My First Election Duty: 47 साल पहले की मेरी पहली चुनाव ड्यूटी
फ़रवरी 1977 के एक रविवार को मेरे ई-टाइप के छोटे से क्वार्टर में दोपहर को एक आरक्षक आया और उसने मुझे पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुँचने के लिए कहा। मैं खंडवा में ASP के रूप में अपनी जिला ट्रेनिंग ख़त्म कर चुका था तथा नियमित पोस्टिंग की प्रतीक्षा कर रहा था। मेरे पास अपना कोई वाहन नहीं था इसलिए मैं पैदल रवाना हो गया। रविवार के दिन खंडवा में ज़िले के सभी ज़िला कार्यालयों एवं न्यायालयों का परिसर ख़ाली पड़ा था, परंतु पुलिस अधीक्षक कार्यालय में पुलिस अधीक्षक श्री बी एल तारन बैठे हुए थे। उन्होंने मुझे पुलिस मुख्यालय के एक आदेश की कार्बन कापी दी जिसमें मुझे बैतूल ज़िले में इंदिरा गाँधी की आम सभा में ड्यूटी के लिए जाना था। आदेश में यह भी लिखा था कि मैं अपनी जीप लेकर जाऊँ। विडंबना यह थी कि मेरे पास कोई जीप ही नहीं थी। श्री तारन ने मुझे बताया कि पुलिस लाइन में एक जीप में चारों नये टायर लगाकर तैयार करने के लिए उन्होंने कह दिया है और उसे लेकर मैं अगले दिन रवाना हो जाऊँ। उन्होंने आम सभा में कुछ सावधानियों के लिए जानकारी दी।
25 जून, 1975 को इन्दिरा गाँधी ने आपातकाल लगाकर जनता के मूलभूत अधिकारों को निलंबित कर दिया था और सभी विपक्षी नेताओं तथा प्रमुख कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में जेल में डाल दिया था। भारतीय प्रजातंत्र का वह एक दुखद क्षण था। इंदिरा गाँधी ने 19 महीने बाद 18 जनवरी, 1977 को लोक सभा के आम चुनाव की घोषणा कर दी। चुनाव के लिये राजनीतिक नेताओं को रिहा कर दिया गया परन्तु, आपातकाल जारी रहा। दो दिन बाद ही चार विपक्षी दलों ने एकजुट होकर जनता पार्टी बना ली। 16 से 20 मार्च के बीच चुनाव होना था।
सोमवार को मैं अपनी प्रथम अधिकृत हल्के भूरे रंग की जीप में SAF के आरक्षक ड्राइवर राकेश सिंह के साथ बैतूल रवाना हुआ। खंडवा से हरसूद पहुंचकर एक पतली सी सड़क से सुंदर और और फ़रवरी में हरे-भरे। जंगलों के बीच से होते हुए चिचौली मार्ग से छह सात घंटे में बैतूल पहुँचा। वहाँ पहुँचकर पता चला कि आम सभा आमला में है। मैं आमला पहुँचा और वहाँ रेस्ट हाउस में मेरा प्रबंध था। दूसरे कमरे में पहले से ही एक वरिष्ठ और सेवानिवृत्ति के नज़दीक कमांडेंट माधव सिंह रूके हुए थे। कमांडेंट माधव सिंह बहुत अनुभवी अधिकारी थे। मुझ प्रोबेशनर अधिकारी को देखकर वे कुछ निराश से दिखे, फिर भी उन्होंने मेरा मनोबल बढ़ाया। उस ज़माने में केवल हम दो अधिकारी ही पूरी सभा के लिए बाहर से आए थे जबकि आजकल अनेक वरिष्ठ IPS अधिकारी बुलाए जाते हैं।
अगले दिन बैतूल के पुलिस अधीक्षक श्री एस एम शुक्ला आमला आए और उन्होंने एक टेंट के नीचे अपने ज़िले के अधिकारियों और हम दोनों बाहरी अधिकारियों को ब्रीफ़िंग के लिए एकत्र किया। उन्होंने इंदिरा गांधी का पूरा कार्यक्रम समझाया तथा किसको कैसे ड्यूटी करनी है इस पर प्रकाश डाला। मुझे मंच तथा उसके आस पास के क्षेत्र का इंचार्ज बनाया गया। कमांडेंट माधोसिंह को जनता के सभी सेक्टरों का इंचार्ज बनाया गया। दोपहर बाद सभी पुलिस अधिकारी और कर्मचारी सभा स्थल पर अपनी-अपनी ड्यूटी के स्थान पर रिहर्सल के लिए खड़े किए गए।पहली बार मैंने बॉंस बल्लियों की बैरिकेडिंग देखी थी तथा जनता के बैठने के सेक्टरों और बीच में फ़ोर्स के चलने की गैलरी देखीं। पुलिस अधीक्षक श्री शुक्ला ने सभा स्थल पर सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिये और फिर रिहर्सल समाप्त हुआ। सर्किट हाउस में कमांडेंट माधो सिंह जी के लिए डिनर की विशेष व्यवस्था की गई थी। उन्होंने डकैती क्षेत्र की ढेरों घटनाएँ मुझे सुनाई। अगले दो दिन तक सुबह और शाम लगातार आम सभा का रिहर्सल चलता रहा।
इंदिरा गाँधी का आगमन निकट के एयर फ़ोर्स के मैदान में बने हेलीपैड पर हुआ। वहाँ से वह खुली जीप में मंच तक आयी। उनके मंच पर आते ही मैं तनावग्रस्त हो गया तथा चारों ओर सतर्क निगाहों से देखता रहा। मैं इन्दिरा गांधी के भाषण को सुनने के लिए बड़ा उत्सुक था परंतु उस ड्यूटी के समय मैं कुछ भी नही सुन सका। इंदिरा गांधी के जाने के बाद सबने राहत की साँस ली। अधिकारियों को एकत्र कर पुलिस अधीक्षक श्री शुक्ला ने धन्यवाद दिया।अगले दिन मैं अपनी जीप में ड्राइवर राकेश सिंह के साथ जंगलों का आनंद लेते हुए वापस खंडवा आ गया। ड्राइवर राकेश सिंह की बाद में आसाम की बग़ावत में महत्वपूर्ण भूमिका का वर्णन एक संस्मरण में मैं कर चुका हूँ। संयोगवश कालांतर में मैं बैतूल का पुलिस अधीक्षक भी बना।
20 मार्च को खंडवा में मतगणना स्थल पर मेरी ड्यूटी लगायी गई। 1977 के इस चुनाव परिणाम में इंदिरा गाँधी स्वयं और उनकी सरकार आश्चर्यजनक रूप से हार गई। 21 मार्च को आपातकाल हटा लिया गया और तीन दिन बाद मोरारजी देसाई की सरकार आ गई।