निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊँगा…

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निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊँगा…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

शास्त्रीय संगीत और मध्यप्रदेश में गंधर्व परिवार का नाम हर कोई जानता है। कुमार गंधर्व ने स्वास्थ्य लाभ के लिए दक्षिण से मध्यप्रदेेश के देवास की पहाड़ी को अपना घर बनाया था। बाद में वह स्वस्थ हुए और संगीत जगत में सितारे की भांति चमकते हुए देवास में ही इस दुनिया को अलविदा कह गए। आज हम बात कर रहे हैं ऐसे संगीत सम्राट को राह दिखाने वाली वात्सल्यमयी वसुंधरा कोमकली की। वह संगीत और कुमार के बीच संतुलन बनाते हुए अपने वात्सल्य भाव की छटा बिखेरती रहीं और शास्त्रीय संगीत को ऊंचाइयों पर ले जाने को समर्पित रहीं। उनको आज इसलिए याद कर रहे हैं, क्योंकि आज उनका जन्मदिन है। और कुमार गंधर्व जैसे मूर्धन्य गायक को यदि पूरी दुनिया सराह रही है, तो उनकी इस राह को संवारने में वसुंधरा ताई के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।

कोमकली ( जन्म- 23 मई, 1931; मृत्यु- 29 जुलाई, 2015) भारतीय शास्त्रीय संगीतकार थीं। वह भारत के प्रसिद्ध संगीत घराने ‘ग्वालियर घराना’ के प्रमुख प्रतिपादकों में से एक थीं। वसुंधरा कोमकली को ‘वसुंधरा ताई’ के नाम से भी जाना जाता था। वह बहुत ही सुघड़ गायिका थीं। उन्होंने पंडित कुमार गंधर्व की गायन शैली को आगे बढ़ाया था और देवास का नाम रोशन किया। वसुंधरा कोमकली का जन्म 23 मई, 1931 को जमशेदपुर, झारखंड में हुआ था। वर्ष 2009 में उन्हें ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान के लिए 2006 में ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया था।

वसुंधरा ताई की समझ सिर्फ संगीत ही नहीं बल्कि वह व्यापक मुद्दों, कला के विविध पक्ष और साहित्य पर भी बराबर अधिकार रखती थीं। कुमार गंधर्व के घर लगभग सारे अखबार और पत्रिकाएं आती थीं, जिनका अध्ययन और मनन वे लगातार करती रहती थीं। वसुंधरा कोमकली सिर्फ कुमारजी की सहचरणी नहीं थी बल्कि शास्त्रीय संगीत के जो संस्कार ग्वालियर घराने और अपने पिता से मिले थे, उन्होंने संगीत में बहुत प्रयोग किये। उन्होंने निर्गुणी भजनों की परम्परा को जीवित रखा। देश-विदेश में उनके शिष्य आज इस परम्परा को निभा रहे हैं। कुमार गंधर्व के निधन के बाद वसुंधरा कोमकली सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी कम करने लगी थीं, परन्तु अपनी पुत्री कलापिनी और पोते भुवनेश को उन्होंने संगीत की विधिवत शिक्षा देकर इतना पारंगत कर दिया कि दोनों आज देश के स्थापित कलाकार हैं।

भारतीय संगीत की मूर्धन्य गायिका तो वसुंधरा जी थी ही, साथ ही एक अच्छी गुरु और बहुत स्नेहिल मां थीं। पंडित देवधर की सुयोग्य शिष्या और बेटी वसुंधरा ताई ग्वालियर से देवास आने के बाद मालवा में ऐसी रच-बस गई कि यहां के लोग उनके घर के लोग हो गए। वे देवास, इंदौर और उज्जैन के हर घर में पहचानी जाने लगी, देवास के हर भाषा और मजहब के लोगों से उनका वास्ता पड़ा और उन्होंने बहुत सहज होकर सबको अपना लिया। 2015 को 84 वर्ष की आयु में, मध्य प्रदेश के देवास में उनके निवास स्थान पर कार्डियक अरेस्ट के कारण उनकी मृत्यु हुई थी और उनका अंतिम संस्कार देवास में किया गया था। उनकी बेटी, कलापिनी कोमकली, हिंदुस्तानी संगीत की एक प्रसिद्ध गायिका हैं। 29 जुलाई, 2015 को उनके निधन के साथ ही देवास के साथ-साथ समूचे मालवा और मध्यप्रदेश ने एक वात्सल्यमयी मां को खो दिया था…।

कुमार गंधर्व और वसुंधरा कोमकली द्वारा गाए गए भजन ‘निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊंगा और ‘उड़ जाएगा पंछी अकेला’ बहुत लोकप्रिय हैं। कबीर का यह भजन कबीर की सोच से साक्षात्कार कराता है…तो आइए इस भजन का कुमार गंधर्व और वसुंधरा कोमकली की आवाज में आनंद लेते हैं। इसके बोल हैं-

निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊँगा

मूल-कमल दृढ़-आसन बाँधू जी

उल्‍टी पवन चढ़ाऊँगा, चढ़ाऊँगा..

निर्भय निर्गुण ….

मन-ममता को थिर कर लाऊँ जी

पांचों तत्त्व मिलाऊँगा जी, मिलाऊँगा

निर्भय निर्गुण ….

इंगला-पिंगला सुखमन नाड़ी जी

त्रिवेणी पर हाँ नहाऊँगा, नहाऊँगा

निर्भय निर्गुण ….

पाँच-पचीसों पकड़ मँगाऊँ जी

एक ही डोर लगाऊँगा, लगाऊँगा

निर्भय निर्गुण ….

शून्‍य-शिखर पर अनहद बाजे जी

राग छत्‍तीस सुनाऊँगा, सुनाऊँगा

निर्भय निर्गुण ….

कहत कबीरा सुनो भई साधो जी

जीत निशान घुराऊँगा, घुराऊँगा..

निर्भय निर्गुण ….