ना कजरे की धार ना मोतियों के हार …

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ना कजरे की धार ना मोतियों के हार …

कौशल किशोर चतुर्वेदी

जीवन में सुख-दु:ख का पहिया घूमता रहता है। इनके बीच ही हम सब को सुकून के दो पलों को तलाशना पड़ता है। संगीत ऐसा माध्यम है जो दु:खों में सुकून की तलाश वालों को संजीवनी का काम करता है। तो सुख में आनंद को कई गुना बढ़ा देता है। गायक की आवाज का जादू संगीत के श्रोताओं के लिए प्राणवायु बन जाता है। और गजल गायक पंकज उधास की आवाज आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है। तो मई 2025 के तीसरे शनिवार को पंकज उधास का जन्मदिन है। आओ इस दिन पंकज उधास की गजल और गीतों को याद करते हैं और गुनगुनाते हैं। ‘ना कजरे की धार’ शब्द भी पंकज उधास की स्मृतियों को मन में तरोताजा कर देते हैं। उनके इस गीत के बोल हैं-

ना कजरे की धार

ना मोतियों के हार

ना कोई किया सिंगार

फिर भी कितनी सुन्दर हो

तुम कितनी सुन्दर हो

तू ताजगी फूलों की

क्या सादगी का कहना

तू ताजगी फूलों की

क्या सादगी का कहना

सिंगार तेरा योवन

योवन ही तेरा गहना

सिंगार तेरा योवन

योवन ही तेरा गहना

तेरी सूरत जैसे मूरत

मैं देखूं बार बार

ना कजरे की धार…

तेरा अंग सच्चा सोना

मुस्कान सच्चे मोती

तेरा अंग सच्चा सोना

मुस्कान सच्चे मोती

तेरे होंठ हैं मधुशाला

तू रूप की है ज्योति

उड़े खुशबू जब चले तू

बोले तो बजे सितार

ना कजरे की धार…

यह गीत हर व्यक्ति को उसकी जिंदगी के करीब ले जाता है। और व्यक्ति पुरानी यादों में खो जाता है। पंकज उधास आवाज बनकर व्यक्ति के दिल में फिर धड़कने लगते हैं। पंकज उधास का जन्म 17 मई, 1951 को जेतपुर, गुजरात में हुआ था। उनका निधन 26 फरवरी, 2024 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ था।माता जितुबेन उधास और पिता केशुभाई उधास थे। पत्नी फ़रीदा उधास थीं। उनकी संतानों में दो पुत्री रेवा उधास, नायाब उधास हैं। साजन, मोहरा, नाम, दयावान आदि फिल्मों में पंकज उधास की आवाज को जन-जन तक पहुंचा दिया। ग़ज़ल व फ़िल्मी पार्श्वगायक के बतौर पंकज उधास संगीत श्रोताओं की आस बन गए। वर्ष 1980–2024 तक पंकज उधास ने श्रोताओं की चाहत को पूरा किया।

पंकज उधास भारतीय पॉप में अपने काम के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत साल 1980 में ‘आहट’ नामक एक ग़ज़ल एल्बम की रिलीज़ के साथ की। पद्म श्री पंकज उधास हिंदुस्तानी संगीत में ग़ज़ल की वो आवाज रहे, जिन्होंने ग़ज़ल को जटिल परंपरा से बाहर निकाल कर उसे हर आदमी तक पहुंचाया। पंकज उधास ने न केवल गली-मोहल्लों, चौक-चौराहों, छोटी जगह के लोगों के दिलों को ग़ज़ल के सुकून से परिचित कराया, बल्कि आम आदमी के दुख-दर्द को पहचानने वाली आवाज भी बने। एक दौर था जब ‘चिट्ठी आई है’ जैसी ग़ज़ल गाकर पंकज उधास ने बेशुमार लोकप्रियता कमाई और वे उस दौर में रेडियो के माध्यम से हर घर में गूंजने वाली आवाज बन गए। पंकज उधास देश-परदेस में रहने वाले और अपने देश को छोड़कर काम काज करने वाले व्यक्ति के दर्द की आवाज थे। पंकज सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ने के लिए मुंबई चले गए थे और नवरंग नागपुरकर से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखा। पंकज उधास ने 11 फरवरी, 1982 के दिन फरीदा से शादी रचाई थी। दोनों की यह लव मैरिज थी। फरीदा एक एयरहोस्टेस थीं और पारंपरिक पारसी परिवार से ताल्लुक रखती थीं। यह 70 के दशक की बात है। दोनों की मुलाकात पंकज उधास के एक पड़ोसी ने करवाई थी। पंकज उधास और फरीदा का धर्म अलग होने के कारण दोनों ने शादी करने के लिए काफी मुसीबतों का सामना किया था। पंकज उधास और फरीदा दोनों परिवार की रजामंदी से शादी करना चाहते थे, लेकिन धर्म अलग होने के कारण दोनों के घरवाले इस शादी के खिलाफ थे। आखिर में उनके प्यार के आगे परिवार की हार हुई और दोनों के परिवार ने शादी करने की अनुमति दे दी।

सन् 1979 मे, पंकज उधास ने फिल्म ‘हम तुम और वो’ के लिए प्लेबैक के रूप में अपने कॅरियर की शुरुआत की। उन्होंने ‘साथ-साथ’ (1982), ‘उत्सव’ (1984) और ‘प्रेम प्रतिज्ञा’ (1989) जैसी कई अन्य फिल्मों के लिए गाना गाया। हालांकि, 1984 में उनके पहले सोलो एल्बम ‘आहट’ की रिलीज के साथ ही उन्हें ग़ज़ल गायक के रूप में बड़ी पहचान मिली। अपने कॅरियर के दौरान उन्होंने 60 से अधिक एल्बम जारी किए। उन्होंने जगजीत सिंह, आशा भोंसले, लता मंगेशकर और अनूप जलोटा जैसे कई अन्य कलाकारों के साथ भी काम किया। उनके गाने कई फिल्मों और टेलीविजन शो में दिखाए गए हैं।

पंकज उधास की सुरीली आवाज, ग़ज़ल, कविता की गहरी समझ के साथ, श्रोताओं के बीच गहराई से गूंजती रही। वह ग़ज़लों को मुख्य धारा में लाने में अग्रणी बन गए, जिससे ये शैली के पारखी लोगों से परे व्यापक दर्शकों के लिए सुलभ हो गईं। फिल्म ‘नाम’ (1986) के गाने ‘चिठ्ठी आई है’ और ‘आ गले लग जा’ जैसे गीतों ने उन्हें एक घरेलू नाम के रूप में स्थापित किया, जिससे भारत के प्रमुख ग़ज़ल गायकों में से एक के रूप में बड़े स्तर पर उनकी पहचान बनी। अपनी संगीत प्रतिभा के अलावा, पंकज उधास अपने विनम्र और व्यावहारिक व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। पंकज उधास की आवाज हर जगह ग़ज़ल प्रेमियों के दिलों में हमेशा के लिए बस गई थी।भारत और चीन के बीच युद्ध के दौरान लता मंगेशकर का ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाना रिलीज हुआ था। पंकज को ये गाना बहुत पसंद आया। उन्होंने बिना किसी की मदद से इस गाने को उसी लय और सुर के साथ तैयार किया। पंकज ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाना गया। उनके इस गीत से दर्शकों की आंखें नम हो गईं। उन्हें खूब वाहवाही भी मिली। दर्शकों में से एक आदमी ने खड़े होकर उनके लिए ताली बजाई और इनाम में उन्हें 51 रुपए दिए। ये उनका पहला इनाम था।

पंकज उधास के लोकप्रिय गीतों की सूची में फिल्मी और गैर-फिल्मी ग़ज़लें और गीत शामिल हैं। चिट्ठी आई है, फ़िल्म ‘नाम’ (1986) निकलो ना बेनकाब, ज़माना खराब है, और आहिस्ता कीजिए बातें, चांदी जैसा रंग है तेरा, फिर हाथ में गिलास है सच बोलता हूं मैं, जीयें तो जीयें कैसे बिन आपके के, फ़िल्म ‘साजन’ (1991), ना कजरे की धार, ना मोतियों के हार, फ़िल्म ‘मोहरा’ (1994), आज फिर तुम पे प्यार आया है, फ़िल्म ‘दयावान’ (1988), मैं दीवाना हूं मुझे, फ़िल्म ‘ये दिल्लगी’ (1994), आदमी खिलोना है, फ़िल्म ‘आदमी खिलोना है’ (1993), एक तरफ़ उसका घर, एक तरफ़ मयकदा जैसे सैकड़ों गीत, गजल पंकज उधास की आवाज को जन-जन की आवाज बनाते हैं। तो आईए पंकज उधास के जन्मदिन पर आज हम उनके गीतों-गजलों को सुनकर और गुनगुनाकर शनिवा

र को आनंद का दिन बनाते हैं…।