Misappropriation of ‘Bhoodan Land’ : ‘भूदान भूमि’ हेराफेरी मामले में हाई कोर्ट की टिप्पणी के बाद 6 IPS अधिकारियों ने 3 रिट अपील दायर की!

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Misappropriation of 'Bhoodan Land'

Misappropriation of ‘Bhoodan Land’ : ‘भूदान भूमि’ हेराफेरी मामले में हाई कोर्ट की टिप्पणी के बाद 6 IPS अधिकारियों ने 3 रिट अपील दायर की!

मामला 26 एकड़ से अधिक सरकारी और भूदान भूमि के अवैध हस्तांतरण का!

हैदराबाद से रूचि बागड़देव की रिपोर्ट

Hyderabad : तेलंगाना हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सीवी भास्कर रेड्डी ने रंगा रेड्डी जिले के महेश्वरम मंडल के नागरम गांव में भूदान भूमि पर कथित अवैध कब्जे की जांच की मांग वाली रिट याचिका पर कुछ IAS और IPS अधिकारियों सहित 76 प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए थे। याचिकाकर्ता बिरला मल्लेश के वकील एल रविचंदर की दलीलें सुनने के बाद न्यायाधीश ने कहा कि प्रथम दृष्टया नगरम गांव की सर्वेक्षण संख्या 181, 182, 194 और 195 के अंतर्गत आने वाली भूमि भूदान अधिनियम की धारा 14 के अनुसार भूदान बोर्ड के पास निहित प्रतीत होती है।

इस फैसले के खिलाफ वरिष्ठ IPS रवि गुप्ता और 6 अन्य अधिकारियों ने नागरम भूमि लेनदेन पर स्थगन आदेश के खिलाफ रिट पिटीशन याचिका दायर करते हुए तेलंगाना उच्च न्यायालय की डबल बेंच का रुख किया। बिरला मल्लेश द्वारा दायर एक रिट याचिका के जवाब में आए इस आदेश में रंगारेड्डी जिले के महेश्वरम मंडल के नागरम गांव में सर्वेक्षण संख्या 181, 182, 194 और 195 से संबंधित सभी भूमि लेनदेन पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया है।

वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के एक समूह जिसमें रवि गुप्ता, तरुण जोशी, रेणु गोयल, बीके राहुल हेगड़े, महेश मुरलीधर भागवत, सौम्या मिश्रा और स्वाति लाकड़ा शामिल हैं, ने उमेश श्रॉफ की पत्नी रेखा श्रॉफ के साथ मिलकर तेलंगाना उच्च न्यायालय के समक्ष तीन रिट अपील दायर की। जिसमें एकल न्यायाधीश द्वारा जारी 24 अप्रैल, 2025 के आदेश को चुनौती दी गई।

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26 एकड़ से अधिक भूमि का अवैध हस्तांतरण

बिरला मल्लेश द्वारा दायर रिट याचिका के जवाब में आए इस आदेश में रंगारेड्डी जिले के महेश्वरम मंडल के नागरम गांव में सर्वेक्षण संख्या 181, 182, 194 और 195 से संबंधित सभी भूमि लेनदेन पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया है। बिरला मल्लेश ने दस्तावेजों की जालसाजी, आधिकारिक अभिलेखों में हेराफेरी और 26 एकड़ से अधिक सरकारी और भूदान भूमि के अवैध हस्तांतरण सहित व्यापक धोखाधड़ी गतिविधि का आरोप लगाया था। उन्होंने उच्च पदस्थ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों पर स्थानीय राजस्व और पंजीकरण अधिकारियों के साथ मिलीभगत करने का भी आरोप लगाया।

फैसले को चुनौती देते हुए, अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश ने उन्हें या अन्य प्रभावित पक्षों को नोटिस दिए बिना निर्देश पारित कर दिया, जो उनके अनुसार प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह के व्यापक एक पक्षीय आदेश के लिए कोई औचित्य प्रदान नहीं किया गया था। खासकर जब रिट याचिका की मुख्य राहत में केवल 19 फरवरी और 10 मार्च, 2025 के दो अभ्यावेदनों पर विचार करने की मांग की गई थी। साथ ही चल रही जांच पर प्रगति रिपोर्ट के लिए एक अंतरिम निर्देश भी दिया गया था।

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प्रतिष्ठा और अधिकारों को नुकसान

अधिकारियों ने दावा किया कि कथित धोखाधड़ी पर अदालत की टिप्पणियां समय से पहले थी और उनका पक्ष सुने बिना ही दी गई। इससे उनकी प्रतिष्ठा और अधिकारों को गंभीर नुकसान पहुंचा और उन्हें अपूरणीय क्षति हुई। उन्होंने आगे दावा किया कि आदेश मूल याचिका के दायरे से कहीं आगे तक फैला हुआ है, जो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक निजी शिकायत को प्रभावी रूप से जनहित का मामला मानता है। याचिका में अपीलकर्ताओं ने खंडपीठ से नागरम गांव से संबंधित भूमि लेनदेन पर रोक को हटाने और परिस्थितियों के तहत कोई अन्य उचित राहत जारी करने का अनुरोध किया।

क्या है भूमि में गड़बड़ी का ये मामला

उल्लेखनीय है कि तेलंगाना हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सीवी भास्कर रेड्डी ने रंगा रेड्डी जिले के महेश्वरम मंडल के नागरम गांव में भूदान भूमि पर कथित अवैध कब्जे की जांच की मांग वाली रिट याचिका पर कुछ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों सहित 76 प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए। याचिकाकर्ता बिरला मल्लेश के वकील एल रविचंदर की दलीलें सुनने के बाद न्यायाधीश ने कहा कि प्रथम दृष्टया नगरम गांव की सर्वेक्षण संख्या 181, 182, 194 और 195 के अंतर्गत आने वाली भूमि भूदान अधिनियम की धारा 14 के अनुसार भूदान बोर्ड के पास निहित प्रतीत होती है।

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अगले आदेश तक भूमि को न बदलें

उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों की पृष्ठभूमि में न्यायाधीश ने रंगारेड्डी के कलेक्टर और महेश्वरम तथा एलबी नगर के उप-पंजीयक को तत्काल उक्त भूमि को प्रतिबंधित संपत्तियों की सूची में शामिल करने का निर्देश दिया। न्यायाधीश ने आदेश दिया कि प्रतिवादियों को आगे निर्देश दिया जाता है, कि वे अगले आदेश तक उक्त भूमि को किसी भी तरह से न बदलें। उसमें कोई फेरबदल न करें न उसे अलग करें। न्यायमूर्ति भास्कर रेड्डी ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों और जनहित के मद्देनजर रिट याचिका वापस लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

किनके लिए है ‘भूदान बोर्ड’ की ये जमीन

न्यायाधीश ने कहा कि भूदान अधिनियम के अनुसार ‘भूदान बोर्ड’ ऐसी भूमि को उन भूमिहीन व्यक्तियों को आवंटित कर सकता है जो उस पर खेती करने के इच्छुक और सक्षम हों। इसे सामुदायिक उद्देश्यों या गरीब और कमजोर वर्गों के लिए आवास के लिए सरकार या स्थानीय निकायों को अनुमति दी जा सकती है। जिन लोगों को जमीन आवंटित की जाती है, वे भूदान नियमों के नियम 9 के तहत निर्धारित अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। न्यायाधीश ने अंतरिम निर्देश में कहा कि ये भूमि आवंटन विरासत में मिलते हैं, लेकिन इन्हें अलग नहीं किया जा सकता है।

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याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि प्रतिवादियों ने अपने आधिकारिक पदों का दुरुपयोग करके और राजस्व अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके राजस्व अभिलेखों में उनके नाम दर्ज करवा लिए हैं और पट्टेदार पासबुक हासिल कर ली है। याचिकाकर्ता ने व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट-2014 के तहत सुरक्षा की मांग की है। मामले की अगली सुनवाई 12 जून को तय की गई है।