फिल्मों की कहानियों में नए-नए फंडे जोड़ना फिल्मकारों का पुराना शगल रहा है! क्योंकि, वे जानते हैं कि जब तक नए पंच नहीं होंगे, दर्शकों को बांधकर रखना मुश्किल होगा। यही कारण है कि फिल्मों में सीधी चलती कहानी में अचानक कोई ऐसा मोड़ आ जाता है, जो पूरी धारा बदल देता है। कभी हीरो का एक्सीडेंट हो जाता है और उसकी याददाश्त चली जाती है जैसे ‘हिना’ में होता है! कभी हीरोइन की याददाश्त वापस आ जाती है, जैसा ‘हादसा’ का क्लाइमेक्स था! ऐसे ही कहानियों में बदलाव प्राकृतिक आपदाएं ले आती है। कभी बाढ़ का जलजला तबाही ले आता है, कभी सूखा पड़ जाता है तो कभी भूकंप की विभीषिका फिल्म का कथानक ही पलट देती है। सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं, हॉलीवुड में इस तरह के प्रयोग तो बहुत ज्यादा होते हैं! हॉलीवुड की फिल्मों में तो अनपेक्षित हादसों को गढ़कर कहानी बनाई जाती है! हिंदी फिल्मों में अभी प्राकृतिक हादसों को बहुत कम फिल्माया गया! इक्का-दुक्का फ़िल्में ही ऐसी बनी जिसका कथानक पूरी तरह बाढ़, सूखे या भूकंप पर केंद्रित हो! जबकि, अंग्रेजी में ऐसी कई फ़िल्में बनी! हिंदी फिल्मों में यदि ऐसी घटनाएं जोड़ी भी गईं, तो कहानी में मोड़ लाने के लिए!
कई हिंदी फिल्मों के टाइटल जरूर इसे इंगित करते हुए रखे गए, पर फिल्म में ऐसा कुछ नहीं था! गुलजार की फिल्म का नाम ‘आंधी’ जरूर था, पर ये राजनीतिक फिल्म थी। राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘तूफान’ एक गुंडे की कहानी थी! फिल्मों में तेज आंधी, तूफान या बारिश के दृश्यों को सांकेतिक रूप से आने वाली आफत के रूप में दिखाया जाता रहा है। राज कपूर की पहली सफल फिल्म ‘बरसात’ ही थी। उनकी फिल्म ‘आवारा’ में भी जब पृथ्वीराज कपूर अपनी गर्भवती पत्नी को घर से निकाल देते हैं, तो अचानक तेज गरज के साथ बारिश होने लगती है। ‘मेरा नाम जोकर’ में जब राज कपूर फिल्म के तीसरे हिस्से में पद्मिनी का घर छोड़कर जाते हैं, तब कड़ाके साथ बिजली गरजती है और उस भारी बरसात में पद्मिनी उसे लौटने की गुजारिश करते हुए कहती है ‘अंग लगजा बालमा।’ राज कपूर की ही फिल्म ‘सत्यं शिवम् सुंदरम’ के अंत में बाढ़ का प्रलयंकारी दृष्य थे। पुल टूटने की वजह से पूरा गांव बर्बाद हो जाता है। लोग अपना गांव छोड़कर दूर चले जाते है। इन दृश्यों में बाढ़ से तबाही को बेहद संजीदगी से फिल्माया गया था। शशि कपूर और जीनत अमान की इस फिल्म के बाढ़ वाले दृष्य को राजकपूर ने खुद कैमरा लेकर अपने लोनी वाले फार्म हाऊस में आई वास्तविक बाढ़ के समय फिल्माया था।
राज कपूर की तरह ही महबूब खान ने भी बाढ़ के प्रभाव का उपयोग अपनी क्लासिक फिल्म ‘मदर इंडिया’ में किया। इस कालजयी फिल्म में कुदरत के कहर दिखाया था। सुनील दत्त और नरगिस की यह फिल्म हिंदी सिनेमा की एपिक फिल्मों में से एक है। दिखाया जाता है कि बाढ़ के आ जाने से पूरा गांव तबाह हो जाता है, खेती बर्बाद हो जाती है, खाने के लाले पड़ जाते हैं। किसानों को खुद बैलों की जगह हल से खेत जोतने पड़ते हैं। भुखमरी और प्लेग की बीमारी से गांव वाले परेशान हो जाते हैं। ‘मदर इंडिया’ उन फिल्मों में है, जो ऑस्कर के नॉमिनेशन तक पहुंचने में कामयाब रही थी। इसके अलावा ‘सोहनी महिवाल’ और ‘बैजू बावरा’ में भी बाढ़ को फिल्म के कथानक से जोड़ा गया था। बारिश और बाढ़ को मनोज कुमार ने अपनी फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ के पहले श्वेत-श्याम हिस्से में बहुत कलात्मकता से फिल्माया था। मनमोहन देसाई की फिल्म ‘सच्चा झूठा’ में राजेश खन्ना की बहन नाज के बाढ़ में फंसने का दृश्य था।
ऐसा नहीं कि हिन्दी फिल्मों में प्राकृतिक आपदा के नाम पर केवल बाढ़ का ही सहारा लिया गया है। जब बाढ़ पर बस नहीं चल पाया, तो फिल्मकारों ने भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा को फिल्म के कथानक में जोड़कर प्रस्तुत किया था। इसमें सबसे ज्यादा सफल रही बीआर चोपड़ा की फिल्म ‘वक्त’ जिसमें अभिनेता बलराज साहनी ने काम किया था और फिल्म में प्राकृतिक आपदा को फिल्माया गया। इसमें भूकंप से सब कुछ तबाह होने जिक्र था। शुरुआत में दिखाया जाता है, कि लाला केदारनाथ (बलराज साहनी) बहुत अमीर होते हैं। तभी एक भूकंप आता है और सब तबाह कर देता है। यहां तक कि उनका परिवार भी बिछड़ जाता है। उनके तीन बच्चे होते हैं, जो अलग हो जाते हैं। उनका हंसता, खेलता परिवार एक भूकंप की वजह से तबाह हो जाता है। राजा की तरह जीवन जीने वाले लाला केदारनाथ को फकीरों की तरह जिंदगी बितानी पड़ती है। फिल्म में शशि कपूर, राजकुमार, सुनील दत्त और शर्मिला टैगोर जैसे कलाकार थे। इसी तरह फिल्म ‘जल’ में कच्छ के रण को दिखाया गया था। इसकी कहानी बक्का के इर्द गिर्द घूमती है, जो सूखे के बीच पानी ढूंढ़ने की कोशिश करता है। डायरेक्टर अमोल गुप्ते की इस फिल्म में पूरब कोहली ने मुख्य भूमिका निभाई थी।
26 जुलाई 2005 को मुंबई में आई बाढ़ पर आधारित फिल्म ‘तुम बिन’ में बारिश की विभीषिका को फिल्माया गया था। इमरान हाशमी और सोहा अली खान मुख्य भूमिका में थे। दोनों बाढ़ के बीच फंसकर कैसे मुसीबत से निकलते हैं, यह फिल्म का मूल कथानक था। फ़िल्म का निर्देशन कुणाल देशमुख ने किया था। मुख्य भूमिकाओं में इमरान हाशमी और सोहा अली ख़ान नजर आए थे। इस विषय पर 2008 में भी ’26 जुलाई एट बारिस्ता’ नाम की फिल्म आई थी। सारा अली खान और सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘केदारनाथ’ भी 2013 में आई इतिहास की सबसे भयानक तबाही पर आधारित थी। फिल्म हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के बीच लव स्टोरी पर बनाई गई थी, पर इसमें बाढ़ की विभीषिका को बहुत अच्छी तरह फिल्माया था। रोनी स्क्रूवाला की इस फिल्म को बाढ़ पर बड़े पैमाने पर फिल्माई गई बॉलीवुड की पहली फिल्म माना जाता है। फिल्म के बहुत सारे दृश्य पानी में फिल्माए गए थे। करण जौहर की फिल्म ‘माई नेम इज खान’ में भी बाढ़ में फंसे लोगों का एक प्रभावी दृश्य था। इस आपदा के समय में दिमागी बीमारी से ग्रस्त नायक शाहरुख़ खान कई लोगों की जान बचाता है।
हिंदी फिल्मों में जहां प्राकृतिक आपदा को फिल्म के कथानक के साथ जोड़कर कुछ ही रीलें खर्च करने की कोशिश की जाती है, वहीं हॉलीवुड में इस विषय पर पूरी फिल्में ही बना दी जाती है। हॉलीवुड में प्राकृतिक आपदाओं पर बनी फिल्मों की खासियत ये होती है कि ये अपने दर्शकों को असली थ्रिलर महसूस कराती हैं। इतना रोमांच पैदा किया जाता है, कि दर्शक अपनी सीट पर ही उस आपदा को महसूस करता है। दर्शक इन दृश्यों को बिल्कुल असली की आपदा जैसा महसूस करने लगता है। अब तक प्राकृतिक आपदाओं से लेकर दुनिया के खत्म होने तक की कई प्राकृतिक आपदाओं पर फिल्में बन चुकी हैं। हेलेन हंट और बिल पैक्सटन द्वारा अभिनीत 1996 में आई फिल्म ‘ट्विस्टर’ बॉक्स ऑफिस पर धमाकेदार हिट साबित हुई। इस फिल्म ने वास्तव में जबरदस्त दृश्य वाला प्रभाव दिखाया था। 2004 में आई ‘द डे आफ्टर टुमारो’ में बर्फीले तूफान और सुनामी की त्रासदी को दिखाया गया था। अमेरिका में आई इस त्रासदी से पूरा देश तहस नहस हो जाता है। फिल्म का निर्देशन रोलैंड ने किया था। इसके बाद 2007 में प्रदर्शित टोनी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘फ्लड’ पूरी तरह से बाढ़ पर ही आधारित थी।
2009 में आई फिल्म ‘2012’ में भूकंप और सुनामी से पूरी दुनिया की तबाही का रोमांचक फिल्मांकन किया गया था। इस फिल्म जॉन कुसैक, अमांडा पीट और ओलिवर जैसे कलाकार मुख्य भूमिका में थे। इसका निर्देशन भी रोलैंड ने ही किया था। दुनियाभर के दर्शकों ने फिल्म को काफी पसंद किया था। 2011 में आई स्टीवन सोडरबर्ग की फिल्म ‘कंटेजियन’ कोरोना वायरस के बढ़ने के बाद सोशल मीडिया पर ट्रेंड हो रही है। इस फिल्म में ग्वेनेथ पाल्ट्रो, मारिओन कोटिलार्ड, ब्रेयान क्रेन्सटन, मैट डेमन, लॉरेन्स फिशबर्न, जूड लॉ, केट विंसलेट और जेनिफर ने एक्टिंग की है। यह फिल्म 2009 में फैले स्वाइन फ्लू के वायरस के फैलने पर आधारित थी। 2015 में प्रदर्शित फिल्म ‘सैन एंड्रियास’ में ड्वेन जॉनसन, कार्ला गुजिनो और अलेक्सेन्ड्रा जैसे कलाकार मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म का निर्देशन ब्रैड पेयटन ने किया था। इस फिल्म में भूकंप और सुनामी से होने वाली त्रासदी को दिखाया गया था। हॉलीवुड की ही फिल्म ‘जियोस्टॉर्म’ एक साइंस डिजास्टर पर आधारित फिल्म थी, जो 2017 में आई थी। इस फिल्म का निर्देशन डीन डिवालिन ने किया था और जेरार्ड बटलर, जिम स्टर्जेस और अब्बी कॉर्निश जैसे कलाकार मुख्य भूमिका में थे। हॉलीवुड ने जहां इस विषय को शिद्दत के साथ उठाया, वहीं हमारे निर्माता, निर्देशक इसे फिलर के रूप में ही उपयोग करते रहें। ज्यादा हुआ तो बारिश, तूफान, आंधी, जलजला, आंधी और तूफान, आया तूफान जैसे शीर्षक बनाकर ही रह गए। इससे आगे नहीं बढ़े, क्योंकि हिंदी के फिल्मकार हीरो-हीरोइन के रोमांस और नाच-गाने से आगे कुछ सोच ही नहीं पाते!