netflix movie :फुर्सत में देखी तीन फिल्में ,आज एक पर बात कुछ खास आपके साथ “सर “

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netflix movie :फुर्सत में देखी तीन फिल्में ,आज एक पर बात कुछ खास आपके साथ “सर

स्वाति तिवारी 

सालों बाद फुर्सत  सी थी तो इन दिनों नेटफलेक्स{netflix movie}  पर तीन  बेहद खूबसूरत फिल्में देखी   ,फिल्में आज या कल रिलीज हुई हो एसा कुछ नहीं हैं ,पुरानी ही कही जाएंगी क्योंकि वे कुछ साल पहले  रिलीज हुई थी लेकिन मैंने इन दिनों में देखी तो मेरे लिए वे नयी  फिल्में ही थी ,और मैं यह सोच रही थी कि ये फिल्में सिनेमाघरों में ज्यादा दिन नहीं टिक सकती हैं ,इसलिए इन्हे यहाँ प्रस्तुत किया गया है , क्योंकि इनके  दर्शकअलग ही होंगे , ये देर  तक मन में लहरों सी आती जाती है ,देखने के बाद देर तक  बैठी रहे कोई कहानी तो इसका अर्थ यही हुआ ना कि फिल्म  के कलाकार ,कहानी ओर निर्देशन में कुछ एसा हैं जो आपको  प्रभावित कर रहा है ,जो आम फिल्मों के मसाले की तरह नहीं जीवन की सच्चाई की तरफ सोचने को कह रहा है। तब यह सवाल वाजिब सा हैं कि  क्या है इन फिल्मों में । तो चलिए क्लासिक कहानियों की तरह आज इन फिल्मों पर बात करते हैं ।

 प्रेम का यह  निशब्द  सफर है – ‘सर’ (SIR)

1 एक दिन मैथी की भाजी तोड़ते हुए  Netflix {netflix movie} पर कुछ खोजते हुए अचानक मुझे एक फ़िल्म दिखी ‘Sir’. पता नहीं कुछ तो ख़ास लगा मुझे पोस्टर में शायद एक सादगी थी,और बिना किसी मेकअप के पोस्टर थे जो मैं किताब के कवर में भी खोजती हूँ,शायद पोस्टर मुझे किसी उपन्यास का कवर लगा और  मैं देखने लगी  यह फिल्म, नए चेहरे, नए इसलिए क्योंकि मैंने नहीं देखी थी इन दोनों की कोई फ़िल्म.  फिल्म भी अमेरिका में इंडियन स्टोर में मिलानेवाली मैथी की गड्डी  जैसे छोटी ही थी  छोटी सी फ़िल्म थी ,कब शुरू हुई ओर कब खत्म दोनों ही पता नहीं चले मैथी टूट गई ओर फिल्म का स्वाद दिल में उतरता चला गया . सालों से  मैंने इतनी प्यारी हिंदी फ़िल्म नहीं देखी.ना तड़क भड़क ,ना फिल्मी ग्लैमर ,पर फिल्म किसी कविता सी रच बस गई मन में । यह फिल्म थी  ‘Sir’। फिल्‍म का नाम है- ‘सर.’ रोहिना गेरा नाम की एक फिल्‍म डायरेक्‍टर है.बस यह उनका जादू है “सर “जो प्यार को नयी परिभाषा देती है—

एक लड़की है रत्‍ना और एक लड़का है अश्विन.

SIR Review:netflix movie

अपनी-अपनी वर्गीय चुनौतियों से जूझ रहे दो अकेले व्यक्तियों की कहानी। एक अकेला पुरुष है, जिसकी शादी होते-होते रह गई और वह सामान लेकर वापस अपने घर लौटा है। संभवत: पहले लिव इन में उसके साथ रहता था, जिससे शादी हो रही थी। दूसरा किरदार है उनकी घरेलू सहायिका का, जिन्हें गांव से वापस लौटना पड़ा है, सर की शादी कैंसल होने के कारण।कहानी हमें संवादों और दूसरे चरित्रों के जरिए पता चलती है कि अश्विन की शादी होने से पहले ही टूट चुकी है. सबीना नाम की कोई लड़की थी, जो स्‍क्रीन पर कभी दिखती नहीं, लेकिन उसका जिक्र बार-बार होता है. शादी टूटने के बाद अश्विन थोड़ा शांत और उदास सा रहने लगा है.
शादी टूटने से सर{अश्विन}  बहुत मायूस हैं, लगभग अवसाद में। मां-बाप, दोस्त सभी समझाते हैं कि उसे इस दुख से बाहर आना चाहिए।

अश्विन राइटर बनना चाहता था, लेकिन भाई की बीमारी की वजह से उसे न्‍यू यॉर्क से वापस लौटना पड़ता है. साउथ मुंबई के एक पॉश इलाके में उसका घर है, जहां से समंदर दिखता है.एक बेहद अमीर आधुनिक परिवार का बेटा अश्वीन  है।  रत्‍ना एक साधारण गूमसुम सी रहने वाली महाराष्‍ट्र के एक सुदूर छोटे से गांव की लड़की है, जो शादी के चार महीने बाद ही विधवा हो गई थी.

रत्‍ना अश्‍विन के घर में हाउस मेड है. लंबे गलियारे और विशालकाय कमरों वाले उस फ्लैट में एक छोटे से सर्वेंट रूम में रहती है ,उसके उस छोटे से कमरे में उसकी जरूरत भर का सामान ,पूजा घर ओर सिलाई की सामग्री दिखाई गई है । वह सामान्य  रूप से अन्य तेज तर्रार कामवाली महानगरीय बाइयों से थोड़ी शांत और समझदार भी है ,आश्वीन का  घर संभालती है.हमेशा चुप रहने और सिर झुकाकर अपना काम करने वाली रत्‍ना एक सुबह अश्विन को अपनी कहानी सुनाती है कि कैसे गांव में बहुत कम उम्र में उसकी शादी हो गई थी और शादी के चार महीने बाद ही वह विधवा हो गई. लेकिन अब वो इस महानगर में काम कर रही है और अपने पैसे कमा रही है. वो टेलरिंग सीखना चाहती है और फैशन डिजाइनर बनना. रत्‍ना अंत में बस इतना ही कहती है, “जीवन कभी रुकता नहीं.कहानी में यहीं से  कहानी का रुख बदलने लगता है । “जीवन कभी रुकता नहीं यही  शब्द सर के लिए मोटिवेशन बनते हैं।

धीरे-धीरे उस घर में अकेले रह रहे उन दोनों के बीच एक तार जुड़ता जाता है.टूटे दिल एकसे होते हैं ,और दूसरे का दर्द समझने लगते हैं ।  दोनों एक-दूसरे का इमोशनल सपोर्ट बन जाते हैं, जबकि कोई कुछ कहता नहीं. ज्‍यादा शब्‍द नहीं है इस संबंध, इस जुड़ाव को बयान करने के लिए. सिर्फ आंखें बोलती हैं, चेहरे पर आते-जाते भाव, देह की भंगिमाएं. परदे  पर दिख रही हरेक घटना  उस लगाव को बयान कर रही होती है, सिवा शब्‍दों के.दिल टूटने के बाद वे जिंदगी के,अकेलेपन की पीड़ा से उपजे दर्द के  , भावनाओं के, मानवीय संवेदनाओं  के और प्रेम के थोड़ा और करीब होते चले  जाते हैं। इन सबको और गहराई से समझने-महसूस करने लगते हैं। कोई अनर्गल दृश्य नहीं ,एक भी अतिरिक्त संवाद नहीं फिर भी दर्शक उस मूक प्रेम संवाद को स्पष्ट सुन रहा होता है ,यही स्पेस जो निशब्द कहते है वही कहानी की आत्मा  बन जाती है वही कथा का मर्म है  , छोटे-छोटे मगर महत्वपूर्ण दृश्यों में दोनों की एक-दूसरे के प्रति संवेदनशीलता  दिखलाई देती है। प्रेम की सूक्ष्म उपस्थिति इसी संवेदना के मर्म  में ही है ।

शादी टूटने के बाद भी आश्वीन का स्त्रियों के प्रति को दुराभाव नहीं है ,वह एक मानवीय संवेदना से भर सज्जन इंसान है । प्रेम की भाषा यहाँ  घटनाएं हैं जैसे  उनके  जीवन में एक-दूसरे की जरूरतें, सुविधाएं और सुख महत्व रखने लगते हैं। जैसे सर का रत्ना के लिए सिलाई मशीन मंगवाना,उसे सिलाई क्लास जाने देना  और रत्ना का सर के जन्मदिन पर शर्ट देना।दर्शक को लगाने लगता है कि आश्वीन को रत्‍ना से प्‍यार है, लेकिन क्‍या प्‍यार काफी होता है दो लोगों के साथ होने, हो सकने के लिए ?रत्ना ओर आश्वीन के मध्य एक अत्यंत गहरी ओर चौड़ी खाई है उनकी सामाजिक,आर्थिक ओर मालिक और नौकर के बीच की  ऊंची और मजबूत दीवार ,जिसे ढहाना बेहद मुश्किल ।तब कई सवाल यहाँ खड़े होते हैं यह दीवार जो वे दोनों नहीं तोड़ सकते दर्शक तोड़ना चाहता है कि  आखिर प्रेम क्या है? जीवन में प्रेम का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है।प्रेम भावनाओं, व्यवहारों और विश्वासों का एक जटिल समूह है जो किसी अन्य व्यक्ति के लिए स्नेह, सुरक्षा ( protectiveness), गर्मजोशी और सम्मान की मजबूत भावनाओं से जुड़ा है। में जीवन में एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत पड़ती है जो हमें मुश्किलों लड़ने का हौसला दे, फैसले लेने में मदद करे और जरूरत पड़ने पर साथ खड़ा रहे। यदि इस तरह का व्यक्ति मिलता है तो उससे स्वाभाविक रुप से प्यार हो जाता है।इन सारे सवालों के जवाब उस फिल्‍म में है.फिल्म बेहद रियलिस्टिक, सामान्य अंदाज़ में दिखाई गई है। जबर्दस्ती बोल्ड दिखाने के लिए बोल्ड सीन नहीं ठूसे गए हैं, संवाद भी सहज है। तामझाम नहीं है। वर्तमान दौर की सहज प्रेम कहानियों में से एक फिल्म है। फिल्म में जातिवाद, क्लास डिफरेंस को लेकर भी बिना भाषणबाजी के बात कही गई है। सपने को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास की बात और पैशन की बात की गई है।

तकनीकी बारीकियों के अलावा इस फिल्‍म का सारा कौशल कहन के तरीके में है. जहां निशब्द दृश्य भी शब्द से बोलते है, जिस तरह से फ्रेम दर फ्रेम, शब्‍द दर शब्‍द रोहिना गेरा ने कहानी को बुना है. जहां-जहां वह सरसराते हुए गुजर गई हैं और जहां ठहरकर देखा है. जिस तरह ये कहानी हमें उस घर में और उन दोनों की जिंदगियों में लेकर जाती है। तिलोत्तमा ने इस फिल्म में शानदार अभिनय किया है। उनका किरदार इतना सहज है कि दिल में घर कर जाता है। उन्होंने इमोशनल दृश्यों को बेहद संजीदगी से दर्शाया है। विवेक ने  सरलता से अपना काम किया है। दोनों ही किरदारों ने दूसरे को पूर्ण किया है।

कलाकार : तिलोतमा शोमे, विवेक गोमबर, गीतांजलि कुलकर्णी, अनुप्रिया
निर्देशक : रोहेना गेरा
ओटी टी : नेटफ्लिक्स

अगले अंक में एक और फिल्म Tribhanga (त्रिभंगा) पर बात करते हैं .

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