प्रेरक प्रसंग: एक इलेक्ट्रिशियन ऐसा भी,जीवन भर की कमाई, साइकिल के थैले में समाई

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84 साल की उम्र में भी स्वाभिमान से जीने की चाहत

17 सितम्बर, प्रेस क्लब में एक  संस्था की महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक गोष्ठी थी। यहीं मुझे एक बुजुर्ग मिले। काली पैंट, नीली शर्ट और उस पर मैचिंग टाई। लेडीज साइकिल पर सवार। उनके सलीके और साफ-सफाई को देख मैं प्रभावित हो गयी । मैंने रोका और उनके बारे में जानना चाहा। कहने लगे, कभी फुरसत मिलेगी तो बात करेंगे। मैंने नंबर मांग लिया। कल दोपहर बाद खाली तो सोचा बात करूं। फोन किया तो पता चला कि वे सुभाष रोड पर हैं। मैं भी धर्मपुर में था तो मैंने उनसे कहा कि आता हूं। गुरुनानक वेडिंग प्वाइंट पहुंची तो उन्हें साइकिल के साथ खड़ा पाया। काली पैंट, व्हाइट शर्ट और मैचिंग टाई पहने। हम दोनों वैडिंग प्वाइंट चले गये। मैं वहां दीवार के साथ बनी एक सीमेंट की सिल्ली पर बैठ गयी  और उन्हें एक कुर्सी पर बिठा दिया। मैंने नाम पूछा, बोले प्रकाश नांगिया। क्या करते हो? इलेक्ट्रिशियन हूं। मैंने उन्हें उत्तरजन टुडे मैगजीन दी और कहा कि मैं उनका इंटरव्यू करना चाहती  हूं। वह गौर से पत्रिका के पन्ने पलटने लगे। दो-तीन स्कूलों के एड थे। उन्हें देखकर बोले, इन स्कूलों में काम दिला दो। मैंने कहा, आप क्या काम कर सकते हो, बोले, बिजली का हर काम आता है। मसलन, पंखा, फ्रिज, एसी, वायरिंग आदि। बिजली वायर भी सप्लाई कर लेता हूं। इस बीच उनकी नजर पैंट पर गयी तो कुछ हल्की सी मिट्टी लगी थी। उसे झाड़ने लगे। प्रकाश नांगिया 84वें साल में हैं। गर्व से बताते हैं कि उनके पिता युधिष्ठिर नांगिया पांच भाई थे। सभी के नाम महाभारत के थे। पिता बिजली का काम करते थे। प्रकाश की स्कूलिंग सेंट थॉमस, सेंट जोजफ और दून कल्चरल सेंटर जो कि अब हेरिटेज स्कूल है, उससे हुई। तीन भाइयों और एक बहन में सबसे बड़े थे। राजपुर रोड पर इलेक्ट्रिशियन की दुकान थी। मुझे कहा, लिखो नांगिया एंड कंपनी और हां, ब्रैकेट में लिखना (1932) मैंने  होले से मुस्करा दिया। 1932 से शुरू की गयी दुकान वह आज भी चला रहे हैं लेकिन जीवन के थपेड़ों से पता नहीं क्या मिला कि आज भी किराए के मकान में रह रहे हैं। नांगिया सामाजिक मुद्दों में लगातार भागीदारी करते रहे हैं। प्रकाश नांगिया ने शादी नहीं की। मैंने छेड़ा, ‘क्या किसी से प्यार हो गया था? धोखा दिया उसने?‘ बोले, निजी बातों में मत जाओ, लंबी कहानी है। वह कहते हैं कि संयुक्त परिवार था तो उतनी ही समस्याएं भी थी। पिता अक्सर बीमार रहते थे तो स्कूल से आने के बाद दुकान संभालते। मैंने कहा कि जवानी में कमाया धन कहां है? हौले से मुस्करा कर बोले, नुकसान हो गया। बताऊंगा फिर कभी। नांगिया सुबह नाश्ते में एक परांठा और चाय लेते हैं। दिन में कुछ नहीं खाते। रात को भी परांठा ही खाते हैं। मैंने पूछा, अब महीने में कितना कमा लेते हो? बोले, कुछ तय नहीं। आज कितना कमाया, बोले, आज तो काम ही नहीं मिला। मैंने पूछा क्या आप चाय पीएंगे? स्वाभिमानी ऐसे कि बोले, चलो, पीते हैं, लेकिन बिल मैं दूंगा। हैं मेरे पास पैसे, कहकर पर्स निकालने लगे। मैंने कहा, नहीं, बिल मैं दूंगी , लेकिन वह नहीं माने तो मैंने चाय की बात यह कहकर टाल दी कि आपके घर । मैं और कुरेदना चाहती   लेकिन मंजे हुए खिलाड़ी की तर्ज पर उन्होंने कहा कि घर आओगे तो बताउंगा। फिर कुछ विजिटिंग कार्ड निकालकर मुझे दिये और कहने लगे, मुझ पर कुछ लिखना-विखना बाद में, पहले मुझे काम दिलवाओ। मैंने उन्हें वादा किया कि हरसंभव कोशिश । जाते समय मैंने उनकी साइकिल के हैंडिंल में लटके बैग की ओर इशारा किया कि इसमें क्या है, मासूम सी हंसी के साथ बोले, बिजली के औजार हैं और कुछ कागज-पतर। मेरे जीवन भर की जमा-पूंजी।

पूर्णिमा की ट्विटर पोस्ट से  साभार

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