MP BJP:माफ करो..नहीं..नहीं..साथ रहो महाराज

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MP BJP: माफ करो..नहीं..नहीं..साथ रहो महाराज

पिछले विधानसभा चुनाव याने 2018 में समूचे मध्यप्रदेश में एक नारे ने बेहद लोकप्रियता प्राप्त की थी-माफ करो महाराज। इसे भाजपा ने उछाला था और जनता ने हाथोहाथ लिया था। दिन फिरे और वे ही महाराज तारणहार बनकर फरवरी 2019 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गये और उनके इस हृदय परिवर्तन की वजह से मप्र में कांग्रेस की लुटिया डूब गई और भाजपा सत्ता की नाव पर सवार हो गई। अब यह नारा पलट चुका है। नया नारा हो गया है-साथ रहो महाराज। यह गुरु मंत्र दिया है देश के गृह मंत्री और भाजपा के शीर्ष नेता अमित शाह ने। वे 20 अगस्त को ग्वालियर में प्रदेश कार्य समिति की बैठक लेने आये थे, जहां शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह गुरु मंत्र दे गये हैं कि मप्र में भाजपा की सरकार बनानी है तो दोनों को कंधे और कदम मिलाकर चलना होगा। इसका आगाज पिछोर के दौरे से हो भी चुका है, जहां मुख्यमंत्री ने संयुक्त दौरे में घोषणा की है कि यदि क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी को विजयी बनाया तो पिछोर को जिला बना दिया जायेगा।

 

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यह अनायास नहीं हुआ, बल्कि जब से अमित शाह ने मप्र की कमान हाथ में ली है, वे पूरे समय प्रत्यंचा पर तीर चढ़ाये हुए हैं। मप्र में भारतीय जनता पार्टी की कमजोर स्थिति की निरंतर मिल रही सूचनाओं के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने प्रत्यक्ष दखल प्रारंभ कर दिया है। मोदीजी जहां करीब दो माह में तीन बार मप्र आ गये, वहीं अमित शाह 22 जून से 20 अगस्त तक पांच बार(22 जून,10 जुलाई,20 जुलाई,26 जुलाई व 20 अगस्त) मप्र का फेरा लगा चुके हैं। वे जब भी आते हैं, संगठन के नट-बोल्ट कसकर जाते हैं। जरूरत पड़ने पर इनमें ऑइल भी डाल जाते हैं, ताकि चर्र-चर्र की आवाज न आये। नतीजा सामने आने लगा है।

मप्र में कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीनकर भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही सिंधिया को लेकर ऊहापोह बनी रही है। उन पर व उनके साथ आये कांग्रेसी समर्थकों पर भाजपाई संस्कृति न अपनाने के मसले उठते रहे हैं। उनके 18 समर्थकों को विधानसभा के उप चुनाव के टिकट देने के बाद असंतोष भी बढ़ता रहा, ,किंतु सत्ता आने के संतोष ने उनके मुंह बंद रखे। अब, जबकि नवंबर 2023 में विधानसभा के चुनाव हैं तो यह मुद्दा भी बार-बार उछलता रहता है। इस चिंगारी को आग बनने से रोकने के लिये ही मोदी-शाह ने मोर्चा संभाला और राख में दबी और ऊपर भी दिख रही चिंगारी पर पानी डाल दिया गया लगता है।

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हाल ही के ग्वालियर प्रवास में शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एकजुट होकर चुनाव मैदान नहीं संभाला तो भाजपा मुश्किल में आ सकती है। यह एक तरह से दोनों दिग्गजों के लिये चेतावनी भी थी और अवसर भी। दोनों इस बात से सिद्धांतत: सहमत हुए और क्रियान्वयन भी प्रारंभ कर दिया है। दोनों का पिछोर दौरा इसकी शुरुआत है। इन दोनों को साथ लाने के पीछे अमित शाह की भाजपा संगठन की बेहतरी की दृष्टि से दूरंदेशी तो है ही, वे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की जोड़ी के प्रभाव को भी कम करना चाहते हैं।

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दरअसल, लंबे अरसे से दिग्विजय सिंह प्रदेश भर में घूमकर कांग्रेस को मजबूती देने में लगे हैं। वे कमलनाथ को गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री पद का देवेदार भी बता देते हैं। उनकी मंशा भी यही है कि पिछली सरकार गिरने के लिये उन्हें जिम्मेदार ठहराने की जो चर्चायें होती हैं, उसका खामियाजा कांग्रेस की सरकार बनावाकर पूरा कर दिया जाये। इसलिये प्रदेश कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं की असहमति के बावजूद दिग्विजय सिंह कमलनाथ के पीछे खड़े नजर आते हैं। ऐसे में यदि इस बार दिग्गी-नाथ मिलकर चुनाव परिक्रमा करते दिखें तो हैरत नहीं होगी। याद होगा, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही चेहरा थे । अमित शाह ने कांग्रेस की दिग्गी-नाथ की जोड़ी के जवाब में ही शिव-सिंधिया की जोड़ी को आगे किया है। यदि ये दोनों पूरे मन से साथ में लगे रहे तो नतीजों को भाजपा के पक्ष मे करने में सफलता मिलना आसान हो जायेगा।

वैसे भी गौर करें तो सिंधिया ने हाल ही में कहा है कि उनका कोई अलग से समर्थक नहीं है, बल्कि भाजपा का कार्यकर्ता ही उनका समर्थक हैं और वे भाजपा के समर्थक हैं। टिकट वितरण में भी यदि सिंधिया ने यही दृष्टिकोण रखा और बगावत को रोके रखा तो भाजपा को इसका फायदा ही होगा । देखना होगा कि भाजपा की यह नई जोड़ी किस तरह से प्रदेश के दौरे कर माहौल को अपने पक्ष में करने के लिये जुटेगी।