Mother’s Day: माओं ने लिखी माँ पर कवितायें
1.वृद्ध आश्रम या घर के कोने में बैठी मां!
- विनीता तिवारी
माँ क्या सिर्फ एक दिन याद करने वाला मात्र शब्द है?
सोचती हूं ,
मैं भी क्या
पाश्चात्य रंग में रंग जाऊं?
या पाश्चात्य नदी में
मैं भी गोते लगा लूं?
दूर हूं तो शब्द भाव से
पास हूं तो मां के लिए
तय किए गए मदों
को अर्पण कर दूं!
यही सोचते हैं बच्चे
की एक ही दिन की तो बात है!
माँ से मिलने में क्या हर्ज है!
सदैव निगाहों से
लेकर आत्मा के
अंतिम छोर तक
तुम पर स्नेह और
आशीर्वाद लुटाती मां!
कितना समेट रही है
एक दिन का दिया
तुम्हारा प्यार और सम्मान
और गदगद हो रही है!
वृद्ध आश्रम या घर के कोने में बैठी मां!
नेह में भीगे भावों को,
भीगी आंखों से अपने ममत्व को,
बाहों में समेट लेने
को आतुर माँ!!
इसीलिए तुम भारतीय हो!
एक बार मां के पास बैठो,
उनके कुम्हलाते
हाथों को स्पर्श करो!
और मां की आंखों को पढ़ लो! यह सच है कि
यदि तुम ने अपने मन को
परिस्थितिवश फौलादी लोहा
बना लिया है उस ताप से पिघल जाएगा
वह लोहा
और पानी की तरह तरल हो
प्रवाहमान हो जाएगा!!!
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2 .”मॉं कहां हो”
-नीतिअग्निहोत्री
मॉं कहां हो एक बार आवाज दो
कान बेबी सुनने को तरस रहें हैं
आवाज अभी भी कानों में गूंजती है
परन्तु ,कहीं नजर नही आती हो मॉं।
हमारी छोटी-छोटी खुशी का ख्याल रखतीं रहीं
अब भी कष्ट में तुम समाधान सुझातीं
मॉं स्वप्न में आकर
कहतीं मत घबराओ
ईश्वर सब कुछ अच्छा ही करेगा बेटा।
मॉं के जाने से सब सूना संसार
कहने को है ये इतना बड़ा संसार
कोई मॉं सा नहीं चिंता करने वाला
मॉं समान किसी का नहीं है आधार ।
मॉं प्रेरणा और प्रेम का सागर रहीं
हर कदम पर उनका सहारा मिलता रहा
मॉं ने ही दुनिया में जीना सिखाया
कहां चला गया सिर से उनका साया।
मां बहुत ही याद आती रहती हो
क्या आप भी हमें याद करती हो
सुना जाने पर आत्मा मोह -माया नहीं रखती
फिर क्यों स्वप्न में आकर क्यों बतियातीं।
मॉं की तुलना किसी से नहीं है
मॉं तो एक रेशम सा अहसास है
जिसमें गुंथा ममता का हर
तार है
मॉं शब्द ही वात्सल्य की पराकाष्ठा है।
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