Nimisha Priya Hanging Case: उम्मीदें और मुश्किलें बरकरार, यमन में सजा-ए-मौत का सामना कर रही है प्रिया

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Nimisha Priya Hanging Case: उम्मीदें और मुश्किलें बरकरार, यमन में सजा-ए-मौत का सामना कर रही है प्रिया

रुचि बागड़देव की रिपोर्ट 

केरल की नर्स निमिषा प्रिया यमन में एक नागरिक की हत्या के आरोप में सजा-ए-मौत का सामना कर रही हैं। पूरे देश में चिंता और हलचल है। सरकार, सामाजिक संगठन और उनका परिवार लगातार उनकी जान बचाने को प्रयासरत हैं। 16 जुलाई 2025 को फांसी होनी थी, लेकिन भारत सरकार के कूटनीतिक प्रयास और मानवीय पहलुओं की वजह से इसे फिलहाल टाल दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है- मृतक परिवार से माफी या “ब्लड मनी” की बातचीत सिर्फ निमिषा के परिवार पर निर्भर है। पीड़ित महदी के भाई अब्दुल का बयान आया है कि वे न तो ब्लड मनी लेंगे, न माफ करेंगे- वे सिर्फ सजा-ए-मौत (क़िसास) की मांग कर रहे हैं। विदेश मंत्रालय लगातार राजनयिक स्तर पर सक्रिय है, लेकिन यमन के कड़े शरीयत कानून के चलते फैसला मृतक परिवार की मंजूरी पर ही टिका है।

लेटेस्ट प्रतिक्रिया व सामाजिक, कानूनी संदर्भ:

– महदी के परिवार की जिद: महदी के भाई अब्दुल ने दोहराया- “हम न माफ करेंगे, न ब्लड मनी लेंगे। हमें केवल न्याय चाहिए यानी फांसी ही मंजूर है।”
– निमिषा का पक्ष: वकीलों का दावा है कि महदी ने उनका पासपोर्ट छीना, प्रताड़ित किया, और जान का खतरा था। निमिषा का मकसद हत्या नहीं थी- पासपोर्ट वापसी के लिए बेहोशी की दवा दी, जिससे हादसा हुआ।
– शरिया व किसास कानून: यमन में किसास (क़िसास) कानून लागू है-“आंख के बदले आंख, जान के बदले जान”। हत्या के मामलों में पीड़ित परिवार दोषी को माफ कर सकता है या ब्लड मनी लेकर छोड़ सकता है। अगर वे नहीं मानते, तो अदालत कठोर सजा (मौत) देती है।
– फांसी का तरीका: यमन में मौत की सजा अक्सर शूटिंग (दिल पर गोली) से दी जाती है, आम तौर पर फांसी नहीं दी जाती।
– कूटनीतिक व सामाजिक पहल: भारत सरकार, सामाजिक संगठन और ‘सेव निमिषा प्रिया’ जैसी संस्थाएं लगातार प्रयासरत हैं, यमन में सक्रिय भारतीय और स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता पीड़ित परिवार से संवाद कर रहे हैं।
– कानूनी विकल्प: अगर पीड़ित परिवार न माने तो राष्ट्रपति दया याचिका जैसी दुर्लभ संभावना ही बचती है, लेकिन यमन में सफल होने की संभावना बेहद कम है। कोर्ट सेल्फ डिफेंस या अन्य तकनीकी आधार पर सजा घटा सकता था, पर अपीलें पहले ही खारिज हो चुकी हैं।
– भावनात्मक पहलू: सोशल वर्कर सैमुअल जेरोम सहित तमाम लोग यमन के समाज में सहानुभूति की लहर लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत नाजुक और धीमी है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

1. फांसी पर फिलहाल भेज, मौत की सजा बरकरार।
2. सुप्रीम कोर्ट ने सीधे दखल से इनकार किया; प्रयास परिवार और सरकार के भरोसे।
3. मृतक परिवार किसास (प्रतिशोध) की मांग पर कायम- माफी, ब्लड मनी दोनों से इनकार।
4. भारत सरकार और सामाजिक संगठनों की कूटनीतिक बातचीत जारी।
5. यमन में शरीयत कानून के कारण विकल्प सीमित, अंतिम राहत राष्ट्रपति दया याचिका या पीड़ित परिवार की सहमति।
6. अगली बड़ी सुनवाई 14 अगस्त 2025 को होगी।
7. कानूनी/सामाजिक प्रयासों में सेंध की कोशिश—ग्रैंड मुफ्ती भी हस्तक्षेप कर चुके, लेकिन असर नहीं पड़ा।

निमिषा प्रिया को फिलहाल राहत मिली है लेकिन संकट जस का तस है। मृतक परिवार के सख्त रुख, शरीयत कानून और यमन के सामाजिक माहौल ने कानूनी विकल्प सीमित कर दिए हैं। अगली सुनवाई और कूटनीतिक प्रयासों पर सबकी नजरें टिकी हैं- अंतिम उम्मीद बस परिवार की माफ़ी या असाधारण दया याचिका पर ही टिकी है।