन काछी के परिवार को दिए गए वायदों को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पूरा नहीं किया गया। पुलवामा का यह शहीद मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव का रहने वाला था। शहादत का कोई मूल्य नहीं होता और देश किसी शहीद का ऋण चुका भी नहीं सकता है। फिर भी एक कृतज्ञ राष्ट्र के रूप में शहीदों के प्रति हमें अपने कर्तव्यों को पूरा करना नितान्त आवश्यक है। मध्य प्रदेश सरकार ने इस जवान के परिवार को एक करोड़ रुपये की धनराशि ओर एक मकान अवश्य दे दिया है, परंतु उस समय की गई घोषणा के अनुसार उसके नाम पर स्कूल और पार्क बनाए जाने की घोषणा को सरकार भूल चुकी है।

मीडिया में ख़बरों के आने के बाद जबलपुर उच्च न्यायालय ने स्वयं इसका संज्ञान लिया और चीफ़ जस्टिस रवि मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने सरकार से इसका उत्तर माँगा है। हाईकोर्ट ने कहा है कि वह शहीदों का अपमान नहीं होने देगा।

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14 फरवरी, 2019 की दोपहर में, जैश-ए-मुहम्मद के एक आतंकवादी ने श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर पुलवामा के एक गांव लेथपोरा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के काफिले में विस्फोटकों से भरी कार से टक्कर मार दी। इस घटना में 40 जवान शहीद हो गए थे जिनमें शहीद अश्विन काछी भी थे। मैंने अपने जम्मू कश्मीर के कार्यकाल में CRPF के जवानों को शहीद होते देखा है और शहादत के महत्व को भी अनुभव किया है। मेरे ऊपर भी हमले हुए परन्तु मैं बच गया। पुलवामा की घटना इसलिए भी मेरे लिए भावनापूर्ण है क्योंकि मैं लेथपोरा गाँव अनेक बार गया था। वहाँ पर CRPF के लिए भूमि लेनी थी। मध्य प्रदेश सरकार के मुखिया ने अश्विन काछी की शहादत के बाद भावुक हो कर घोषणाएँ तो कर दी,परंतु शासन तंत्र द्वारा इन को पूरा करने के लिए पूरे प्रयास नहीं किए गए। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। CRPF अत्यंत कठिन परिस्थितियों में देश की आंतरिक सुरक्षा करने के लिए एक कटिबद्ध केंद्रीय पुलिस बल है। इसके जवानों और अफ़सरों ने निरंतर देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है। हमें इस समर्पित बल के मनोबल को कभी भी नहीं गिरने देना चाहिए।

एक अन्य प्रकरण में इन्दौर से एक दुष्कर्म की पीड़ित छात्रा का समाचार भी मीडिया में आया। इस पीड़ित छात्रा के साथ घटित जघन्य अपराध के बाद मध्य प्रदेश सरकार के मुखिया द्वारा इसकी समस्त पढ़ाई का व्यय वहन करने का वादा किया गया था। छात्रा के स्कूल द्वारा सरकार से फ़ीस माँगने पर यह मामला सार्वजनिक रूप से उजागर हुआ। इसमें भी जबलपुर हाईकोर्ट ने स्वयं हस्तक्षेप किया और संबंधित अधिकारियों को जवाब दावा प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया। परंतु चार पेशियों में भी कोई जवाब न आने पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने, जिसमें मुख्य न्यायाधीश भी है, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा तथा कलेक्टर इंदौर प्रत्येक पर 25 हज़ार रुपये की कॉस्ट (अर्थदंड ) लगायी है जो उन्हें अपनी वेतन से देनी होगी। संभवतः शासन स्तर पर इस संबंध में फाइलों पर नोटशीट चल रही होंगी, परंतु उस पर समय से निर्णय नहीं हो पा रहा होगा। समय पर सकारात्मक और निर्णयात्मक टीप लिखने से अधिकारी बचने का प्रयास करते हैं। ऐसे संवेदनशील विषयों में शासन तंत्र को निर्णायक और संवेदनशील भूमिका में होना चाहिए। आशा की जानी चाहिए कि इस दुर्भाग्यशाली छात्रा की पूरी पढ़ाई का व्यय अब सरकार बिना किसी रुकावट के करती रहेगी

सरकारों को अपने द्वारा स्वयं किए गए वायदों को पूरा करने के लिए मीडिया और न्यायालय की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। सरकारों को अपनी संवेदनशीलता स्वयं अक्षुण्ण बनाए रखनी चाहिए।