

एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति:”मेरी माँ “-
माँ एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति है जो हर किसी के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ‘मेरी माँ ‘श्रृंखला के माध्यम से हम अपनी माँ के प्रति अपना सम्मान,अपनी संवेदना प्रकट कर सकते हैं. महान साहित्यकार रुड्यार्ड किप्लिंग की वह गहरी बात “भगवान हर जगह नहीं हो सकता, इसलिए उसने माँ बनाई।” सच ही तो है, माँ हमारे जीवन की वह आधारशिला है, जिसके बिना इस संसार की कल्पना भी अधूरी है। यह कहते हुए अपनी माँ स्व.श्रीमती विद्या देवी कक्क्ड़ को याद कर रहें हैं उनके बेटे प्रवीण कक्कड़। वे राष्ट्रपति पदक से सम्मानित पूर्व पुलिस अधिकारी ,मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी रहे हैं। पिता की मृत्यु के बाद उनकी माँ ने एक निष्काम कर्मयोगी बन कर परिवार को संभाला और इसीलिए माँ हमेशा उनकी स्मृतियों में सेवा और समर्पण की साक्षात प्रतिमूर्ति के रूप में हैं. आइये हम इस संस्मरण से माँ के एक और रूप से मिलते हैं –सम्पादक -स्वाति तिवारी
8. My Mother Smt. Vidya Devi- माँ की देश प्रेम की भावना ने एक बेटे को पुलिस, दूसरे को सेना में भेजा-प्रवीण कक्कड़
सेवा और समर्पण का पर्याय थीं माँ विद्या देवी
मां कहती थीं जो भी कमाओ उस पर खुद के साथ समाज का भी अधिकार है
माँ, एक ऐसा शब्द जिसमें वात्सल्य, त्याग और निस्वार्थ प्रेम की संपूर्ण सृष्टि समाई हुई है। मेरे जीवन की हर सफलता, हर पहचान मेरी माँ स्वर्गीय विद्या देवी कक्कड़ की अथाह करुणा और अटूट विश्वास का ही प्रतिफल है। यह मात्र एक कथन नहीं, बल्कि मेरे अस्तित्व की वह अटूट सच्चाई है, जो हर पल मेरे हृदय में जीवंत रहती है। मेरी माँ, जो स्वास्थ्य विभाग में एक समर्पित मैट्रन थीं, सेवा और समर्पण की साक्षात प्रतिमूर्ति थीं। शिवपुरी में उनकी प्रतिष्ठा केवल उनके पद की वजह से नहीं थी, बल्कि हर ज़रूरतमंद मरीज़ के लिए उनकी तत्परता और मानवीयता के कारण थी। मैंने अपने बचपन से ही उनमें सेवा का जो भाव देखा, वह मेरे जीवन का मार्गदर्शन बन गया।
मुझे आज भी याद है, माँ को दफ़्तर जाने की कितनी भी जल्दी क्यों न हो, वह सुबह उठकर न केवल हमें स्कूल भेजने और भोजन की व्यवस्था करती थीं, बल्कि हर दिन हमें जीवन के व्यावहारिक और अनुशासित पहलुओं का पाठ पढ़ाने का प्रयास करती थीं। उनकी आँखों में देशसेवा सर्वोपरि थी। शायद यही कारण रहा कि उनसे प्रेरित होकर मैंने पुलिस सेवा को अपना जीवन पथ चुना, और मेरे छोटे भाई नरेश ने भी देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती होकर उनके आदर्शों को आगे बढ़ाया।

माँ अक्सर कहा करती थीं, “जीवन में जो कुछ भी हम अर्जित करते हैं, उस पर केवल हमारा या हमारे परिवार का ही अधिकार नहीं होता, बल्कि समाज का भी उतना ही हक होता है। इसलिए, हमें अपनी आय का एक हिस्सा समाज को अवश्य लौटाना चाहिए।” उनकी यह सीख मेरे हृदय में गहरे तक उतर गई। इसी ने समाज के प्रति मेरे मन में सेवा का अटूट भाव जगाया, और आज भी जब मैं या मेरा परिवार कोई भी सेवा कार्य करता है, तो वह माँ को ही समर्पित होता है।
मेरे विवाह के कुछ समय बाद, पिताजी का आकस्मिक निधन हमारे परिवार के लिए एक गहरा आघात था। उस कठिन समय में, माँ ने न केवल खुद को संभाला, बल्कि हमें माँ और पिता दोनों का प्यार और सहारा दिया। सच कहूँ तो, मेरी माँ एक निष्काम कर्मयोगी थीं। उन्होंने न केवल स्वयं निःस्वार्थ भाव से अच्छे कर्म किए और दूसरों की सेवा की, बल्कि हम बच्चों में भी सेवा और समर्पण के बीज बोए, जो आगे चलकर एक विशाल और फलदायी वृक्ष बन गया। आज मैं समाज के प्रति जो भी जिम्मेदारी निभा पाता हूँ, ऐसा लगता है कि मैं माँ के ही अधूरे सपनों को पूरा कर रहा हूँ।
आज समाज ने बहुत प्रगति कर ली है। आज महिलाएं कुशल शिक्षिकाएं हैं, बैंकर हैं, उद्यमी हैं, पुलिस अधिकारी हैं, राजनेता हैं, और यहां तक कि सैनिक भी हैं। पुराने समय में माँ की जिम्मेदारियाँ घर की चारदीवारी तक सीमित थीं, लेकिन आज की माँ घर और बाहर दोनों जगह अपनी जिम्मेदारियों को कुशलता से निभा रही हैं। आज उनमें मातृत्व और पितृत्व दोनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। जब मैं अपने बचपन की स्मृतियों में खो जाता हूँ, तो मुझे याद आता है कि मेरी माँ ने भी एक तरह से यह दोनों भूमिकाएँ निभाई थीं। पिताजी ने हमेशा अपनी जिम्मेदारी निभाई, लेकिन माताजी ने हमें साहस और सेवा का ऐसा अमूल्य पाठ पढ़ाया जो अब मेरे संपूर्ण अस्तित्व का अभिन्न अंग बन चुका है।
आज जब माँ केवल मेरी स्मृतियों और मेरी श्रद्धा में हैं, तब मुझे बार-बार ऐसा लगता है कि अगर उन्होंने इतनी मेहनत और लाड़-प्यार से मुझे न पाला होता, तो क्या मैं वह सब कर पाता जो आज मैं कर रहा हूँ? आज समाज में जो मेरी थोड़ी बहुत प्रतिष्ठा है, मेरे प्रयासों को जो थोड़ी बहुत सराहना मिलती है, या जो पुरस्कार और सम्मान मुझे मिले हैं, अंततः क्या वह सब मेरे अकेले के हैं? नहीं, वह तो उसी माँ का आशीर्वाद और उसी का अटूट विश्वास है।
मेरी प्यारी माँ विद्या देवी कक्कड़ को इस दुनिया से गए लगभग साढ़े नौ साल हो गए हैं, लेकिन उनकी भावनात्मक उपस्थिति आज भी मेरे साथ है। मेरे व्यक्तित्व, शिक्षा और स्वभाव पर सबसे अधिक प्रभाव उन्हीं का है। वह मेरी शाश्वत प्रेरणास्रोत हैं, और उन्हीं के आदर्शों पर चलकर मैं आज भी आगे बढ़ रहा हूँ। आज मेरे प्रयासों को सराहना मिलती है, या जो पुरस्कार और सम्मान मुझे मिले हैं, वह सब मेरी माँ का ही आशीर्वाद है। माँ का आशीर्वाद एक अदृश्य शक्ति बनकर हमेशा मेरे साथ चलता है।
अंत में, मुझे महान साहित्यकार रुड्यार्ड किप्लिंग की वह गहरी बात याद आ रही है, “भगवान हर जगह नहीं हो सकता, इसलिए उसने माँ बनाई।” सच ही तो है, माँ हमारे जीवन की वह आधारशिला है, जिसके बिना इस संसार की कल्पना भी अधूरी है। किप्लिंग ने तो यह कहा कि ईश्वर सब जगह नहीं हो सकता, इसलिए उसने माँ बनाई, लेकिन मैं तो यह कहता हूँ कि दुनिया में हर चीज़ हर जगह मिल सकती है, पर माँ और कहीं नहीं मिल सकती। वह तो बस एक ही होती है, अनमोल और अद्वितीय। जिसके लबों पर कभी बद्दुआ नहीं होती, जो कभी खफा नहीं होती, वह तो बस एक माँ ही है। और मेरी माँ, स्वर्गीय विद्या देवी कक्कड़, ऐसी ही एक अनमोल माँ थीं, जिनकी सेवा भावना और कर्म योग की ज्योति आज भी मेरे जीवन को प्रकाशित कर रही है।
प्रवीण कक्कड़
66.In Memory of My Father-shri Rajendra Yadav “पापा के नॉन-पापा-पन की बात” -रचना यादव