Morena Loksabha Seat: मुरैना में BJP के शिवमंगल पर भारी कांग्रेस के सत्यपाल की छवि,BSP के मैदान में आने से बदलेंगे समीकरण
* दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट
चंबल अंचल की मुरैना लोकसभा सीट में चुनावी मुकाबला इस बार बेहद कड़ा है। भाजपा के शिवमंगल सिंह तोमर और कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू के बीच यहां सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है। बसपा ने अब तक प्रत्याशी घोषित नहीं किया। यदि उसने ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में उतार दिया तो भाजपा- कांग्रेस के सामने मुश्किल खड़ी होगी। मुरैना में भाजपा की ताकत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और राम लहर है, जबकि व्यक्तिगत छवि के मामले में कांग्रेस के सत्यपाल भाजपा के शिवमंगल पर भारी पड़ रहे हैं। भाजपा के कद्दावर नेता विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर इसी क्षेत्र से हैं। उनकी सिफारिश पर ही शिवमंगल को टिकट मिला है। इसलिए इस चुनाव से उनकी प्रतिष्ठा जुड़ी है। लोगों का कहना है कि स्पष्ट चुनावी रुझान बसपा का टिकट घोषित होने के बाद पता चल सकेगा।
भाजपा – कांग्रेस की ताकत और कमजोरी
मुरैना लोकसभा सीट का राजनीतिक मिजाज भाजपाई है। 1996 से लगातार यहां भाजपा जीतती आ रही है। 2004 तक सीट अजा वर्ग के लिए आरक्षित थी, परिसीमन में 2008 के बाद यह सामान्य हो गई। सामान्य होने के बाद हुए तीन चुनाव भाजपा ने ही जीते हैं। लेकिन इस बार मुकाबला कड़ा दिखाई पड़ रहा है। भाजपा प्रत्याशी शिवमंगल सिंह तोमर के पास पार्टी, नेताओं की भारी भरकम टीम के साथ प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की लोकप्रियता और राम लहर की ताकत है। क्षेत्र के कद्दावर नेता विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर भी उनके साथ हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू की पारिवारिक पृष्ठभूमि ज्यादा अच्छी है। इनके पिता गजराज सिंह सिकरवार भाजपा के दिग्गज नेता हैं। भाई सतीश सिकरवार ग्वालियर से विधायक हैं और उनकी पत्नी ग्वालियर में ही महापौर। इसके साथ सत्यपाल सिकरवार की छवि अच्छी है। सजातीय वोटों का झुकाव इनके पक्ष में ज्यादा है। हालांकि क्षेत्र में कांग्रेस के कद्दावर नेता और वरिष्ठ विधायक रामनिवास रावत सत्यपाल को प्रत्याशी बनाने से नाराज हैं। उन्होंने कहा था कि वे चुनाव में नीटू का काम नहीं कर पाएंगे। उनकी नाराजगी का कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। दूसरी तरफ 4 माह पहले हुए विधानसभा चुनाव के दौरान जो घटनाएं घटीं, उससे भाजपा के प्रति क्षेत्र के ब्राह्मणों में नाराजगी है। यह शिवमंगल के प्रति ज्यादा बताई जा रही है। लगभग 4 साल पहले शिवमंगल सिंह कोआपरेटिव सोसायटी के अध्यक्ष थे, इस दौरान उन्होंने जो किया उससे श्योपुर और विजयपुर क्षेत्र के लोगों में नाराजगी देखने को मिल रही है। उनके कार्यकाल में बनाए गए सोसाइटियों के सचिव भाजपा के प्रचार में जुट गए हैं। इससे भाजपा को नुकसान हो सकता है।
बसपा के आते ही मुकाबला हो जाएगा त्रिकोणीय
भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रभात झा ने पिछले दिनों कहा था कि पार्टी को पांच लोकसभा सीटों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। ग्वालियर, खंडवा, राजगढ़, छिंदवाड़ा के साथ उन्होंने मुरैना का भी नाम लिया था।
फिलहाल बसपा प्रत्याशी मैदान में नहीं है, इसलिए मुकाबला भाजपा- कांग्रेस के बीच ही दिख रहा है। बसपा के मैदान में उतरते ही मुकाबला त्रिकाणीय होगा और चुनाव के समीकरण बदल सकते हैं। खासकर बसपा को यदि कोई अच्छा ब्राह्मण प्रत्याशी मिल गया तो कह पाना कठिन होगा कि जीत- हार किस करवट बैठेगी। बसपा ने किसी दूसरे समाज के नेता को टिकट दिया तो ब्राह्मण मतों में बंटवारा होगा। ऐसी स्थिति में ज्यादा झुकाव व्यक्तिगत छवि के कारण कांग्रेस के सत्यपाल की ओर हो सकता है।
मुरैना में प्रत्याशियों की छवि बनी चुनावी मुद्दा
देश भर में बह रही हवा और चल रहे मुद्दों का असर मुरैना संसदीय क्षेत्र में कम देखने को मिल रहा है। लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेते हैं। अयोध्या का राम मंदिर भी चर्चा में है लेकिन प्रत्याशियों की छवि इन पर भारी पड़ती नजर आ रही है। भाजपा के शिवमंगल सिहं तोमर की उम्र 65 साल है लेकिन उनकी छवि लोगों के बीच ज्यादा अच्छी नहीं है। इसके विपरीत कांग्रेस के सत्यपाल लगभग 45 वर्ष के युवा हैं। उनका व्यवहार ज्यादा अच्छा बताया जा रहा है। इसी वजह से मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की ओर ज्यादा दिख रहा है। हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं कि यहां अन्य मुद्दों का कोई असर नहीं है। भाजपा केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा कराए काम गिना रही है। भाजपा के एजेंडे का हवाला दिया जा रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस घोषणा पत्र में शामिल 5 न्याय और 24 गारंटियों का प्रचार कर रही है। कांग्रेस सरकार की कर्जमाफी की याद दिलाई जा रही है।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बनाई बढ़त
प्रदेश में भाजपा की बंपर जीत के बावजूद मुरैना ऐसा लोकसभा क्षेत्र जहां विधानसभा चुनाव मेंं कांग्रेस ने बढ़त हासिल की है। कांग्रेस ने विधानसभा की 8 में से 7 सीटें जीती हैं जबकि भाजपा को सिर्फ 3 सीटों से संतोष करना पड़ा है। कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटें श्योपुर, विजयपुर, जौरा, मुरैना और अंंबाह हैं। भाजपा ने तीन सीटें सबलगढ़, सुमावली और दिमनी जीती हैं। कांग्रेेस का पांच सीटों में जीत का अंतर 1 लाख 2 हजार 28 वोट रहा है। जबकि भाजपा तीन सीटें 50 हजार 274 वोटों के अंतर से जीती हैं। इस तरह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लगभग 50 हजार वोटों की बढ़त हासिल है। मुरैना जिले से विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी जीते हैं। वे अच्छे चुनाव प्रबंधक हैं। भाजपा का टिकट भी उनकी सिफारिश पर मिला है। इसलिए लोकसभा के इस चुनाव में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
भाजपा का प्रभाव लेकिन इस बार राह कठिन
मुरैना लोकसभा सीट में दो जिलों की 8 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें श्योपुर जिले की दो सीटें विजयपुर और श्योपुर हैं। मुरैना जिले की सभी 6 विधानसभा सीटें सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी और अंबाह भी इसी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं। श्याेपुर जिले की दोनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। मुरैना जिले की 6 में से 3-3 सीटें भाजपा-कांग्रेस के पास हैं। जहां तक मुरैना लोकसभा क्षेत्र के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो सीट पर 1996 से लगातार भाजपा का कब्जा है। 1991 में कांग्रेस के बारेलाल जाटव ने अंतिम बार भाजपा के छविलाल अर्गल को 16 हजार 745 वोटों के अंतर से हराकर चुनाव जीता था। इसके बाद 1996 से 2004 तक लगातार मुरैना से भाजपा के अशोक अर्गल सांसद रहे। 2008 के परिसीमन में यह सीट आरक्षण से मुक्त होकर सामान्य हो गई। इसके बाद यहां से दो चुनाव नरेंद्र सिंह तोमर और एक चुनाव अनूप मिश्रा ने जीता। इस लिहाज से मुरैना को भाजपा के प्रभाव वाली सीट कहा जा सकता है, लेकिन इस बार मुकाबला कड़ा और रोचक दिख रहा है।
जातीय समीकरणों में भी फंसा मुरैना का चुनाव
मुरैना लोकसभा क्षेत्र में हर जाति, समाज के मतदाता हैं लेकिन निर्णायक भूमिका में दलित, तोमर, ब्राह्मण और वैश्य बताए जाते हैं। दलित मतदाताओं की तादाद ज्यादा होने के कारण ही 2008 से पहले तक यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी। बाद में मुरैना सामान्य हो गई और इससे लगी भिंड सामान्य से अजा वर्ग के लिए आरक्षित। आमतौर पर तोमर और ब्राह्मण मतदाता एकतरफा पड़ता है। इसी बदौलत यहां से नरेंद्र सिंह तोमर और अनूप मिश्रा सांसद बने। लेकिन इस बार भाजपा-कांग्रेस दोनों ने तोमर प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। ऐसे में निर्णायक भूमिका दलित, ब्राह्मण और वैश्य समाज के मतदाताओं की रहने वाली है। कांग्रेस प्रत्याशी मजबूत हैं लेकिन ब्राह्मण को टिकट देकर कांग्रेस और बढ़त ले सकती थी लेकिन संभवत: तोमर वोट बैंक एकमुश्त न जाए इसलिए उसने भी इसी समाज का प्रत्याशी दे दिया। बसपा भी यहां डेढ़ से दो लाख तक वोट ले जाती है। इस बार यहां का चुनाव फंसा है और सबकी इस पर नजर है।