जरूरत यूनीफार्म ड्रेस कोड की…

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जरूरत यूनीफार्म ड्रेस कोड की…

गंगा जमुनी संस्कृति भारत में विभिन्न धर्मों खास तौर से हिंदू-मुस्लिम धर्म के अनुयायियों में एक दूसरे के त्योहारों को मनाने के साथ-साथ भारत में सांप्रदायिक सद्भाव के रूप में प्रकट होती है। वैसे गंगा-जमुनी तहजीब उत्तरी भारत के मध्य मैदानों की समग्र उच्च संस्कृति है। गंगा-जमुनी शब्द गंगा और यमुना नदियों के दोआब क्षेत्र में पल्लवित हुई हिंदु-मुस्लिम सांस्कृतिक सौहार्द की संस्कृति को कहा गया। कालांतर में यह शब्द उन सभी क्षेत्रों में सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गया, जहां हिंदू-मुस्लिम आबादी रहती थी। चाहे भोपाल हो या फिर हैदराबाद, सब जगह गंगा-जमुनी तहजीब शब्द ने अपनी जगह बना ली। और इसी गंगा जमुनी शब्द से प्रेरित होकर मध्यप्रदेश के दमोह में संप्रदाय विशेष के लोगों ने स्कूल का नाम ही गंगा जमुना स्कूल रख दिया। इससे संदेश उसी तरह का देने की कोशिश की गई, जैसे गंगा-जमुनी तहजीब शब्द देता है। पर जो परिणाम सामने आए, वह खौफनाक है। हमारे देश में धर्मांतरण पर तो बहस, विवाद और विरोध की स्थितियां पहले से ही मौजूद हैं। पर समस्या यह है कि इस पर अंकुश भी नहीं लग पा रहा है। चाहे सरकारें कांग्रेस की रहें या भाजपा की, लेकिन जो जिस काम में लगा है वह किसी की परवाह नहीं करता और अपने लक्ष्य में सफल हो जाता है। वैसे तो दमोह में जो चल रहा है, वैसी स्थितियां प्रदेश के दूसरे जिलों में भी मौजूद होंगी। पर दमोह में यह लोगों की नजर में इसलिए भी आ गया, क्योंकि “द केरला स्टोरी” के बाद अभी नजरिया बदला हुआ है।

वैसे तो दमोह में कथित तौर पर हिंदू छात्राओं को हिजाब पहनने पर मजबूर करने वाले निजी स्कूल की मान्यता रद्द कर दी गई थी। पर इसके बाद अब स्कूल की प्रिंसिपल और दो टीचर्स के धर्मांतरण की बात सामने आई है, जिसने हिजाब से फैली आग में घी डालने का काम किया है। यह खुलासा दमोह पहुंची बाल कल्याण आयोग की टीम ने अपनी जांच में किया है। मध्य प्रदेश के दमोह का गंगा जमुना उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हिजाब मामले को लेकर सुर्खियों में आया था, जो अब कथित धर्मांतरण पर केंद्रित हो गया है। बाल आयोग की टीम स्कूल पहुंची थी और लड़कियों को हिजाब पहनाने के मामले के साथ अन्य बिंदुओं पर जांच कर रही थी, इस जांच में इस स्कूल को धर्मांतरण की आंच ने भी झुलसा दिया है। स्कूल की महिला प्रिंसिपल के साथ अन्य दो टीचर्स के नाम में अंतर पाया गया है। उनके पुराने नाम हिंदू होने की पुष्टि कर रहे हैं, जबकि अब उनके नाम मुस्लिम धर्म के मुताबिक दर्ज पाए गए हैं। आयोग अब इस बात की जांच कर रहा है कि क्या स्कूल में नौकरी देने के लिए धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया गया? मदरसे की तर्ज पर चल रहे इस स्कूल में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम बच्चों को कुरान की आयतें भी पढ़ाई जाने का भी आरोप है। स्कूल की दीवारों पर आयतें अंकित हैं। तो अब जांच के विंदुओं में हिजाब के साथ-साथ शिक्षिकाओं के धर्म परिवर्तन और बच्चों को इस्लामिक शिक्षा दिए जाने के गंभीर मुद्दे भी शामिल हो गए हैं।

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सरकार की मंशा के मुताबिक त्वरित कठोर कार्यवाही न होने पर कलेक्टर और डीईओ को लेकर भी जनमानस के मन में आक्रोश है। डीईओ पर स्याही फेंककर यह जाहिर भी किया गया है। स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार हालांकि कठोरतम कार्यवाही करने का मन बनाए हैं, पर लगता यही है कि जो संदेश वह जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं… उसमें कुछ‌ देरी हो रही है। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सख्त रवैया अपनाते हुए कठोर कार्यवाही करने का आदेश दिया था।

इस पूरे मामले ने एक बात उजागर कर दी है कि सरकार जिस तरह धर्मांतरण पर सख्त होने का दावा कर रही है, उसके लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। इससे यह सबक भी मिलता है कि सरकार को सरकारी और निजी सभी स्कूलों के लिए एक यूनीफार्म ड्रेस कोड लागू करने की सख्त जरूरत है, ताकि हिजाब जैसे अवांछित मामले सामने न आ सकें। सरकार को यह नजर रखने की भी जरूरत है कि स्कूलों को धार्मिक शिक्षा थोपने का अड्डा तो नहीं बनाया जा रहा है? स्कूल में दबाव डालकर या गरीबी और लाचारी का फायदा उठाकर धर्म परिवर्तन जैसे कामों को तो अंजाम नहीं दिया जा रहा है?

वैसे देश में यूनीफार्म सिविल कोड की तरह मध्यप्रदेश में स्कूलों में यूनीफार्म ड्रेस कोड की बात पहले भी होती रही है। पर यदि स्कूल शिक्षा विभाग इस दिशा में कदम उठा चुका होता, तब शायद हिजाब जैसा मामला सामने न आता। अब फिर बात यही कि मध्यप्रदेश के सभी स्कूलों में यूनीफार्म सिविल कोड का प्रावधान हो, ताकि मन को मलीन करने वाले हिजाब कांड सामने न आ सकें और गंगा जमुना जैसे शब्द दमोह या दूसरे जिलों में साजिश का शिकार न हो सकें…।