Flashback: पुलिस मुख्यालय में मेरा जीवन

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लगभग एक वर्ष तक पुलिस मुख्यालय मे AIG सिक्योरिटी रहने के पश्चात मई, 1987 में मैं AIG स्पेशल ब्रांच जनरल के पद पर इंटेलिजेंस शाखा में ही पदस्थ हो गया। मेरे समकक्ष अधिकारियों मे यह इंटेलिजेंस शाखा के साथ ही पुलिस मुख्यालय में भी तब महत्वपूर्ण पद था। पुलिस मुख्यालय में जब पहली बार दो नई मारुति जिप्सी आयीं तो उसमें से एक मुझे और एक AIG प्रशासन शाखा को दी गई।

एक नये आत्मविश्वास के साथ मैंने कार्य करना प्रारंभ किया।इस पद पर शाखा के प्रशासनिक एवं अन्य कार्यों के अतिरिक्त टॉप सीक्रेट शाखा भी मेरे कार्यक्षेत्र में थी जिसमें सभी प्रकार की संवेदनशील जानकारियां होती थीं। इंटेलिजेंस शाखा के प्रमुख श्री नटराजन दिसंबर 1986 में ही DGP बन गये थे। वे प्रत्येक शुक्रवार को सभी अधिकारियों की बैठक लेते थे जिसमें सभी AIG को ही सारी जानकारियां एवं पूरक उत्तर देने पड़ते थे। इसके लिए बहुत परिश्रम से तैयारी करनी पड़ती थी ताकि सार्वजनिक रूप से मीटिंग में असमंजस की स्थिति में न पड़ना पड़े।

श्री नटराजन के इंटेलिजेंस शाखा से जाने के पश्चात श्री नरेंद्र प्रसाद इस शाखा के प्रमुख बने। वे सौम्य एवं गंभीर व्यक्तित्व के अत्यधिक परिश्रमी अधिकारी थे। वे कोई भी प्रतिवेदन या टीप बहुत स्पष्ट और अच्छा लिखा हुआ चाहते थे। इसके लिए मुझे बहुत परिश्रम करना पड़ता था। प्रतिदिन रात 8 बजे घर लौटने का समय होता था। सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन इसके पश्चात कुछ ही समय के लिए रहता था।

पुलिस मुख्यालय में मेरे लिए सबसे वॉंछनीय क्षण लंच का समय होता था। लंच के लिए वरिष्ठतम AIG CID श्री ए एस औलख का कक्ष एकत्र होने का स्थान था। वहाँ मेरे साथ मेरे बैच मैट्स अलिंद जैन और राजीव माथुर और AIG स्थापना दिलीप कापदेव एकत्र होते थे। हम लोगों के घरों से आए हुए लंचबॉक्स खोलकर हम सब लोग मिल बांटकर खाते थे।कभी कभी न्यू मार्केट से वाडीलाल की आइसक्रीम बुलवा लिया करते थे। भोजन के साथ गपशप का क्रम चलता था जिसमें सभी प्रकार की मनोरंजक सूचनाएँ प्राप्त होती थी। हम लोग अपने वरिष्ठ अधिकारियों के ऊपर निडर होकर टीका-टिप्पणी किया करते थे। कभी-कभी विघ्न स्वरूप किसी कार्य से DGP हम में से किसी को लंच से ही बुलवा लेते थे।

बहुधा मुख्यमंत्री के बदलते ही पुलिस मुख्यालय में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाते हैं। 13 फ़रवरी, 1988 को अचानक तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोतीलाल वोरा ने पद से त्यागपत्र दे दिया और श्री अर्जुन सिंह दोबारा मुख्यमंत्री बन गये। उन्होंने आते ही उनके साथ पूर्व में रहे DGP श्री बी के मुखर्जी को फिर से DGP बना दिया। इंटेलिजेंस शाखा के प्रमुख के रूप में IG अशोक पटेल को पदस्थ कर दिया।

श्री अर्जुन सिंह इंटेलिजेंस शाखा को बहुत महत्व देते थे। अब इस शाखा की कार्य पद्धति बहुत परिवर्तित हो गयी थी।गहन विश्लेषण के स्थान पर तत्काल सूचना देने का अधिक महत्व हो गया था। किसी भी घटना या राजनीतिक सूचना की जानकारी तथा संभावित प्रतिक्रिया की जानकारी तुरंत मुख्यमंत्री को देना आवश्यक हो गया था। एक बार श्री अर्जुन सिंह ने IG श्री पटेल को बुलाकर किसी विशेष घटना की समय पर जानकारी न देने पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की। श्री पटेल ने अगले दिन सुबह कार्यालय में आते ही मुझे बुलाकर पूछा कि मैंने उस सूचना की जानकारी उन्हें क्यों नहीं दी।

मैंने उन्हें बताया कि उस सूचना का प्रतिवेदन बनाकर तत्काल की पताका ( झंडी) लगा कर मैंने अपने से वरिष्ठ DIG को नियमानुसार समय पर प्रस्तुत कर दिया था। कार्यालयीन प्रक्रिया के अनुसार कोई भी जानकारी सीधे IG को नहीं भेज सकता था। उन्होंने तुरंत एक कार्यालय आदेश जारी करके निर्देशित किया कि सभी तात्कालिक एवं टॉप सीक्रेट जानकारियां DIG को न भेजते हुए मैं सीधे उन्हें प्रस्तुत करूँ और उन्हें व्यक्तिगत या टेलीफ़ोन पर सूचित करूँ। यह एक असामान्य प्रक्रिया थी जिसमें बीच का स्तर हटा दिया गया था, लेकिन इससे मुख्यमंत्री को जानकारी समय पर मिलने लगी।

शासकीय कार्यों के तनाव के बीच यदा कदा अधिकारियों के अन्य कार्यक्रम भी हो जाते थे। एक बार सभी अधिकारी सपरिवार हलाली डैम अवकाश के दिन अविस्मरणीय पिकनिक मनाने गए। एक बार पुलिस मैस में बड़ा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें अनेक कार्यक्रमों के साथ एक क़व्वाली की प्रस्तुति भी हुई। मैं और मेरे साथी अधिकारी क़व्वाली की परंपरागत वेशभूषा व टोपी लगाकर बैठे और मैंने क़व्वाली में तबला बजाया।

जनवरी 1989 में जबलपुर हाईकोर्ट ने चुरहट लॉटरी प्रकरण में श्री अर्जुन सिंह की केरवा कोठी के संबंध में विपरीत टिप्पणी कर दी। आलोचना से बचने के लिए प्रधान मंत्री एवं कांग्रेस अध्यक्ष श्री राजीव गांधी ने श्री अर्जुन सिंह को हटाकर श्री माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाना चाहा और इसके लिए उन्होंने केंद्रीय प्रेक्षक भी भेजे। श्री अर्जुन सिंह श्री सिंधिया के लिए पूरी तरह असहमत थे और इसके लिए उन्होंने बग़ावत कर दी। शक्ति प्रदर्शन के लिए उनके समर्थक विधायक चार इमली स्थित वरिष्ठ मंत्री श्री हरवंश सिंह के निवास पर एकत्र होते थे। अंत में हाई कमान को झुकना पड़ा और श्री मोतीलाल वोरा को मुख्यमंत्री बनाए जाने के आश्वासन पर ही अर्जुन सिंह ने 23 जनवरी,1989 को त्यागपत्र दिया।इस राजनीतिक नाटक के समय इंटेलिजेंस शाखा की स्थिति विचित्र हो गई थी।

श्री मोतीलाल वोरा ने दुबारा मुख्यमंत्री बनते ही श्री नटराजन को पुनः DGP बना दिया। श्री नटराजन ने आते ही मुझे इंटेलिजेंस शाखा से परिवर्तित कर के AIG प्रशासन बना दिया। उस समय पुलिस मुख्यालय में अधिकारियों की संख्या आज की तुलना में बहुत कम हुआ करती थी, इसलिए अधिकारियों की जिम्मेदारियां और अधिकार बहुत अधिक थे। मेरी फ़ाइलें मेरे IG प्रशासन की टीप के बाद सीधे DGP को जाती थी।

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श्री नटराजन मुझ पर बहुत भरोसा करते थे और अनेक अवसरों पर फ़ाइलों पर मेरे IG से असहमत होते हुए मेरे सुझाव को स्वीकृत कर देते थे। मेरे कक्ष में बहुत चहल पहल रहती थी। भोपाल के बाहर से DGP से मिलने आने वाले अधिकारियों के लिए वह प्रतीक्षा कक्ष का कार्य करता था। इसके अतिरिक्त दिन भर कनिष्ठ अधिकारी भी अपनी समस्याएँ लेकर मेरे सम़क्ष आते रहते थे जिसका मैं यथासंभव निराकरण करता था। इस सब कारणों से दिन में मेरा काम नहीं हो पाता था।

देर शाम को ही फ़ाइलें पढ़ने और उन पर टीप लगाने का कार्य कर पाता था। एक बार सुखद आश्चर्य वाली घटना हुई। DGP श्री नटराजन से लौटी हुई एक फ़ाइल पर उनके निर्देश विषय से बिलकुल हटकर थे। उस में उन्होंने लिखा था कि AIG त्रिपाठी बहुत परिश्रम से कार्य कर रहे हैं और उन्हें कुछ दिन सपरिवार पचमढ़ी जाकर विश्राम करने की आवश्यकता है। यह एक अभूतपूर्व आदेश था जिसका मैंने सहर्ष पालन किया।

विधानसभा चुनाव के बाद 5 मार्च, 1990 को श्री सुंदरलाल पटवा की सरकार आ गई। पुलिस मुख्यालय के प्रस्ताव पर गृह मंत्री श्री शीतला सहाय ने अपने गृह ज़िले ग्वालियर के लिए मेरे नाम का परीक्षण कर अनुशंसा की और मुख्यमंत्री श्री सुंदर लाल पटवा ने मुझे ग्वालियर SP पदस्थ कर दिया। 3 जून, 1990 को पुलिस मुख्यालय में ठीक चार वर्ष के कार्यकाल के बाद मैंने अपना कार्यभार सौंप दिया और अगले दिन ग्वालियर में अपना पदभार ग्रहण कर लिया।

पुलिस मुख्यालय का फ़ाइलों में उलझा हुआ और कार्यालय के दैनिक लंबे कार्य-घंटों का वह नीरस कालखंड भी अपनी विशिष्ट मधुर स्मृतियाँ मेरे जीवन में रखता है।