
‘नूरजहां’ और ‘लता’ की आवाजों की सौगात देने वाले ‘मास्टरजी’…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
आज हम संगीत की दुनिया के मास्टरजी यानी प्रसिद्ध संगीतकार गुलाम हैदर की बात कर रहे हैं। मात्र 45 वर्ष की उम्र में गुलाम हैदर जाने-माने संगीतकार के रूप में 9 नवम्बर, 1953 को इस दुनिया से विदा हुए थे, जिन्होंने भारत में और आजादी के बाद पाकिस्तान में काम किया। उन्होंने पंजाबी संगीत के कगार और लय के साथ लोकप्रिय रागों को मिलाकर फिल्मी गीतों के चेहरे को बदल दिया। मास्टर गुलाम हैदर को ये सम्मान हासिल है कि उन्होंने उपमहाद्वीप के संगीत को ‘मलिका-ए-तरन्नुम’ नूरजहां और लता मंगेशकर जैसी सुरीली आवाजों का तोहफा दिया। इतना ही नहीं बल्कि मास्टर ग़ुलाम हैदर ने ही 12 साल की उम्र में लोगों से शमशाद बेगम का परिचय कराया, जो बाद में अविभाजित भारत की पहली प्रसिद्ध फिल्म गायिका बनीं। मास्टर गुलाम हैदर ने फिल्मी गीत के लिए साज और आवाज का तालमेल बिठाया। दक्षिण एशिया का फिल्मी संगीत आज भी उसी रास्ते पर चल रहा है, जो मास्टर जी और उनके बाद उनके कुछ साथियों ने शुरू किया था।
गुलाम हैदर का जन्म 1908 में सिंध के हैदराबाद शहर में हुआ। उन्हें बचपन से ही संगीत में रुचि थी, लेकिन उन्होंने दांतों की डॉक्टरी की पढाई की और अपना डेंटल क्लिनिक भी शुरू किया। फिर एक दिन ऐसा हुआ कि अपने समय के मशहूर फिल्म निर्माता और पंचोली स्टूडियो के मालिक सेठ दिलसुख पंचोली उनके पास दांत के इलाज के लिए आए। बातचीत के दौरान सेठ पंचोली ने कहा कि उन्हें अपनी फिल्म के लिए एक म्यूजिक डायरेक्टर की तलाश है। डॉक्टर गुलाम हैदर ने उसी समय क्लिनिक में ही हारमोनियम खोला और सेठ पंचोली को कई धुनें सुनाई। यहीं से मास्टर जी का संगीत करियर शुरू हुआ और उन्हें पंचोली स्टूडियो में संगीत विभाग का प्रमुख बना दिया गया।
चूंकि शमशाद बेगम फिल्मी क्षेत्र की पहली प्लेबैक सिंगर थीं, इसलिए ही नूरजहां और लता मंगेशकर सहित उनके बाद आने वाली गायिकाओं ने शमशाद बेगम की शैली का उपयोग करते हुए गायकी के अपने अनोखे अंदाज की बुनियाद रखी।
मास्टर ग़ुलाम हैदर ने करीब आठ दशक पहले लता मंगेशकर की क्षमताओं को पहचाना था, जब वो कमर्शियल बाजार में एक ‘कोरस गर्ल’ थीं। बीबीसी उर्दू से बात करते हुए लता मंगेशकर को ये बातें बिलकुल ऐसे याद थीं, जैसे कल की ही बात हो। उन्होंने कहा था, ‘ये उन दिनों की बात है, जब मुंबई में फिल्म ‘शहीद’ की तैयारियां चल रही थीं। मास्टर गुलाम हैदर इसके म्यूजिक डायरेक्टर थे। ये फिल्म उस समय की जानी-मानी फिल्म कंपनी फिल्मिस्तान के बैनर तले बन रही थी। इसके मालिक शशिधर मुखर्जी थे, जिन्होंने मेरी आवाज ये कहकर खारिज कर दिया कि आवाज बहुत बारीक और चुभती हुई है, जो दर्शकों को पसंद नहीं आएगी।’ शशिधर मुखर्जी फिल्म उद्योग में एक प्रसिद्ध बंगाली परिवार के मुखिया थे, जिनकी पोती बॉलीवुड अभिनेत्री रानी मुखर्जी हैं।
लता मंगेशकर ने बताया था कि वो उस समय 18 साल की थीं और चार-पांच साल से कोरस में गाने के साथ-साथ मराठी फिल्मों में छोटे-छोटे रोल भी कर रही थीं। उनका कहना था- ‘मुझे कभी हीरो की छोटी बहन का रोल तो कभी हीरोइन की सहेली का रोल मिल जाता, लेकिन मुझे एक्टिंग करना पसंद नहीं था। मैं गाना चाहती थी, लेकिन कोई मौका नहीं दे रहा था। उन्हीं दिनों ऐसा हुआ कि पठान नाम का एक भला मानस जो स्टूडियो में जूनियर आर्टिस्ट सप्लाई करता था, मुझे मास्टर गुलाम हैदर साहब के पास ले गया। उन्होंने मेरा ऑडिशन लिया और मुझे पास कर दिया।’ लताजी ने बताया था, ‘मेरे ऑडिशन से मास्टर साहब बहुत खुश हुए। उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं तुम्हें प्रोमोट करूंगा। फिर मास्टर साहब ने मुखर्जी को राजी करने की बहुत कोशिश की और ये भी कहा कि मेरी गारंटी है लेकिन उन्होंने मना कर दिया।’
लता जी के अनुसार- ‘जब मास्टर साहब ने शशिधर का फैसला सुना तो वे अपने आप को रोक नहीं पाए। लेकिन उन्हें ये कहा कि मुखर्जी साहब वैसे तो आपको अपनी राय बनाने का पूरा हक है पर मेरे शब्द लिख लें, एक दिन आएगा कि प्रोड्यूसर, लता के दरवाजे पर लाइन लगाए खड़े होंगे।’ लता जी के अनुसार, इतना कहकर मास्टर गुलाम हैदर ने फिल्मिस्तान के कार्यालय में शशिधर को अपना इस्तीफा सौंप दिया और उसी समय मेरे साथ बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो की ओर चल पड़े। इसके बाद शशिधर को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और ‘फिल्मिस्तान’ के बैनर तले उन्होंने ‘अनारकली’ और ‘नागिन’ समेत अपनी सभी फिल्मों के गाने लता मंगेशकर की आवाज़ में रिकॉर्ड किए। मास्टर गुलाम हैदर के बेटे परवेज हैदर ने बीबीसी को बताया था कि वो साल 1970 में लता मंगेशकर के निमंत्रण पर अपनी मां और भाई के साथ मुंबई गए थे, जहां लता जी मेरी मां को अपनी मां के साथ बिठातीं और खुद उनके चरणों में बैठा करती थीं।
लाहौर के बाद मास्टर गुलाम हैदर ने कलकत्ता और मुंबई के प्रमुख फिल्म इंडस्ट्री में प्लेबैक संगीत के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई। इसके लिए उन्हें अपने समय का ‘महान संगीतकार’ स्वीकार किया गया। मास्टर जी से पहले, उस्ताद झंडे अली खान को अविभाजित भारत में प्लेबैक संगीत का पहला प्रामाणिक और प्रसिद्ध संगीतकार माना जाता है। उस्ताद झंडे अली खान प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद के उस्ताद थे। ये वही नौशाद हैं, जिन्हें मास्टर गुलाम हैदर के बाद महान संगीतकार का सम्मान मिला। वहीं पाकिस्तान में ख्वाजा खुर्शीद अनवर को उनके बराबर कहते हुए पाकिस्तान के महान संगीतकार की उपाधि दी गई।
मास्टर गुलाम हैदर अपने समय के सबसे अधिक फीस लेने वाले संगीतकार भी थे। साल 1945 में फिल्म निर्माता और डायरेक्टर महबूब की फिल्म ‘हुमायूं’ के लिए उन्हें उस वक्त एक लाख रुपए मिले, जो कि एक रिकॉर्ड है। ये वो दौर था जब एक मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर की फीस दस हजार से ज्यादा नहीं होती थी। उनसे पहले, म्यूजिक डायरेक्टर के लिए आमतौर पर ‘पीटी मास्टर’ शब्द का इस्तेमाल होता था। लेकिन मास्टर गुलाम हैदर का नाम अविभाजित भारत के फिल्मों के पोस्टर पर म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में लिखा गया।
साल 1953 में गुलनार का प्रदर्शन किया गया और उसी साल केवल 45 वर्ष की आयु में मास्टर साहब का निधन हो गया। लता मंगेशकर ने बताया था कि उन दिनों जब मास्टर ग़ुलाम हैदर बीमार थे, तो वो रोज़ाना नूरजहां को नियमित रूप से फ़ोन करके मास्टर जी के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेती थीं। नूरजहां के ज़रिए मुझे मास्टर ग़ुलाम हैदर के स्वास्थ्य की जानकारी मिलती थी। इससे पहले मैं और नूरजहां फ़ोन पर ही अगली बातचीत का दिन तय कर लेते थे। नूरजहां पाकिस्तान के महान संगीतकारों और गायकों को भी अपने यहां ले आतीं और उनसे बात होती रहती थी। उन्हीं दिनों पता चला कि मास्टर ग़ुलाम हैदर को कैंसर हो गया। मैंने नूरजहां से कहा कि एक बार मास्टर जी से मेरी बात कराएं। जब वो नूरजहां के घर आए तो मैंने मास्टर जी से विनती की कि एक बार आप भारत आ जाएं, ताकि हम आपकी बीमारी के बारे में ‘सेकंड ओपिनियन’ ले सकें लेकिन वो नहीं आए। और 9 नवंबर, 1953 को मास्टर गुलाम हैदर का निधन हो गया। तो दांतों का वह डॉक्टर भारत और पाकिस्तान को संगीतमय बनाकर और सबके दिलों को छूने वाली आवाजें देकर इस दुनिया से 9 नवंबर को चला गया… लेकिन जब तक नूरजहां और लता की आवाजें संगीत प्रेमियों की जुबान पर आती रहेंगी तब तक मास्टर जी भी जिंदा रहेंगे…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





