MP की शराब नीति:क्या लिखूं और क्या कहूं…

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MP की शराब नीति:क्या लिखूं और क्या कहूं…

कभी-कभी यह समझ नहीं आता है कि क्या लिखूं और क्या कहूं। मुद्दे बिखरे हैं, लेकिन समझ नहीं आता कि क्या वास्तव में लिखा जाना चाहिए। तो दूसरी तरफ बहुत सारे मुद्दे एक साथ आवाज देते हैं कि आज मुझ पर लिखो, आज मुझ पर लिखो। खैर चलो आज कुछ मन की बातें ही कर लेते हैं अलग-अलग बड़े मुद्दों को समेटे हुए।

मध्यप्रदेश में इन दिनों सबसे चर्चित मुद्दा अगर कोई है, तो वह है आने वाली नई शराब नीति के इंतजार का। यह इंतजार शराब पीने वालों को नहीं है, बल्कि बेसब्री से इंतजार है शराबबंदी या शराब बिक्री पर शिकंजा कस शराबियों की सेहत की चिंता करने वाली मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को। यह बात और है कि जब वह 2003 में मुख्यमंत्री बनी थीं, तब उन्होंने इस दिशा में नहीं सोचा वरना आज मध्यप्रदेश में करीब बीस साल से दूध की गंगा बह रही होती। शायद ही शराबबंदी के बाद कोई मुख्यमंत्री नीति पलटने का दुस्साहस जुटा पाता। पर जनहित के मुद्दे पर देर ही सही, पर कदम जब आगे बढ़ जाए तब ही भला। साध्वी उमा भारती ने 11 फरवरी 2023 को ट्वीट किया कि आज सुबह कुछ समाचार पत्रों में मैंने पढ़ा कि मध्यप्रदेश की शराबनीति जो कि 31 जनवरी को घोषित होनी थी वह अभी तक मेरी वजह से अटक गई है।यह तो सच है की 31 जनवरी को शराबनीति घोषित नहीं हुई किंतु तथ्य यह है कि 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में नवरात्रि के अष्टमी को बाबा रामदेव जी, चिन्मय पण्ड्या जी (गायत्री परिवार), कमलेश दाजी (समाजसेवी), सभी धर्मों के प्रतिनिधि संत तथा मैं भी वहाँ थी।भरी सभा में, लाइव टेलीकास्ट में शिवराज जी ने यह घोषणा की थी कि आप सबसे परामर्श करके ही नई शराबनीति घोषित होगी।मैंने तो अपने परामर्श 31 जनवरी से पहले ही भेज दिए। अब शायद बाक़ियों से परामर्श चल रहा होगा।…खैर अब यह तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही बता सकते हैं कि इन दिनों नई शराबनीति को लेकर उनके मन में क्या हलचल मची है। किसके परामर्श आ गए, किसके आने बाकी हैं और शराबनीति कब आ पाएगी?

MP की शराब नीति:क्या लिखूं और क्या कहूं...

दूसरा बड़ा मुद्दा यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इन दिनों रोज सुबह एक-एक सवाल लेकर आमने-सामने आ जाते हैं। मजे की बात यह है कि सवाल दोनों तरफ से होते हैं, पर जवाब कहीं से नहीं आता और जनता तमाशबीन बनी रह जाती है। पर यह बात तो तय है कि 2023 दिसंबर में तो जवाब आना तय है जनता की तरफ से और तब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा कि किसके सवाल जनता को सही लगे और किसके गलत। खैर पिछला विधानसभा चुनाव याद आ ही जाता जब ‘माफ करो महाराज’ जैसा चुनावी नारा दम भर रहा था और चुनाव में आमने-सामने शिवराज और महाराज थे। अब इस बार तो शिवराज-महाराज एक पाले में नजर आएंगे और चुनाव में तो शिवराज-कमलनाथ ही मुख्य रूप से आमने-सामने नजर आएंगे।

सही-गलत जैसे शब्द कभी-कभी मन को बेचैन कर देते हैं। अब संघ प्रमुख मोहन को ही ले लें, तो उन्होंने ऐसी भागवत पसारी है… जिसमें यह समझ ही नहीं आता कि सही क्या है और गलत क्या है। जाति-वर्ण के लिए पंडित गलत है तो पूरा सनातन ही गर्त में जाता नजर आता है। पंडित का मतलब ब्राह्मण से नहीं बल्कि विद्वान से है, यह भी मान लें तो क्या ब्राह्मण विद्वान नहीं हैं। और ऐसा भी नहीं कि क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में विद्वानों की कमी थी। फिर आखिर क्या पंडित शब्द क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र विद्वानों के लिए भी प्रयुक्त है? खैर अब यह मुद्दा पुराना हो गया है, इसलिए सही-गलत अपने-अपने हिसाब से समझ लो। ऐसे बहुत सारे मुद्दे हैं जिन पर बहस के बाद भी कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाता।

और देश में संसद का सत्र चल रहा है और विपक्ष को अडानी के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा। तो सत्ता पक्ष को अडानी कहीं नजर नहीं आ रहा। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छाती ठोककर साफ कर दिया है कि करोड़ों परिवारों का उनका सुरक्षा कवच कांग्रेस की उनके खिलाफ कोई बात मानने वाला नहीं है। मतलब यह भी है कि 2024 में भी विपक्ष चाहे अडानी रटे या अंबानी, पर सरकार तो मोदी की ही आनी। सो राहुल गांधी के सवालों का जवाब अब सवा साल बाद मिल ही जाएगा…। ऐसा ही शायद मध्यप्रदेश में शिवराज सोच रहे होंगे कि नौ माह बाद कमलनाथ को उनके सवालों का जवाब जनता ही दे देगी, क्योंकि यहां तो दोहरा सुरक्षा कवच यानि मोदी का भी और शिवराज का साथ-साथ दोहरी ताकत से काम करेगा। तो कमलनाथ के मन में भी कुछ होगा और शायद वह भी यही सोच‌ रहे होंगे कि जवाब मिलना तो तय है…नौ माह का इंतजार करो शिवराज…। अब और क्या लिखूं और क्या कहूं…आज इतना ही काफी है।