Indore : शहर के बीच से मेट्रो ट्रेन गुजारने की योजना के तहत 69 साल पुराने शास्त्री ब्रिज को तोड़कर नया बनाया जाएगा। नए ब्रिज के ऊपर से ही मेट्रो ट्रेन गुजरेगी। शहर के पूर्व-पश्चिम को जोड़ने वाले इस सबसे पुराने ब्रिज के लिए प्रारंभिक सर्वे के लिए सहमति बन गई। इसकी स्पेशल डिजाइन तैयार कर खूबसूरत लुक दिया जाएगा। तीन विभाग मिलकर इस ब्रिज के नए डिजाइन का फैसला करेंगे।
शास्त्री ब्रिज का निर्माण आजादी के बाद 1953 में किया गया था। तब इसकी लागत 1 करोड़ रुपए आई थी। इसकी चौड़ाई 448 मीटर है। बीते सालों में शास्त्री ब्रिज के पिलर कमजोर होने के चलते सुधार काम किया गया। इसके साथ ही चौड़ाई बढ़ाने का प्लान भी किया गया। लेकिन टेक्निकल पेंच के चलते यह संभव नहीं हो सका। बाद में इसके दोनों ओर के फुटपाथ की चौड़ाई काफी कर दी गई। इस ब्रिज पर गांधी प्रतिमा से गांधी हॉल तक काफी ट्रैफिक रहता है जबकि रेलवे स्टेशन से गांधी हॉल की और वाली तीसरी भुजा वन-वे होने के कारण उस पर ट्रैफिक कम रहता है। लोगों की तीन-चार पीढ़ियां इस ब्रिज का उपयोग कर रही है। आबादी बढ़ने के साथ पिछले दो दशकों में इसमें कई बार सुधार का काम किया गया। साथ ही नया ब्रिज बनाने को लेकर भी मंथन बात चली, पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ। अब जबकि शहर में मेट्रो ट्रेन का काम गति पकड़ रहा है, इस ब्रिज को लेकर सहमति बनी है।
रेलवे के सर्वे में यह बात सामने आई कि शास्त्री ब्रिज का बोगदा रेल के हिसाब से छोटा है। यदि नए और पुराने प्लेटफॉर्म को जोड़ना है तो शास्त्री ब्रिज की चौडाई और ऊंचाई दोनों बढ़ाना पड़ेगी। इसे लेकर मेट्रो रेल और नगर निगम के अधिकारियों की बैठक भी हुई। योजना के मुताबिक, तीन विभाग (मेट्रो, नगर निगम और रेल मंत्रालय) मिलकर इस पर निर्णय लेंगे, ताकि इसे चौड़ा और लम्बा बनाया जा सके। यह ब्रिज अब कमजोर भी हो चुका है। आने वाले समय में शहर का ट्रैफिक और बढ़ेगा इसलिए भी इस ब्रिज की जगह नया ब्रिज बनना ही था।
पटेल ब्रिज विकल्प नहीं बना
80 के दशक में ब्रिज पर ट्रैफिक के दबाव को देखते हुए इसके समानांतर पटेल ब्रिज बनाया गया था। फिर भी शास्त्री ब्रिज पर ट्रैफिक का दबाव कम नहीं हुआ। सुविधा की दृष्टि से लोगों को यही ब्रिज अनुकूल लगता है। पटेल ब्रिज की लम्बाई-चौड़ाई शास्त्री ब्रिज से ज्यादा रखी गई। इसके बावजूद लोग यहीं से गुजरना बेहतर समझते हैं। रेलवे स्टेशन, सियागंज, रानीपुरा, महारानी रोड, वेयर हाउस रोड आदि व्यावसायिक क्षेत्र होने के कारण पटेल ब्रिज का उपयोग व्यावसायिक वाहनों के लिए ज्यादा होने लगा।
राजकुमार ब्रिज में भी खामी
लगातार बढ़ते ट्रैफिक के दबाव को देखते हुए 1990 के दशक में राजकुमार ब्रिज का निर्माण शुरू हुआ। उसे गति मिली 2000 के दशक में। इस अवधि में यह ब्रिज कंपनी-ठेकेदार के भुगतान नहीं करने, मौसम के प्रभाव, बजट सहित कई कारणों के चलते निर्माणाधीन रहा। जब बनकर तैयार हुआ, तो इसकी कम चौड़ाई व डिजाइन में डिफेक्ट को लेकर सवाल उठने लगे और यह ब्रिज भी शास्त्री ब्रिज पर दबाव कम नहीं कर सका। यही कारण है कि लोग विकल्प के रूप में पटेल ब्रिज व राजकुमार ब्रिज होने के बाद भी इस ब्रिज का उपयोग ज्यादा करते हैं।