TRP बढ़ाने वाले हैं मुरली के बयान…माइक्रो बूथ प्लानिंग पर है भाजपा का ध्यान…

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कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट

भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव की जब-जब पत्रकार वार्ता होती है, तब-तब कांग्रेस को घर बैठे एक मुद्दा मिल ही जाता है। कांग्रेस भी उस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती है लेकिन दु:ख की बात यह है कि कांग्रेस के हाथ कुछ नहीं आता। उपचुनावों से पहले मुरलीधर का यह बयान कि यदि पार्टी ने किसी नेता को कई बार सांसद-विधायक बनाया है और उसके बाद भी वह टिकट मांगता है तो वह नालायक है।

कांग्रेस ने भाजपा के उन वरिष्ठ नेताओं की तरफदारी करने में कोई देर नहीं की थी, जिनके लिए राव ने इस बयान के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की थी कि वे नए चेहरों के लिए स्थान खाली करें और खुद पद पर बने रहने और बार-बार टिकट की लालसा का त्याग करें। इस बयान पर खूब हो हल्ला हुआ था लेकिन न तो राव ने माफी मांगी थी और न ही उपचुनावों में कांग्रेस उनके इस बयान को भुनाने का कोई जतन ही कर पाई थी।

और अब उपचुनावों के बाद अपनी पत्रकार वार्ता में सवालों का जवाब देते हुए मुरली बोल पड़े कि ब्राह्मण और बनिया तो हमारी जेब में है। उन्होंने इसकी व्याख्या भी की, कि पहले ब्राह्मण और बनिया हमारी पहचान बन गई थी, लेकिन अब हमारा फोकस आदिवासी, एससी और ओबीसी पर है ताकि सबका साथ सबका विकास की संकल्पना को मूर्त रूप दिया जा सके। पार्टी में इन वर्गों की सीटें बढाए जाने की बहुत गुंजाइश है, जिस दिशा में पार्टी अब आगे कदम बढ़ा रही है।

बात तो मुरली ने पार्टी की अगली रणनीति पर भी की थी कि पार्टी अब फिफ्टी प्लस प्रतिशत वोट हासिल करने की रणनीति पर अमल करने जा रही है। दस प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल करने के इस लक्ष्य को भेदने के लिए पार्टी बूथ लेवल माइक्रो मैनेजमेंट की योजना पर काम करेगी। जिस बूथ पर पार्टी को अभी जितने वोट मिले थे, उनमें दस प्रतिशत से ज्यादा इजाफा कर पार्टी अपने खाते में फिफ्टी वन या इससे ज्यादा मत हासिल करेगी।

और पार्टी विरसा मुंडा की जयंती पर भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में आदिवासी गौरव सम्मेलन आयोजित कर आदिवासी मतदाताओं पर फोकस कर रही है। तो एससी और ओबीसी भी पार्टी के एजेंडे में शामिल हैं। उन्होंने कांग्रेस के वंशवाद पर भी निशाना साधा था, तो दिग्विजय को भाजपा की जीत का किरदार भी बताया था।

खैर  पत्रकार वार्ता और पार्टी के महत्वपूर्ण लक्ष्य परदे के पीछे रह गए और स्क्रीन पर फिलहाल दिख रहा है मुरली का वह बयान जिसमें सफाई देते हुए उन्होंने अपनी पार्टी की मंशा जताई थी कि ब्राह्मण और बनिया तो हमारे हैं ही, अब हम एसटी, एससी और ओबीसी को भी इनकी तरह ही पार्टी से जोड़कर बड़े लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने का मन बना चुके हैं। हिंदी के शब्दों पर खुलकर बैटिंग कर पाने में अक्षम मुरली के बयान कहीं उनकी टीआरपी बढ़ाने के अचूक अस्त्र तो साबित नहीं हो रहे हैं। फिलहाल लगता तो कुछ ऐसा ही है।

कांग्रेस ने जब इस मामले को तूल देने की कोशिश की और मुरली से माफी मंगवाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का ट्वीट मार्केट में आया तो मुरली ने और भी ज्यादा खुलकर बल्लेबाजी करते हुए कांग्रेस और कमलनाथ दोनों को ही आड़े हाथों लेने में देर नहीं की। कमलनाथ को उन्होंने आइना दिखाया कि कुछ लोग उम्र से बढ़े हो जाते हैं लेकिन मन से बढ़े नहीं हो पाते।

कांग्रेस और कांग्रेस के नेता दशकों से देश को गुमराह करते रहे हैं, तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करते रहे हैं…वगैरह वगैरह। यानि मुरली ने वह सब कह दिया जो कांग्रेस के लिए भाजपा अक्सर कहती रहती है। और इस बयान की प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने एक बार फिर मुरली का भाजपा नेताओं को नालायक कहने वाला बयान याद दिलाया और ब्राह्मण-बनिया वाला बयान याद दिलाते हुए माफी मांगने की बात कही।

और कमलनाथ का बचाव कहते हुए मुरली की तरफ इशारा किया कि कुछ लोग पद में , क़द में बड़े हो जाते है लेकिन बुद्धि से कभी बड़े नहीं हो पाते हैं। यानि कि मुरली ने पूरे दिन का कवरेज खुद पर केंद्रित करवाने में पूरी तरह से सफलता हासिल कर ही ली। और कांग्रेस के हिस्से में कुछ भी नहीं आया, सिवाय मुरली राग अलापने के।

अब मुरली यह सब सुनियोजित तरीके से करते हैं या फिर भाषाई नियंत्रण की कमी के चलते शब्दों का तालमेल न बिठा पाने से भाव और अर्थ में जमीन-आसमान का अंतर दिखने लगता है…यह तो मुरली ही बता सकते हैं। लेकिन यह बात साफ है कि वह फ्रंटफुट पर खेलते हैं और टीआरपी भी मनचाही मिलती है।

माफी मांगने से कोसों दूर रहते हैं और माफी मांगने वाली कांग्रेस और उसके नेताओं की क्लास लेने का मौका भी नहीं छोड़ते। बार-बार टिकट मांगने वाले नेताओं को नालायक कहने वाले उनके बयान से भाजपा कार्यकर्ता उलटे खुश ही हुए होंगे।

तो आज जिस ब्राह्मण-बनिया बयान को कांग्रेस तूल दे रही है, उससे पार्टी पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं की सेहत पर तो कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के मतदाता जरूर कहीं न कहीं फील गुड कर रहे होंगे। और मत का गणित देखें तो जीत का समीकरण इनके मतों से ही निकलना तय है। अब मुरली जानें, भाजपा जाने, कांग्रेस जाने और राजनीतिक विश्लेषक जानें कि आखिर चल क्या रहा है मध्यप्रदेश में।