
Nithari Case : निठारी मामले में सुरेंद्र कोली ने कैसे किया CBI जांच का मुकाबला, RTI की मदद से खुद केस लड़ा और रिहा हुआ!
अनपढ़ सुरेंद्र कोली जेल में रहकर शिक्षित हुआ, कानून को समझा और RTI को अपना हथियार बनाया!
Sahibabad : देश के चर्चित निठारी कांड में के दोषी सुरेंद्र कोली के लिए आरटीआई बरी होने का आधार बन गई। सुरेंद्र कोली ने डासना जेल में रहते हुए केस से संबंध रखने वाले विभागों में एक हजार से अधिक आरटीआई लगाईं और विभिन्न बिंदुओं पर जवाब मांगे। इन जवाबों के माध्यम से ही कोली ने कोर्ट में अपना केस खुद लड़ा। आरटीआई के जवाबों में विरोधाभास होने के कारण यह मामला भी पुलिस व सीबीआई पर भारी पड़ गया। इससे सुरेंद्र कोली को तो लाभ मिला ही साथ ही मोनिंदर सिंह पंधेर को भी राहत मिल गई। इसके बाद पहले हाई कोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया।
वर्ष 2006 में हुए निठारी कांड में जब दोनों आरोपियों को डासना जेल लाया गया तो मोनिंदर सिंह पंधेर के पास केस लड़ने वाले अधिवक्ताओं की फौज थी। लेकिन, सुरेंद्र कोली के पास वकील नहीं था और वह अनपढ़ था। जेल में रहने के दौरान सुरेंद्र कोली ने पढ़ना-लिखना सीखा और अपने केस का जिम्मा खुद संभाला। उसने साक्षर होने के साथ दिन-रात कानूनी किताबें पढ़ीं और अपने केस को समझना शुरू किया।

उसने एक-एक करके कोर्ट से संबंधित दस्तावेज एकत्र किए। इसके बाद कोली ने फारेंसिक लैब, विकास प्राधिकरण, अस्पताल, पुलिस समेत विभिन्न विभागों में आरटीआई लगानी शुरू की। उसने करीब एक लाख से अधिक पेज की एक हजार से अधिक आरटीआई लगाई। इन आरटीआई के माध्यम से उसने अपने जवाब तैयार कर कोर्ट में पेश किए जिसका कोली व पंधेर को लाभ मिला। जेल के सूत्र बताते हैं कि यदि कोली 18 घंटे जागता था तो इसमें से 15 घंटे वह लिखता-पढ़ता रहता था।
तत्कालीन जेल डासना जेल अधीक्षक, एवं वरिष्ठ जेल अधीक्षक मेरठ डॉ वीरेश राज शर्मा का कहना है कि सुरेंद्र कोली व मोनिंदर सिंह पंधेर मेरे कार्यकाल में करीब चार साल तक जेल में रहे। सुरेंद्र कोली जेल में आने के बाद ही साक्षर हुआ। वह कानूनी किताबें बहुत पढ़ता था और हमेशा पन्नों पर लिखता रहता था। लगातार वह जेल प्रशासन से आरटीआई के लिए मदद मांगता था। जेल प्रशासन द्वारा उसके अधिकारों का ध्यान रखा जाता रहा। नियमानुसार जेल से उसके दस्तावेजों का आदान-प्रदान कराया जाता था।
नालों की गहराई आरटीआई से मिली, फिर लड़ी लड़ाई
सुरेंद्र कोली ने पुलिस व सीबीआई की केस डायरी पढ़ने के बाद आरटीआई लगाने का सिलसिला शुरू किया। जांच रिपोर्ट के आधार पर उसने संबंधित विभागों में आरटीआई लगाकर जवाब मांगे। नोएडा प्राधिकरण में आरटीआई लगाकर उसने निठारी के उस नाले जिसमें बच्चों के अवशेष व कंकाल मिले थे कि सफाई के बारे में जानकारी मांगी। सुरेंद्र कोली का कहना था कि नाले से मिली हड्डियों से उसका कोई लेना-देना नहीं है। उसने नोएडा के एक अस्पताल पर किडनी रैकेट चलाने का आरोप लगाते हुए हड्डियों का कनेक्शन अस्पताल से जोड़ा था। इसके बाद अलग-अलग सवालों पर प्राधिकरण की तरफ से भी अलग-अलग जवाब दिए गए।
विकास प्राधिकरण से मिले इन जवाबों में व पुलिस और सीबीआई की थ्योरी में विरोधाभास था। इन जवाबों को ही उसने हथियार बना लिया और कोर्ट में पेश कर दिया। कोली कोर्ट में बहस नहीं कर पाता था, इसके लिए उसने कागज व कलम का सहारा लिया और अपने सभी जवाब कोर्ट में लिखित रूप से प्रस्तुत किए। बार-बार कोर्ट में वह कहता रहा कि असली आरोपी पकड़ से दूर है।
पंधेर जेल में कंपाउंडर बनकर बंदियों की सेवा करता रहा
मोनिंदर सिंह पंधेर जेल में रहकर लगातार बंदियों की सेवा करता रहा। जेल के अस्पताल में रहकर वह कंपाउंडर बन गया और मरीजों की देखभाल करता था। इसके साथ ही गरीब बंदी जो अपनी जमानत नहीं करा पाते थे, उनकी भी पंधेर आर्थिक मदद करता था। जेल में धीरे-धीरे वह अध्यात्म की तरफ रुख करने लगा था, लेकिन बाद में उसे करुण अंत वाले उपन्यास पढ़ने का शौक हो गया था।





