
अनाथ शावकों की मां: सावित्री अम्मा की ममता और समर्पण की गौरव गाथा
रुचि बागड़देव की रिपोर्ट
बेंगलुरु। वन्यजीवन के संरक्षण में एक नाम जो गुमनाम होकर भी सबके दिलों में घर करता है, वह हैं सावित्री अम्मा। पिछले 22 वर्षों से वे शेर, बाघ और तेंदुए जैसे जंगल के अनाथ शावकों की मां बनकर उनकी देखभाल, पालन-पोषण और सुरक्षा कर रही हैं। कोई केवल Caretaker नहीं, बल्कि हर शावक के लिए माँ की ममता से बढ़कर उनकी जीवन संरक्षक हैं।

सावित्री अम्मा का संबंध दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के बेंगलुरु नज़दीक स्थित बानेरघट्टा बायोलॉजिकल पार्क से है। 2002 में जब उन्होंने इस पार्क में काम करना शुरू किया था, तो शुरुआत सफाई कर्मचारी के तौर पर हुई। धीरे-धीरे उनके अंदर के करुणा और जानवरों के प्रति प्रेम ने उन्हें वहां के अनाथ और घायल शावकों की देखभाल की जिम्मेदारी में ले आया।
अब तक उन्होंने 80 से अधिक वन्यजीव शावकों को पालकर उनकी जान बचाई है। ये शावक आमतौर पर घायल या अपनी माँ खो चुके होते हैं, जिन्हें वे अपनी ममता और सेवा भावना से पुनर्जीवित करती हैं। सावित्री अम्मा दिन-रात उनके लिए दूध पिलाती हैं, सफाई और दवा देती हैं, ताकि वे मजबूत होकर वापस जंगल में लौट सकें।

बानेरघट्टा बायोलॉजिकल पार्क 731 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला एक प्रमुख वन्यजीव संरक्षण स्थल है, जहां 102 विभिन्न प्रजातियों के करीब 2300 जानवर रहते हैं। यह पार्क सरकार द्वारा संचालित है और आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के कारण वन्यजीव चिकित्सा और पुनर्वास के लिए खासा जाना जाता है।
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सावित्री अम्मा का काम केवल नौकरी नहीं, बल्कि उनके दिल की आवाज़ है, जो समर्पण और प्रेम का पर्याय बन चुका है। उन्होंने साबित किया है कि मातृत्व की भावना केवल इंसानों तक सीमित नहीं होती, बल्कि जानवरों तक भी पहुँची जा सकती है। उनकी ममता के चलते ये अनाथ शावक जंगल को अपना घर समझते हैं, अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं, और साथ ही जैव विविधता संरक्षण में योगदान देते हैं।

यह कहानी न सिर्फ वन्यजीव संरक्षण की प्रेरणा है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं और प्रकृति के बीच गहरे संबंध का भी उदाहरण है। सावित्री अम्मा की ममता और सेवा ने साबित किया है कि इंसान और प्रकृति का रिश्ता सह-अस्तित्व और प्रेम से पूर्ण हो सकता है।

हम सावित्री अम्मा के अदम्य साहस, लगन और मातृस्नेह को प्रणाम करते हैं, जो वन्यजीवन के लिए एक अमूल्य उपहार है।





