
मंत्री प्रहलाद पटेल की पुस्तक ‘परिक्रमा कृपा सार’, हर शब्द मानों नर्मदा परिक्रमा का साक्षी रहा
पंडित छोटू शास्त्री की रिपोर्ट
*नर्मदा के पथिक प्रहलाद सिंह पटेल ने अपनी परिक्रमा को जिस पुस्तक ‘परिक्रमा कृपा सार’ के रूप में आकार दिया, उसका हर शब्द मानो उनका सारथी प्रतीत हो रहा है। पुस्तक के महज कुछ पन्ने नही वरन् जीवन दर्शन को उकेरने का एक पावन प्रसंग है। इस पुस्तक पढने के बाद यह कहने मे कोई अतिशयोक्ति नही कि इसका हर प्रसंग-हर वाक्य मानों अध्यात्म और भक्ति का सजीव और सामयिक विश्लेषण है।*
रविवार को इंदौर के ब्रिलियंट कन्वेंशन हॉल में पंचायती एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल की पुस्तक परिक्रमा कृपा सार का विमोचन संघ प्रमुख मोहन भागवत के हाथों हुआ। इस पुस्तक के विमोचन के दौरान आई भीड़ को देखकर लगा कि मानो इन्हें नर्मदा मैया ने बुलाया हो। ‘कृपा सार परिक्रमा’ वाकई नर्मदा की अपार कृपा ही दिखाई देती है।
‘नर्मदे हर’ और ‘ॐ श्री माँ’ की प्रेरणा और अनुकंपा तथा निर्विकार पथा के प्रणेता आराध्या श्री श्री बाबाश्री जी की कृपा से शब्दों और भावों की आकार और साकार सास्वरूप है ‘परिक्रमा कृपा सार’ पुस्तक के महज कुछ पन्ने नही वरन् जीवन दर्शन को उकेरने का एक पावन प्रसंग है। इस पुस्तक पढने के बाद यह कहने मे कोई अतिशयोक्ति नही कि इसका हर प्रसंग-हर वाक्य मानों अध्यात्म और भक्ति का सजीव और सामयिक विश्लेषण है।
अद्भुत पथिक प्रहलाद पटेल
माँ नर्मदा मैया की कृपा और गुरुदेव के आशीष से प्रहलाद पटेल ने माँ नर्मदा की 2 बार परिक्रमा कर सार्वजनिक जीवन में यह जता दिया कि ‘जहां चाह है वहा राह है’ परिक्रमा करते-करते मानो माँ नर्मदा उनकी राह प्रशस्त करती रही। हृदय भक्ति भाव से परिपूर्ण था तो संकल्पित था परिक्रमा के लिए बरबस मुख से यही निकल पड़ता है ‘अद्भुत पथिक प्रहलाद पटेल’।
माँ नर्मदा के विशेष कृपा पात्र
पहले तो बड़े भाग्य है कि मनुष्य तन पाया और फिर माँ नर्मदा की परिक्रमा का अवसर भी बिरलों को ही मिलता है। भक्ति और भाव का संगम उस पर माँ नर्मदा की कृपा से पथिक के रूप में माँ नर्मदा की परिक्रमा करने का अवसर मिला प्रहलाद पटेल को रोम-रोम में मानों माँ की आराधना का स्वर एक स्वर में यही गूंज सुनाई देती है माँ नर्मदा के विशेष कृपा पात्र है प्रहलाद।
इसमे कोई संदेह नही कि पहली तो यात्रा होती नहीं है और माँ की कृपा से अवसर भी मिल जाए तो दूसरी परिक्रमा रुपी यात्रा नही होती और भाग्य से माँ नर्मदा की असीम कृपा से होती है तो नंगे पैर परिक्रमा बहुत ही दुष्कर। और मोहन भागवत के सानिध्य में पुस्तक नहीं निकल सकती ये सब असंभव है। लेकिन, प्रहलाद ने असंभव को संभव बना दिया। अतः यह कहने में कतई
अतिश्योक्ति नहीं कि माँ नर्मदा के विशेष कृपा पात्र है प्रहलाद।
पद्म विभूषण, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी ने पुस्तक समीक्षा में मानों पूरा सार लिख दिया या लगता है जैसे कोई अदृश्य शक्ति उनसे यह लिखवा रही है। क्योंकि, भावों को शब्दों में पिरोना आसान नहीं है और उसे पुस्तक की शक्ल देना और दुष्कर कार्य है। किन्तु भक्त प्रहलाद तो, मानी भक्ति पथ पर पर सवार हो कर एक ऐसी रचना रच गए जिसकी बरसो बरस चर्चा होती रहेंगी। यहाँ यह बता बताना प्रासंगिक होगा कि पुस्तक की समीक्षा (सार) में पद्म विभूषण, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी ने बहुत सुंदर विश्लेषण किया। बल्कि, पूरा सार ही लिख डाला प्रहलाद पटेल न लिख रहे मानो कोई अदृश्य शक्ति उनसे लिखवा रही है। यह सौ फीसदी सही है कि जिस पर मां नर्मदा की कृपा हो उसको फिर किसी कि कृपा की जरूरत नही रहती।
बिन ईश्वर कृपा नहीं मिलती
पुस्तक का हर शब्द मानों भावों का सुंदर विश्लेषण है। पुस्तक मानों ‘गागर में सागर’ पुस्तक की चर्चा हर वर्ग में हर किसी के मुख से बरबस यही निकल पड़ा कृपा हो तो प्रहलाद भाई जैसी। माँ नर्मदा और श्री श्री बाबाश्रीजी की असीम कृपा से पथिक के रूप में भावों के शिल्पी के रूप में, एक भक्त के रूप में परिक्रमा कृपा सार की रचना कर प्रहलाद पटेल ने अपने होने को सार्थक कर दिया एक सपूत के रूप में।
आज स्नेह की वर्षा और अतुलनीय प्रेम की फुहार ने कुछ ऐसा दृश्य उकेरा कि प्रहलाद जी ने अपना मानव जीवन धन्य कर डाला।
कन्वेंशन हॉल मे हुआ यह आयोजन भव्यता दिव्यता से परिपूर्ण रहा। इस गरिमामय आयोजन में जो भी साक्षी बन वह भी अपने को सौभाग्यशाली मान रहा था मानों आज उन्हे माँ नर्मदा ने बुलाया हो। इंदौर के ब्रिलियंट, कन्वेन्शन सभागार में हर कोई अपनी आत्मा और मनोयोग से आया था। हर उपस्थिति कोई प्रभाव – दबाव से नही बल्कि भाव से सब गर्वित थे मानो इस गरिमामय आयोजन के वे स्वयं आयोजक थे।
कार्यक्रम का दिव्य स्वरूप भव्यता में परिवर्तित हो गया केन्द्र में प्रहलाद पटेल थे। कार्यक्रम पूंजी की तो थी लेकिन मां नर्मदा की साक्षात कृपा और श्रीश्री बाबाश्री जी आशीर्वाद की गुंज गुंजायमान हो रही थी। बरसो-बरस यह अनूठा आयोजन स्मृति पटल पर तो अंकित रहेगा ही लेकिन ‘परिक्रमा कृपा सार’ एक जीवन दर्शन के रूप में हर नर्मदा परिक्रमा वासियों और माँ नर्मदा के भक्त को आलोकित और प्रकाशित करती रहेगी। इस पुस्तक को पढने से यह भी आभास होता है कि क्या इतनी व्यवस्थित, भावपूर्ण, भक्ति पूर्ण पुस्तक भी प्रकाशित कि जा सकती है जिसे पढते रहने की ललक एक पल भी विराम न ले।





