
Narottam Mishra: कभी संकटमोचक, अब मार्गदर्शक मंडल की ओर – मध्य प्रदेश की राजनीति में बदलता कद
भोपाल:Narottam Mishra: प्रदेश के पूर्व मंत्री और प्रदेश में सत्ता के कभी केंद्र में रहे ,कभी संकटमोचक की भूमिका में भी रहे- नरोत्तम मिश्रा अब कही मार्गदर्शक मंडल के रोल में कहीं सीमित तो नहीं किया जा रहे हैं? प्रदेश की राजनीतिक गलियारों में लगातार यह चर्चा चल रही है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में उनका कद लगातार कम होता जा रहा है। हेमंत खंडेलवाल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद तो अब ऐसा लगता है कि प्रदेश में नरोत्तम मिश्रा के कद और वरिष्ठता की अब पार्टी में कोई जगह बची नहीं है।
मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा का राजनीतिक सफर पिछले कुछ सालों में जबरदस्त उतार-चढ़ाव से गुजरा है। 2023 के विधानसभा चुनाव में दतिया सीट से हार के बाद उनके भविष्य पर सवाल उठे, जबकि इससे पहले वे गृह मंत्री, जनसंपर्क मंत्री जैसे अहम पदों पर रह चुके थे। *सीएम रेस* में भी उनका नाम कई बार आया, लेकिन हर बार समीकरण बदल गए और शिवराज सिंह चौहान बाजी मार ले गए।

बीजेपी की आंतरिक राजनीति और *प्लान लोटस* में भी मिश्रा को कई बार साइडलाइन किया गया। 2024 में प्रदेश अध्यक्ष या मंत्री बनने की अटकलें रहीं, लेकिन कोई बड़ा पद नहीं मिला। अब 2025 में मार्गदर्शक मंडल जैसी भूमिका की चर्चा है, जिससे साफ है कि पार्टी उनके अनुभव का सम्मान तो कर रही है, लेकिन निर्णायक जिम्मेदारी देने से बच रही है।
शिवराज सिंह चौहान की साइलेंट पॉलिटिक्स और अपनी टीम चुनने की स्टाइल ने मिश्रा की राह और मुश्किल कर दी। शिवराज की लोकप्रियता और केंद्रीय नेतृत्व से नजदीकी ने उन्हें हमेशा आगे रखा। मिश्रा के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा जब चुनाव हारने के बाद भी पार्टी में उनकी भूमिका सीमित होती चली गई—कई बड़े नेता उनके घर जरूर पहुंचे, लेकिन असली जिम्मेदारी हाथ नहीं आई।
कुल मिलाकर, नरोत्तम मिश्रा का सफर अब मार्गदर्शक मंडल की ओर बढ़ रहा है—कभी सुर्खियों में, कभी साइडलाइन, लेकिन राजनीति में उनकी अहमियत और अनुभव को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। क्या 2025 में वे फिर से कोई बड़ा रोल पा सकेंगे या मार्गदर्शक की भूमिका में ही सीमित रहेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।




