हिंदुओं को ‘मायावी साजिशों’ से आगाह करती ‘मोहन वाणी’ …

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हिंदुओं को ‘मायावी साजिशों’ से आगाह करती ‘मोहन वाणी’ …

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सौवें वर्ष में कदम रख चुका है। इस समय मोहन भागवत सरसंघचालक हैं। और विजयादशमी पर्व पर स्वयंसेवकों को संबोधित करने की परंपरा में उनके उद्गार राष्ट्र को चेता रहे हैं। ‘मोहन’ ने अपने ‘मन की बात’ करते हुए ‘मायावी साजिशों’ से आगाह किया है। ‘मायावी साजिशों’ का सीधा संबंध असुरों से रहा है। और यह भी सच है कि मायावी साजिश रचने वाले अंत में पराजित ही होते हैं। पर इससे पहले यह मायावी साजिशें ‘धरा और धरा नायकों’ को अस्थिर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। ‘मोहन’ की चिंता में भी भारत के साथ ही भारत के परिप्रेक्ष्य में पूरी दुनिया की चुनौतियां और समस्याएं हैं। इसमें बांग्लादेश है तो इजरायल भी है। पाकिस्तान है तो जम्मू-कश्मीर भी है। इसमें राष्ट्र के लिए चुनौती बन रही राजनैतिक दलों की स्वार्थ भरी संकीर्णता है, तो सांस्कृतिक साजिशों का केंद्र कम्युनिस्ट व्यवहार का जिक्र भी ‘मोहन’ ने बेबाकी से किया है। ‘मोहन’ के ‘मन की बात’ को सिरे से नकारा नहीं जा सकता है। हालांकि हालातों का खात्मा करने की बात भी सीमाओं से परे नहीं है। और यह भी सच है कि मोहन की सोच पर गौर नहीं किया गया तो भयावह भविष्य हमें अस्थायित्व में जकड़ने को फन फुलाए मौजूद है। मोहन की चिंता में हिंदू है और हिंदुस्तान है।

मोहन ने साफ किया है कि संघ के शताब्दी वर्ष में कदम रखने के कारण यह साल महत्वपूर्ण है। इसके मायने निकाले जा सकते हैं और निकाले जाना चाहिए। मोहन ने चिंता जताई है कि भारत के खिलाफ ‘मायावी षड्यंत्र’ हो रहा है। और समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिशें राष्ट्रीय हित से बड़ी हो गयी हैं। उनकी कार्यप्रणाली एक पार्टी के समर्थन में खड़े होना है, जो राष्ट्रहित में नहीं है। शनिवार, 12 अक्टूबर 2024 को विजयादशमी संबोधन में मोहन ने आगाह किया है कि पिछले कुछ सालों में भारत अधिक ताकतवर हुआ है और विश्व में उसकी साख भी बढ़ी है लेकिन मायावी षडयंत्र देश के संकल्प की परीक्षा ले रहे हैं। संघ का सुर यही है कि अपने देश के वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए चुनौतियां स्पष्ट रूप से सामने दिखायी दे रही हैं। देश के चारों तरफ के क्षेत्रों को अशांत व अस्थिर करने के प्रयास गति पकड़ते हुए दिखायी देते हैं। बांग्लादेश में यह बात फैलाई जा रही है कि भारत एक खतरा है और उन्हें बचाव के लिए पाकिस्तान से हाथ मिलाना चाहिए। चिंता और चेतावनी के केंद्र में बड़ा सवाल है कि ‘कौन ऐसी धारणा फैला रहा है।’ तो पश्चिम एशिया में इजरायल के साथ हमास का संघर्ष अब कहां तक फैलेगा, यह चिंता सबके यानि पूरी दुनिया के सामने उपस्थित है।

समाधान भी सामने रखा है कि व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र की दृढ़ता धर्म की विजय के लिए शक्ति का आधार बनती है, चाहे स्थिति अनुकूल हो या नहीं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भी संघ है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी चरित्र के बल पर सबल रहकर सौवें साल में प्रवेश कर रहा है। तो अहसास कराया है कि हर किसी को लगता है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत अधिक सशक्त हुआ है और विश्व में उसकी साख भी बढ़ी है। इसके पीछे भी यही ताकत है कि कोई भी देश लोगों के राष्ट्रीय चरित्र से महान बनता है। और यह राष्ट्रीय चरित्र ही पिछले वर्षों में देखने को मिला है। गत वर्षों में भारत एक राष्ट्र के तौर पर विश्व में सशक्त और प्रतिष्ठित हुआ है। विश्व में उसकी साख बढ़ी है।

भागवत ने वर्तमान तस्वीर भी सामने रखी है कि भारत में आशाओं और आकांक्षाओं के अलावा चुनौतियां और समस्याएं भी मौजूद हैं। युवा देश का भविष्य हैं और वह भी साजिश की चपेट में है। बड़ों के साथ बच्चों के हाथों में भी मोबाइल फोन पहुंच गया है, वहां क्या दिखा रहे हैं और बच्चे क्या देख रहे हैं, इस पर नियंत्रण नहीं के बराबर है। युवा पीढ़ी में जंगल की आग की तरह फैलने वाली नशीले पदार्थ की आदत भी समाज को अंदर से खोखला कर रही है। मोहन ने चेताया है कि अच्छाई की ओर ले जाने वाले संस्कार पुनर्जीवित करने होंगे। तो समझाया कि ‘हमें अहिल्याबाई होलकर, दयानंद सरस्वती, बिरसा मुंडा और कई ऐसी हस्तियों से प्रेरणा लेनी चाहिए जिन्होंने अपना जीवन देश के कल्याण, धर्म, संस्कृति और समाज के प्रति समर्पित कर दिया।’

हिंदुओं को खतरा है, किससे हैं…इस पर खुलकर अपना मत मोहन ने बांग्लादेश के जरिए ही रखा है। उन्होंने कहा है कि बांग्लादेश में अत्याचारी कट्टरपंथी स्वभाव जब तक विद्यमान है, तब तक वहां हिदुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों के सिर पर खतरे की तलवार लटकी रहेगी। इसलिए बांग्लादेश से भारत में घुसपैठ और इसके कारण आबादी का असंतुलन आम लोगों के बीच भी गंभीर चिंता का विषय बन गया है। तो भागवत ने संतोष जताया कि जम्मू कश्मीर में हाल में हुआ विधानसभा चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुआ। उन्होंने विश्वास जताया कि देश की युवा शक्ति, मातृशक्ति, उद्यमी, किसान, श्रमिक, जवान, प्रशासन, शासन सभी प्रतिबद्धतापूर्वक अपने कार्य में डटे रहेंगे। गत वर्षों में देशहित की प्रेरणा से इन सबके द्वारा किए गए पुरुषार्थ से ही विश्व पटल पर भारत की छवि, शक्ति, कीर्ति व स्थान निरंतर उन्नत हो रहे है लेकिन हम सबके इस कृतनिश्चय की मानो परीक्षा लेने कुछ मायावी षडयंत्र हमारे सामने उपस्थित हुए हैं, जिन्हें ठीक से समझना आवश्यक है। और यह मायावी साजिश रचने के पीछे है अत्याचारी कट्टरपंथी स्वभाव। और मायावी साजिश हैं सरकार को नियंत्रित करने वाली परोक्ष ताकतें (डीप स्टेट) और ‘सांस्कृतिक मार्क्सवादी’ सभी सांस्कृतिक परंपराओं के घोषित शत्रु हैं। और मायावी साजिश के पीछे है यह परिदृश्य। बहुदलीय प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में सत्ता प्राप्त करने के लिये दलों के बीच स्पर्धा होती है। अगर समाज में विद्यमान छोटे स्वार्थ, परस्पर सद्भावना अथवा राष्ट्र की एकता व अखंडता से अधिक महत्वपूर्ण हो गए या दलों की स्पर्धा में समाज की सद्भावना व राष्ट्र का गौरव व एकात्मता गौण माने गए तो ऐसी दलीय राजनीति में एक पक्ष की सहायता में खड़े होकर पर्यायी राजनीति के नाम पर अपनी विभाजनकारी कार्यसूची को आगे बढ़ाने की कार्यपद्धति वाली मायावी साजिश से राष्ट्र को मोहन ने आगाह किया है। समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिशें राष्ट्रीय हित से बड़ी हो गयी हैं। उनकी कार्यप्रणाली एक पार्टी के समर्थन में खड़े होना और ‘‘वैकल्पिक राजनीति’’ के नाम पर अपने विनाशकारी एजेंडे को आगे बढ़ाना है। संघ प्रमुख ने हाल में गणेशोत्सव के दौरान गणपति विजर्सन की शोभायात्राओं पर ‘‘बिना उकसावे के किए गए पथराव’’ पर भी चिंता जतायी और समाज के किसी एक खास वर्ग पर हमला करने, अकारण हिंसा पर उतारू होने और भय पैदा करने की कोशिश जैसे कृत्यों की निंदा की।

मोहन ने इसीलिए चेताया है कि समाज में भी सदैव पूर्ण सतर्क रहने और इन कुप्रवृत्तियों को प्रश्रय देने वालों को पहचानने की आवश्यकता उत्पन्न हो गयी है। सहिष्णुता और सौहार्दता भारतीय परंपराएं हैं। एक स्वस्थ एवं सक्षम समाज के लिए पहली शर्त विभिन्न वर्गों के बीच सामंजस्य एवं आपसी सद्भावना है और इसे किसी प्रतीकात्मक कार्यक्रम के माध्यम से हासिल नहीं किया जा सकता है। हर किसी एक-दूसरे के उत्सवों में भाग लेना चाहिए और वे पूरे समाज के उत्सव बनने चाहिए। पर असंगठित रहना व दुर्बल रहना यह दुष्टों के द्वारा अत्याचारों को निमंत्रण देना है, यह पाठ भी विश्व भर के हिंदू समाज को ग्रहण करना चाहिए।

तो सौवें साल में कदम रख चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सारथी ‘मोहन’ हैं। और ‘मोहन’ ने ‘महाभारत युद्ध’ के मैदान में खड़े हिंदुओं और भारत के खिलाफ हो रही मायावी साजिशों से आगाह किया है। भरोसा भी दिलाया है कि सारथी समर्थ है, पर संकटों के प्रति राष्ट्र और राष्ट्रवासियों को चौकन्ना रहने की जरूरत है। विजयादशमी पर हिंदुओं को ‘मायावी साजिशों’ से आगाह करती ‘मोहन वाणी’ ने संघ की प्रतिबद्धता और कर्तव्यनिष्ठा को ही सामने रखा है…।