मोदी ने आदिवासी-दलितों को किया चिंता मुक्त!
भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में केन्द्र व राज्य सरकारों को यह सुझाव दिया था कि यदि वे चाहें तो अपने स्तर पर अनुसूचित जाति यानी दलितों और आदिम जाति कल्याण विभाग में यानी आदिवासियों में क्रीमीलेयर लागू कर सकती हैं। लेकिन, इससे आदिवासी सांसद चिंतित हो गए थे और संसद भवन में इन वर्गों के 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए जातियों के आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू नहीं करने की मांग की थी। मोदी ने पहले तो उनसे इस मुद्दे पर चर्चा की और जो सुझाव दिया था उसको त्वरित गति से पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में क्रीमीलेयर न लागू करने का निर्णय कर लिया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जहां एक ओर कर्नाटक राज्य में उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिए आमंत्रित किया वहीं दूसरी ओर लाड़ली बहनों और महिलाओं का दिल जीतने का एक प्रकार से अभियान भी छेड़ दिया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी भी इन दिनों फुलफार्म में हैं और सरकार को अपनी तरफ से आइना दिखाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने इस संबंध में दिये गये एक फैसले में सुझाव देते हुए कहा था कि एससी-एसटी वर्ग में क्रीमीलेयर लागू करने पर विचार करना चाहिये और इसी को लेकर इन वर्गों के सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौपते हुए इन वर्गों की चिन्ता से अवगत कराया था। 9 अगस्त 2024 की शाम को हुई केबिनेट बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई, रात्रि में सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बैठक के बाद कहा कि एससी-एसटी के लिए आरक्षण संविधान के अनुसार ही होना चाहिये और संविधान में किसी क्रीमीलेयर का प्रावधान नहीं है। वहीं दूसरी ओर भाजपा के उड़ीसा से लोकसभा सदस्य रविन्द्र नारायण बेहरा ने बताया था कि प्रधानमंत्री से मिलने वाले सभी सांसदों ने एक स्वर से यही मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू मत करिये, इस पर प्रधानमंत्री ने आश्वस्त किया था कि इन वर्गों के आरक्षण में क्रीमीलेयर को नहीं लाया जाएगा।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है बल्कि इससे पूर्व भी सरकारें सुप्रीम कोर्ट की मंशा से अलग फैसले करती रही हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरु जब देश के प्रधानमंत्री थे उस समय सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि उम्मीदवारों को धर्म या जाति के आधार पर सरकार एडमीशन में सीटें आरक्षित नहीं कर सकती, उसी समय सरकार ने संविधान में पहला संशोधन किया और आरक्षण का हक दिया। इंदिरा गांधी सरकार ने भी जब उनका चुनाव 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा शून्य घोषित कर दिया गया और धांधली का दोषी पाया तो सरकार ने संविधान में संशोधन किया कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर के चुनाव को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ही इसे अवैध करार देकर रद्द कर दिया।
मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट 1989 में सरकारी अफसरों को गिरफ्तार करने से पहले अनुमति लेनी होगी और जांच किये बगैर एफआईआर भी दर्ज नहीं होगी, इस पर सरकार ने प्रावधान किया कि बिना अनुमति के गिरफ्तारी हो सकती है। भाजपा की केन्द्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वह संविधान और डॉ बीआर आम्बेडकर की मूल भावना के साथ है और संविधान में इन वर्गों के आरक्षण में क्रीमीलेयर का कोई प्रावधान नहीं होगा। संविधान पीठ ने पिछले दिनों आरक्षण में कोटे पर विस्तृत निर्णय देते हुए यह भी सुझाव दिया था कि राज्य सरकारें एससी-एसटी के आरक्षण में क्रीमीलेयर को अलग कर सकती हैं, ताकि आरक्षण के लाभ से वंचित रह गये कमजोर तबके को इसका पूरा फायदा मिल सके।
आदिवासी इस देश के मूल निवासी
मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा है कि आदिवासी इस देश के मूल निवासी हैं और भाजपा उनसे यह दर्जा छीनना चाहती है। भारत की आधारभूत संरचना में हमारे आदिवासी भाई-बहनों का महान योगदान रहा है। आसमान छूती इमारतें, बड़-बड़ी सिंचाई परियोजनाओं की बुनियाद में आदिवासी माताओं-बहनों की श्रमशक्ति और खून-पसीना बहा है। सरकार द्वारा इनकी सामाजिक न्याय और भागीदारी को अनदेखा करना दुर्भाग्यपूर्ण है। पटवारी ने कहा कि आदिवासी दिवस और मूल निवासी दिवस दोनों पर हमारी शुभकामनाएं आदिवासी भाइयों के साथ हैं। यही कारण है कि कमलनाथ सरकार ने आदिवासी दिवस पर अवकाश घोषित कर आदिवासी मूल निवासी दिवस मनाना शुरु किया था। आदिवासियों के लिये जल-जंगल-जमीन की योजना, कर्ज से मुक्ति योजना जैसी तमाम योजनायें शुरु की थीं। आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार ने उनका यह अधिकार छीनकर आदिवासी दिवस पर अवकाश को समाप्त कर दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी भाजपा की आदिवासी विरोधी मानसिकता का पुरजोर विरोध करती है।
फिजूलखर्ची रोकने का अभियान
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने प्रदेश की महिला सरपंचों से आग्रह किया है कि वे फिजूलखर्ची रोकने के लिए अभियान चलायें और शादि व मृत्यु पर फिजूल खर्च रोकने का प्रयास करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि रक्षाबंधन पर सभी बहनें परिवारों में ऐसे खर्चों को कम करने का संकल्प लें। तेरहवीं और मृत्युभोज से बचा जाये। विवाह भी सादगीपूर्ण तरीके से किये जायें। मैंने खुद बेटे की शादी में 100 लोग ही बुलाये।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान के पुष्कर में 24 फरवरी को मुख्यमंत्री के बेटे डॉ वैभव का विवाह समारोह हुआ था। मेंहदी और हल्दी सहित सभी रस्मों में परिवार के निकट संबंधी ही शामिल हुए थे। शादी-विवाह, तेरहवीं में कई बार लोग कर्ज लेकर या संपत्ति बेचकर भी पैसा लगाते हैं, इससे कर्जदार हो जाते हैं। लोगों को जागरुक करने की आवष्यकता है। ऐसी गतिविधियों को हतोत्साहित कर सामूहिक विवाद से जमा पूंजी बचाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि परिवार के संसाधनों का उपयोग बच्चों की पढ़ाई तथा परिवार की बेहतरी के लिए हो। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री निवास में रानी दुर्गावती महिला सरपंच सम्मेलन और रक्षाबंधन कार्यक्रम पर बहनों को सम्बोधित करते हुए यह बात कही। इस अवसर पर मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित कार्यक्रम में बहनों ने राखी बांधकर मुख्यमंत्री का मुंह भी मीठा कराया।
और यह भी
मुख्यमंत्री ने पुनः दोहराया है कि राज्य की कोई योजना बंद नहीं होगी। संकल्प-पत्र के सभी वायदे पूरे होंगे। घर-घर रसोई गैस की सुविधा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री उज्जवला गैस कनेक्शन प्रदान किए हैं। राज्य सरकार लाड़ली बहनों और उज्जवला कनेक्शन महिलाओं को 450 रुपये में गैस सिलेंडर देगी। उन्होंने कहा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा से ‘हर घर तिरंगा अभियान’ आरंभ हो रहा है। सरपंच यह सुनिश्चित करें कि सभी घरों पर तिरंगा लहराया जाए, यह स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों के योगदान के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।