

‘केतकर के ज्ञान’ से आहत ‘मोहन का मान’…!
कौशल किशोर चतुर्वेदी
संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के मन में क्या चल रहा है, यह तो मोहन ही जानें लेकिन फिलहाल वह बुरी तरह घिरे नजर आ रहे हैं। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने ही संघ प्रमुख की राय पर सवालिया निशान लगा दिया है। मोहन भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में कहा था कि राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नई जगहों पर इस तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है? भारत को दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं। भाव व्यक्त किए थे कि देश संविधान से चलता है। तो ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने संपादकीय में लिखा है कि सोमनाथ से लेकर संभल और उससे आगे का ऐतिहासिक सत्य जानने की यह लड़ाई धार्मिक वर्चस्व के बारे में नहीं है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि करने और सभ्यतागत न्याय की लड़ाई है। तो अब धर्म प्रमुखों के बाद आरएसएस के मुखपत्र आर्गनाइजर के संपादक ने भी ‘मोहन’ को ‘ज्ञान’ देकर यह जताया है कि उन्हें अपनी इस सोच को यू-टर्न देना चाहिए।
केतकर ने मोहन, कांग्रेस, कम्युनिस्ट और मुसलमानों पर एक साथ निशाना साधा है। उन्होंने लिखा है कि उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर की जामा मस्जिद में श्री हरिहर मंदिर के सर्वे से शुरू हुए विवाद ने संवैधानिक अधिकारों पर एक नई बहस को जन्म दिया है। हमें धर्मनिरपेक्षता की झूठी बहस के बजाय समाज के सभी वर्गों को शामिल करते हुए सभ्यतागत न्याय की खोज करने की जरूरत है। कांग्रेस के षड्यंत्र ने मुगल सम्राट बाबर और औरंगजेब जैसे कट्टर शासकों की बड़ी छवि पेश की। इससे भारतीय मुसलमानों में गलत धारणा बनी कि वे अंग्रेजों से पहले यहां के शासक थे।भारत के मुसलमानों को यह समझना चाहिए कि वे शासक नहीं बर्बर इस्लामी आक्रमणों के प्रतीक हैं। भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिंदुओं के विभिन्न संप्रदायों से हैं इसलिए उन्हें अपनी विचारधारा बदलनी चाहिए। केतकर लिखते हैं कि कांग्रेस ने जातियों को सामाजिक न्याय दिलाने में देरी की। जबकि अंबेडकर जाति-आधारित भेदभाव के मूल कारण तक गए और इसे दूर करने के लिए संवैधानिक व्यवस्था की।इस्लामिक आधार पर देश विभाजन के बाद कांग्रेस और कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने आक्रमणकारियों के पाप छुपाने की कोशिश की। उसने इतिहास की सच्चाई बताकर और सामंजस्यपूर्ण भविष्य के लिए वर्तमान को फिर से स्थापित करके सभ्यतागत न्याय की कोशिश नहीं की।अब हमें धार्मिक कटुता को खत्म करने के लिए इस तरह के नजरिए की जरूरत है। इतिहास की सच्चाई स्वीकारने और भारतीय मुसलमानों को अतीत के आक्रमणकारियों से अलग देखने से शांति और सद्भाव की उम्मीद है।
केतकर से पहले धर्म प्रमुख मोहन भागवत को सीधी चुनौती दे चुके हैं। जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने 23 दिसंबर को कहा था कि संघ प्रमुख ने अच्छा नहीं कहा। संघ भी हिंदुत्व के आधार पर बना है। जहां-जहां मंदिर या मंदिर के अवशेष मिल रहे हैं, उन्हें हम लेंगे। वे संघ प्रमुख हैं, हम धर्माचार्य हैं। हमारा क्षेत्र अलग है, उनका अलग। वे संघ के सरसंघचालक हैं, हमारे नहीं। राम मंदिर पर बयान देना दुर्भाग्यपूर्ण है।ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने संघ प्रमुख पर राजनीतिक सुविधा के अनुसार बयान देने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि जब सत्ता हासिल करनी थी, तब वे मंदिर-मंदिर करते थे। अब सत्ता मिल गई तो मंदिर नहीं ढूंढने की नसीहत दे रहे हैं। अगर हिंदू समाज अपने मंदिरों का पुनरुद्धार कर उन्हें पुनः संरक्षित करना चाहता है तो इसमें गलत क्या है।
तो मोहन को उनके मंदिर-मस्जिद ज्ञान से सार्वजनिक तौर पर चुनौती मिल रही है। संघ की पत्रिका के संपादक ही अगर मोहन को ज्ञान दे रहे हैं तो विषय के विवाद को समझा जा सकता है। समझ यह नहीं आ रहा है कि हिंदुत्व के हिमायती संघ के प्रमुख भागवत के मन में आखिर चल क्या रहा है। क्या वह संघ को नई दिशा में ले जाने को उत्सुक हैं, जिसमें अब हिन्दू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद से दूर संघ की सोच को संविधान के करीब देखा जा सके। या फिर राम मंदिर निर्माण के बाद के जनमत से आहत होकर संघ प्रमुख नए विचारों से ओतप्रोत नजर आ रहे हैं। या फिर 75वें साल में चल रहे और संघ प्रमुख के पद पर चल रहा उनका सोलहवां साल उन्हें थकाने वाला साबित हो रहा है। खैर जो भी हो पर मोहन ज्ञान पर सवालिया निशान ने उथल-पुथल पैदा कर दी है। अब चारों तरफ से घेरकर उन्हें घायल करने की कोशिश की जा रही है। इसके बाद यह तय लग रहा है वक्त ही इन हालातों का उचित जवाब देगा…या तो मोहन मौन रहकर नीलकंठ बनेंगे या फिर मुखर होकर अपने बयान की तर्कसंगतता का दावा करेंगे। फिलहाल बाकी सभी को छोड़ दें, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ के संपादक ‘केतकर के ज्ञान’ से ‘मोहन का मान’ आहत नजर आ रहा है…।