Milk Price Issue:दूध की चिंता,शराब के दाम पर कोई बात नहीं होती

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Milk Price Issue:दूध की चिंता,शराब के दाम पर कोई बात नहीं होती 

रमण रावल

पिछले करीब 45 वर्ष के पत्रकारिता जीवन में मैंने कमोबेश हर एक-दो वर्ष में दूध का दाम बढ़ाने को लेकर उपभोक्ता व उसके संगठनों की ओर से विरोध के स्वर सुने हैं। प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग करना,दाम कम करने का दबाव बनाना, दूध को बच्चों का अनमोल पेय बताना,उपभोक्ता संरक्षण की दुहाई देने जैसी बातें अखबार,टीवी की मुख्य खबरों का हिस्सा भी बनती है। अभी तक मैं यह नहीं समझ पाया कि एक वर्ष में प्रति लीटर एक-दो रुपये दाम बढ़ने पर इतनी हाय-तौबा क्यों मचाई जाती है। जबकि इससे अधिक जीवनपयोगी,जीवन रक्षक और अनेक विलासितापूर्ण वस्तुओं के ,बेतहाशा दाम बढने पर भी राई-रत्ती भर हलचल नहीं होती। इनमें शराब,सिगरेट,पान,पान मसाला पाउच,दवायें,होटलों का खाना जैसी ढेरों चीजें हैं,जिनके मनमाने दाम आप खुशी-खुशी देते हैं। इतना विसंगतिपूर्ण आचरण कमाल का है।

चलिये पहले बात दूध की ही कर लेते हैं। यह सौ प्रतिशत सही है कि अब सारा दूध शुद्ध नहीं मिलता। पानी की पर्याप्त मिलावट होती ही है। यह सिलसिला प्रारंभ होता है दूध उत्पादक से, जो पहला पानी मिलाता है। फिर कोठियों में परिवहन करने वाला,उसके बाद शहर का दुकानदार और अंत में बंदी बांटने वाला। इसमें यदि एकाध कड़ी कम भी कर दें तो एक लीटर में 100 मिलीलीटर तक पानी मिल सकता है। याने 54 रुपये का दूध 60 रुपये लीटर मिलता है। ऐसा 60 प्रतिशत दूध के साथ हो सकता है।इसमें थोड़ा कम-ज्यादा हो सकता है। इसके बाद भी आपके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ तो फिर भी नहीं हो रही।

अब शराब की बात करते हैं। यदि एक औसत व्हिस्की को लें तो 180 मि.ली(क्वार्टर) 370 रुपये में,375 मि.लि(हॉफ) 700 रुपये में और 750 मि.ली(फुल) 1500 रुपये में मिलती है । इसी तरह से बीयर कांच की बोतल में 650 मि.ली. 300 रुपये में व कंटेनर 500 मि. ली. 200 रुपये में मिलता है। ये ताजा दाम हैं। शराब के दाम में प्रतिवर्ष 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है, क्योंकि राज्य सरकार ही ठेके की दर इस हिसाब से बढ़ाती ही है, जिसकी घोषणा भी हो ही चुकी है। तो जो शराब स्वास्थ्य और परिवार के बजट का नुकसान करती है, वह हम अधिक रकम देकर बिना हल्ला मचाये, निर्धारित,लेकिन ऊंचे दाम पर खुशी-खुशी खरीद लेते हैं, लेकिन दो-तीन साल में एक बार दूध के दाम 2-3 रुपये लीटर भी बढ़े तो आसमान सिर पर उठा लेते हैं। तब हमें ध्यान नहीं आता कि एक लीटर शराब से कितने लीटर दूध या घी-मक्खन आ जायेगा। तब हमें बच्चों के स्वास्थ्य का,घर के बजट का ख्याल नहीं आता। वाह रे, दोगलापन।

अब पान व मसाले के पाउच की बात करते हैं। इंदौर में इस समय 20,25 व 30 रुपये तक में पान मिल रहा है। उसमें बमुश्किल 5 ग्राम सारे मसाले (गुलकंद,सौंफ,सुपारी,पान बहार,गुलाब कतरी,पीपरमेंट) रहते हैं और पान पत्ता 5 से 10 रुपये का रहता है। 5 रुपये सामग्री का दाम तो अधिकतम लागत हुई 15 रुपये,उच्च गुणवत्ता वाला।याने औसत 40 प्रतिशत मुनाफा,फिर भी उसका हम भरपूर उपयोग कर रहे हैं। ठेले पर कट चाय 10 रुपये व फुल चाय 15 रुपये मिलती है, जिसकी लागत 3 से 5 रुपये तक होती है।जबकि उसे दुकान का किराया नहीं लग रहा और एकाध नौकर से अधिक का खर्च भी नहीं। यह सब अपने उपभोक्ता अधिकारों की जानकारी के साथ कर रहे हैं, लेकिन तकलीफ हमें केवल दूध के दाम 2-3 रुपये लीटर बढ़ाने पर है।

कभी गांवों में जाकर देखिये कि दूध उत्पादक कितनी तकलीफें झेलता है। पहले तो आप यह जान लें कि दो,चार पशुधन रखना तो सोने से गढ़ावन महंगी वाला सौदा है। दूध का कारोबार करने के लिये 10 से अधिक गाय-भैंस जरूरी है। इन्हें बांधने के लिये करीब 500 वर्गफीट जगह चाहिये। इनके मल-मूत्र की निकासी की व्यवस्था करना, ताकि आपको हायजीन स्थितियों वाला दूध मिले। उसके लिये पानी से सफाई। यदि कंडे,गोबर खाद भी बनाना हो तो उसके लिये जगह लगेगी। साल-छह महीने उसके प्रोसेस होने का इंतजार करना। मवेशी की समय-समय पर स्वास्थ्य जांच। उसकी औषधि व पैष्टिक आहार की व्यवस्था। उन्हें चराने ले जाना । रात-बिरात उठकर उनकी तकलीफ,आहट पर खबर लेना । बारिश,धूप से बचाने की व्यवस्था। उन्हें तालाब,पोखर,नदी में नहलाना या उनके बाड़े में पाइप से नहलाना। एक बार दूध बंद होने पर औसत दो माह तक उसे चारा-पशु आहार खिलाना। बच्चे होने पर दूध योग्य होने तक उसकी परवरिश और नर शीशु हुआ तो जीवन भर उसकी देखभाल । इसकी तो कोई कीमत दूध उत्पादक लगाता ही नहीं है। अपनी मेहनत का मोल तो वह आपसे ले ही नहीं रहा। फिर भी आप हैं कि 2-3 रुपये लीटर दाम बढ़ने पर उपभोक्ता अधिकारों के लिये चिल्ल-पो मचा देते हैं।

आज भी किसान या पशुपालक को उसकी लागत व मेहतन का उचित दाम अक्सर नहीं मिल पाता। आप विलासितापूर्ण जीवन के लिये आंखें मूंदकर खर्च कर रहे हैं तो करते रहिये, लेकिन जीवनपयोगी वस्तुओं के लिये उचित दाम केवल यह मानकर देते चलिये कि वह आपको बेहद उपयोगी सेवा दे रहा है।