एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति का प्रत्याशी नामित करके प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उस सपने को यथार्थ में बदल दिया है जिसे 1952 में डा.राममनोहर लोहिया ने देखा था।
डाक्टर लोहिया ने सिंगरौली से विधायक चुनी गईं अनुसूचित जनजाति समाज की सुमित्री देवी को कांग्रेस के डा.राजेन्द्र प्रसाद के मुकाबले सोशलिस्ट पार्टी की ओर से राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किया था। यद्यपि अहर्ता हेतु सांसदों व विधायकों की जरूरी संख्या न जुट पाने की वजह से सुमित्री देवी उम्मीदवार नहीं बन सकीं लेकिन डा.लोहिया ने इस वंचित समाज की हिस्सेदारी के सवाल को वैश्विक बना दिया था।
प्रकारांतर में डाक्टर लोहिया ने ‘महारानी के मुकाबले मेहतरानी’ और ‘इलाकेदार के मुकाबले पल्लेदार’ को लोकसभा व अन्य चुनावों में खड़ा करके भारत की सामाजिक विषमता का प्रश्न विमर्श के फलक पर ला दिया।
चलिए पहले जान लें कि द्रोपदी मुर्मू कौन हैं..? द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले की रायरंगपुर की निवासी हैं। 20 जून को उन्होंने अपना 64वां जन्म दिन मनाया। वे झारखंड की राज्यपाल(छह वर्ष तक) रह चुकी है।
2004 व 2009 में वे ओडिशा विधानसभा की सदस्य निर्वाचित हुईं। नवीन पटनायक मंत्रिमण्डल में स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री थी।
द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्ष, सादगी व कर्मठता को परिभाषित करने वाला रहा। उनका करियर एक जूनियर क्लर्क से शुरू हुआ।
राजनीति की यात्रा वार्ड पार्षद से नगरपंचायत उपाध्यक्ष से होता हुआ विधायक, मंत्री और राज्यपाल तक पहुंचा।
अब वे देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजित होंगी यह लगभग तय है। उनके मुकाबले विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।
द्रौपदी मुर्मू 2017 मेंं भी चर्चाओं में थीं जब राष्ट्रपति पद के लिए उनका नाम चला था। यद्यपि बाद में उनकी जगह बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद का नाम तय हुआ।
अब फिर लौटते हैं सिंगरौली की सुमित्री देवी की ओर जिनमें डा.राममनोहर लोहिया ने राष्ट्रपति की छवि देखी थी।
1952 में हुए प्रथम आम चुनाव में सिंगरौली विधानसभा सीट(द्विसदस्यीय) से सुमित्री देवी खैरवार व श्याम कार्तिक सोशलिस्ट पार्टी से निर्वाचित हुए।
यह वह दौर था जब कांग्रेस की आँधी चल रही थी व पं.नेहरू का तिलस्म छाया हुआ था, विन्ध्य प्रदेश के 60 सदस्यीय सदन में सोशलिस्ट पार्टी के 11सदस्य चुनकर पहुँचे थे।
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सीधी- सिंगरौली से कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था..न विधानसभा में न लोकसभा में।
विन्ध्य में समाजवादी आन्दोलन परवान पर चढ़ा था और लोहिया शोषित पीड़ित वर्ग के मसीहा के तौरपर स्थापित हो चुके थे।
सुमित्री देवी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करके उन्होंने दलित-वंचित समाज में आशा की एक लौ जलाई थी।
नरेन्द्र मोदी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित करके उस लौ को ऐसी मसाल में बदल दिया जिसके आलोक में भारत में समतामूलक समाज की ठोस इमारत खड़ी होनी है.।