साँच कहै ता! हम पाखंडियों को कभी क्षमा नहीं करना Matu Narmade !
नर्मदा मैय्या (Matu Narmade) के प्रति प्रदेश की सरकार का अनुराग एक बार फिर उमड़ पड़ा है। मध्य प्रदेश की जीवन रेखा यानी लाइफ लाइन कही जाने वाली मां नर्मदा की सेहत सुधारने के लिए नए नुस्खे को इस बार ‘नर्मदा (Matu Narmade) पुनर्जीवन कार्यक्रम’ नाम दिया गया है।
इसकी रूपरेखा तय करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र सिंह यादव की अगुवाई में 24 अप्रैल को अमरकंटक में जुटे बड़े-बड़े अधिकारी और विषय विशेषज्ञों ने मंथन कर कई सारी महत्वपूर्ण घोषणाएं की।
तय किया कि नर्मदा मैय्या (Matu Narmade) के उद्गम स्थल में अब कोई नया निर्माण नहीं होगा। कोई नया आश्रम नहीं बनेगा। होटल-रेस्त्रां भी नीचे ही बनाए जाएंगे। यह निर्णय कैबिनेट से भी पास हो चुका है।
नर्मदा मैय्या (Matu Narmade) चुनाव के एकाध साल पहले याद आती हैं, घोषणाएं होती हैं, इश्तहार छपते हैं, संकल्प लिए जाते हैं फिर चुनाव परिणाम के बाद अगले चुनाव आने तक भुला दिए जाते हैं।
2017 में फरवरी से लेकर मई तक समूची सरकार नर्मदा मैय्या की आराधना में जुटी थी।
शंकराचार्यगण, साधू-संत-महंतगण बुलाए गए। इनसे ध्यान नहीं खिंच पाया तो बालीवुड से हीरो-हीरोइन बुलाए गए। बड़ा प्रपंच रचा गया।
15 मई 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमरकंटक पधारे। नर्मदे-सर्वदे (Matu Narmade) का नारा गुँजाया। कुछ संकल्प दिलवाकर चले गए।
अब 2022 आ गया अगले साल चुनाव है तो फिर वैसे ही प्रपंच का दोहराव।
इन चार सालों में अमरकंटक प्रक्षेत्र में यूकेलिप्टस और पाइन के कृत्रित जंगल वैसे ही लहलहा रहे हैं जिनकी जगह मुख्यमंत्री ने नैसर्गिक वन लगाने की बात की थी।
एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) बनकर तैयार नहीं हुए।
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15अप्रैल 2017 को विधानसभा में माँ नर्मदा (Matu Narmade) को जीवित इकाई घोषित करने के लिए कानून बनाने की बात की गई थी।
यह संकल्प भी कागजों में गुम हो गया कानून नहीं बन पाया।
कानून बन जाता तो माँ नर्मदा (Matu Narmade) की कोख से अस्थि मज्जा की भाँति रेत निकालने वालों पर 302 या 307 का मुकदमा दर्ज करना पड़ता।
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शिवराज ने कहा था-बेटा होने के नाते हमारा फर्ज बनता है
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने 25 अप्रैल 2017 को माँ नर्मदा (Matu Narmade) नदी को जीवित इकाई मानने की घोषणा की थी। इसे अमल में लाने के लिए बकायदा 03 मई 2017 को विधानसभा से शासकीय संकल्प पारित हुआ।
तब विधानसभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि मां नर्मदा (Matu Narmade) को जीवित इकाई का दर्जा इसलिए दिया जा रहा है, क्योंकि मां के प्रति बेटा और बेटी का भी फर्ज होता है। हम आज हैं, कल नहीं रहेंगे।
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हम ऐसा प्रबंध कानूनी रूप से करना चाहते हैं कि जीवित होने पर किसी इंसान को नुकसान पहुंचाने पर जो सजा मिलती है। वो माँ नर्मदा (Matu Narmade) नदी के साथ करने वालों को भी मिले।
उन्होंने कहा कि हम नर्मदा संरक्षण का ऐसा प्रयास करेंगे जो दुनिया में मिसाल बनेगा। इसके बाद सरकार ने अपेक्षित नियम-प्रक्रिया बनाने की जिम्मेदारी मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड को सौंपी थी।
लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद दिसंबर 2018 में प्रदेश में सरकार बदल गई और इसके बाद किसी ने विधानसभा से पारित संकल्प को अंजाम तक पहुंचाना मुनासिब नहीं समझा।
◆ आदि शंकराचार्य ने किया था मंत्राभिषेक
आमतौर पर अमरकंटक में जब भी ‘माँ नर्मदा (Matu Narmade) पुनर्जीवन कार्यक्रम’ जैसे सियासी जलसे होते हैं पूरा क्षेत्र नमामि देवि माँ नर्मदे (Matu Narmade) के इश्तहारों, बैनरों से पट जाता है।
शंकराचार्य विरचित नर्मदाष्टक की पंक्ति..त्वदीय पाद पंकजम् नमामि देवि नर्मदे ..अब विज्ञापनों की अमिट पंच लाईन बन चुकी है। शंकराचार्य यहां आए थे ऐसा कई ग्रंथों में उल्लेख मिलता है।
मंडन मिश्र जिनकी पत्नी भारती से उनका शास्त्रार्थ हुआ था वे माँ नर्मदा (Matu Narmade) तट के ही वासी थे। कुछ विद्वान मंडला को मंडन मिश्र के साथ जोड़ते हैं।
सांख्य योग के प्रवर्तक भगवान कपिल और दुर्गा शप्तशती के रचयिता महर्षि मार्कण्येय भी माँ नर्मदा (Matu Narmade) के आराधक रहे हैं। अमरकंटक के आसपास ही उनके आश्रमों का उल्लेख मिलता है।
कालिदास के मेघदूत का यक्ष अमरकंटक के शिखरों पर विचरने वाले मेघों के माध्यम से अपनी प्रियतमा को संदेश प्रेषित करता था।
◆कबीर और नानक के सत्संग का साक्षी
इस युग के दो महापुरुष कबीर और नानक ने अमरकंटक को ही अपने मिलनस्थल के रूप में चुना। वहीं मिले थे जहां डिंडोरी-बिलासपुर तिराहे के पास, जहां कबीर चौरा है।
अमरकंटक का इतिहास जहां धर्म और अध्यात्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है वहीं विज्ञान के अध्येता भी यहां आकर प्रकृति के रहस्यों का शोध व अध्ययन करते रहे हैं।
पुस्तकों में वर्णित वह अमरकंटक कहां है. अब यही खोज का विषय है क्योंकि यहां शीतल, मंद, सुगंध की त्रिविध बयार अब नहीं बहती।
◆विन्ध्यप्रदेश का हिल स्टेशन
पहली बार मैं कोई पैतीस साल पहले गया था, मई के आखिरी हफ्ते। सुबह स्वेटर वाली लगी थी। रात में कंबल ओढ़ना पड़ा था। यहां के रेस्ट हाउस के रखवाले खानसामा कूलर-एसी का नाम ही नहीं जानते थे।
पर अब तो यहां वैसी ही गर्मी होने लगी है जैसे हमारे अपने शहर में। सालों पहले यहां सर्दियों में बर्फवारी हुआ करती थी शिमला की तरह। अब जैसे अनूपपुर की ठंड वैसे ही उसके कस्बे अमरकंटक की।
यहां अब पर्यटन विभाग व निजी व्यवसाइयों के रिसोर्ट, होटल, लॉज तो हैं ही, पांच सितारा आश्रमों की श्रृंखला है जहां भगतों के लिए हैसियत मुताबिक एसी, देसी सभी तरह के सुईट हैं।
◆त्रिविध बयार अब अतीत की बातें
पैतीस साल पहले तक अमरकंटक में साल के ऐसे घने जंगल थे कि सूरज की किरणे आर-पार नहीं जा सकती थीं। अब साल के वृक्षों का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। आश्रम जंगलों में घुस रहे हैं।
अमरकंटक अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता रहा है। पर उसकी सीमा में घुसते ही यूकेलिप्टस और पाईन के बदसूरत वन हैं। जमीन से सफेदा उड़ता है।
ये प्राकृतिक तो नहीं, जाहिर है नैसर्गिक वनों को उजाड़कर इन्हें रोपा गया होगा। ताकि इसी जिले में स्थित अमलई वाले बड़े सेठजी की कागज फैक्ट्री(ओपीएम) का पेट भरा जा सके।
(चार वर्ष पूर्व शिवराज जी ने भुज उठाय प्रण कीन्ह..कि यूकेलिप्टस की जगह नैसर्गिक वन लगाए जाएंगे.. लेकिन इस बार भी जब वे अमरकंटक पहुँचे तो यूकेलिप्टस के सरसराते पेड़ों ने ही उनका स्वागत किया)
◆उद्गम से कुछ ही दूर गटर सा नजारा
मां नर्मदा (Matu Narmade) के कुण्ड में बने मंदिर आजकल कुछ ज्यादा ही जगमग रहते हैं।
आश्रमों को जगमगाने की होड़ सी मची है…पर ये क्या..उद्गम कुण्ड से पांच सौ मीटर आगे चलें तो नर्मदा मैय्या (Matu Narmade) से कई गटर भैय्या मिलकर माँ नर्मदा (Matu Narmade) को गटर्दा बनाते हैं।
आइए देखिए..चेक डेम के ठीक नीचे एक मरघट भी है।
यह चार वर्ष पूर्व 15 मई 2017 को उस दिन भी सलामत था, जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रदेश में आयोजित माँ नर्मदा (Matu Narmade) परिक्रमा यात्रा का समापन करने पहुंचे थे और चिता की राख भभूत बनकर उड़ रही थी। मैं उसका साक्षी था। वही हाल आज भी है।
◆नदी के बहाव क्षेत्र में खड़ा है बोर्डिंग स्कूल
कबीर चौरा जाने वाली सड़क पर बने पुल से पूरब की ओर नजर डाली तो एक समूचा आश्रम ही नदी की धार में दिखा। बाद में पता चला कि यह बोर्डिंग स्कूल है,यहां छात्र रहते और पढ़ते हैं।
आश्रम के महंत जी ऊँची पहुंच वाले हैं। किसी की भी सरकार रहे उसे महंतजी के भगत ही चलाते हैं। जाहिर है निस्तार भी यहीं करते होंगे।
या तो शौचालय का आउटलेट होगा या सोख्ता के जरिये मलजल नर्मदा मैय्या (Matu Narmade) की धार में मिलता होगा। अरे भाई मिलता होगा नहीं.. मिलता है जिसे आप खुली आँख देख सकते हैं।
◆बीचधार में झुग्गियां, नदी किनारे शौच
अब बड़े मठाधीश जब कब्जा करें तो झुग्गियों का हक बनता है।
सो धार और कैचमेंट में भी झुग्गी बस्ती दिख गयी..और उधर संझबाती चल रही थी, इधर झुंड के झुंड नदी के तीरे फारिग हो रहे थे। नदी के पानी से शौच भी कर रहे थे।
अब अमरकंटक में मोक्षार्थियों की होड़ सी लगी है। बड़े भगत लोग जमीन के टुकडे़ खोज रहे हैं।
आसान तरीका है आश्रम और मंदिर का। एक मंदिर ऐसा भी बनकर लोकार्पित होने को तैयार बैठा है जिसके बारे में एक साइनबोर्ड यह दावा करता है कि इसकी मूर्ति व मंदिर अपने आपमें एक विश्वरिकार्ड बनाएगी।
दावा है कि साल में दस लाख लोग आया करेंगे इन्हें देखने। पर ये कहां रहेंगे, कहाँ शौचनिवृत्त करेंगे इसका समाधान यहां की नगरपालिका पूछने पर भी नहीं बता रही है।
◆ आश्रम के नाम पर कब्जे-दर-कब्जे
साधूबाबाओं को सीधे..सीधे जगह नहीं मिली तो ..सबै भूमि गोपाल की..कब्जा कर लो। आगे..धरम की जय हो अधरम का नाश हो प्राणियों में सद्भावना हो, भले ही नर्मदा मैय्या का बेड़ा गर्क हो।
वेद पुराणों में पढ़ते आए कि नर्मदा मैय्या (Matu Narmade) साक्षात् देवी हैं। हैं भी अंनतरमन यही कहता है।
तो फिर जब मां साक्षात् ही हैं तो मठ मंदिरों, आश्रमों की क्या जरूरत। मां नर्मदा (Matu Narmade) को प्रवाह के लिए हिमालय के बर्फ की जरूरत कहां..। वे मैकलसुता हैं।
इन्हीं की कोख से जन्मी हैं। गर्भ से ही जल लेती हैं और जड़ी बूटियों से अभिषिक्त करके अमृततुल्य बना देती हैं।
◆ बस्ती का मल-जल सीधे उद्गम तक
अमरकंटक की समूची बस्ती उद्गम की परिधि में बसी है। यहां का मल जल या तो सीधे प्रवाह में जाता है या फिर धरती में जज्ब होकर अंदर ही अंदर झिरन से जुड़ जाता है।
जरूरी है की समूची अमरकंटक बस्ती को कहीं और बसा दें। मठ और आश्रमों को भी। उद्गम से कम से कम दस किमी की परिधि जीरो कान्सट्रक्शन जोन बनाकर हेरिटेज घोषित कर संरक्षित करें।
नमामि देवि माँ नर्मदे (Matu Narmade) सुनने में पवित्र अभियान है, वस्तुतः यह महज एक वोट कबाड़ू पराक्रम है। रेत की खदानें वैसे ही चल रही हैं।
माँ नर्मदा (Matu Narmade) का उद्गम स्लम से घिरा है उस पर पंद्रह हजार से ज्यादा की आबादी का बोझ है।माँ को कारोबारी ठेकेदारों से मुक्त कराएं ही, इन्हें उन धुरंधरों से भी मुक्त कराएं जो मां के ह्रदय में पाखंड का चिमटा गाड़े भावनाओं का धंधा कर रहे हैं।
◆संकल्प यथार्थ के धरातल पर उतरे
यह मुक्ति का अभियान अमरकंटक से ही शुरू होना चाहिए … मां नर्मदा (Matu Narmade) का उद्गम रहे, माई की बगिया रहे, वही प्राकृतिक सुषमा लौटे, फिर त्रिबिध बयार बहे, कालिदास का यक्ष पुनः अपनी प्रियतमा तक मेघदूतों के जरिए प्रणय निवेदन प्रेषित करे..। मां के कुशल क्षेम से ही आर्यावर्ते रेवाखंडे का कल्याण है।
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