No Detention Policy : अब 5वीं, 8वीं में फेल बच्चों को प्रमोट नहीं किया जाएगा, सरकार ने नीति बदली!

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No Detention Policy : अब 5वीं, 8वीं में फेल बच्चों को प्रमोट नहीं किया जाएगा, सरकार ने नीति बदली!

फिर हुई परीक्षा में बच्चे फेल हुए, तो भी बच्चों को स्कूल से नहीं निकालेंगे, अधिसूचना जारी!

New Delhi : केंद्र सरकार ने सोमवार को ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ खत्म कर दी। पहले इस नियम के तहत फेल होने वाले स्टूडेंट्स को आगे की क्लास में प्रमोट कर दिया जाता था। लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा। अब 5वीं और 8वीं में फेल होने वाले स्टूडेंट्स को पास नहीं किया जाएगा। केंद्र सरकार के नए नोटिफिकेशन के मुताबिक फेल होने वाले स्टूडेंट्स को 2 महीने में फिर से परीक्षा देने का मौका मिलेगा। वे फिर फेल होते हैं, तो उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा। जिस क्लास में वो पढ़ रहे थे, उसी में पढ़ेंगे। सरकार ने नया प्रावधान जोड़ा है कि 8वीं तक के ऐसे बच्चों को स्कूल से नहीं निकालेंगे।

केंद्र सरकार की ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ का असर केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित करीब 3 हजार से ज्यादा स्कूलों पर होगा। 16 राज्य और 2 केंद्र शासित प्रदेश (दिल्ली और पुडुचेरी) पहले ही नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर चुके हैं। शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक स्कूली शिक्षा राज्य का विषय है, इसलिए राज्य इस संबंध में अपना निर्णय भी ले सकते हैं। शिक्षा पर बनी टीएसआर सुब्रमण्यम कमेटी और CABE के तहत बनाई गई वासुदेव देवनानी समिति ने भी नो डिटेंशन पॉलिसी को रद्द करने की सिफारिश की थी।

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पॉलिसी में बदलाव का फैसला इसलिए किया

सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन यानी CABE ने 2016 में ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मिनिस्ट्री को ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ हटाने का सुझाव दिया था। CABE ने कहा कि इस पॉलिसी के वजह से स्टूडेंट्स के सीखने का स्तर गिर रहा है। नो डिटेंशन पॉलिसी के अंतर्गत स्टूडेंट्स का मूल्यांकन करने के लिए टीचर्स के पास पर्याप्त साधन नहीं थे। ज्यादातर मामलों में स्टूडेंट्स का मूल्यांकन ही नहीं किया जाता था। देशभर में 10% से भी कम स्कूलों में पॉलिसी के हिसाब से टीचर्स और इंफ्रास्ट्रक्चर पाया गया। पॉलिसी में मुख्य रूप से एलिमेन्ट्री एजुकेशन में स्टूडेंट्स का एरोल्मेंट बढ़ाने पर फोकस किया गया। जबकि, बेसिक शिक्षा का स्तर गिरता रहा। इससे स्टूडेंट्स पढ़ाई को लेकर लापरवाह हो गए क्योंकि, उन्हें फेल होने का डर ही नहीं था।

2016 की एनुअल एजुकेशन रिपोर्ट के अनुसार क्लास 5वीं के 48% से कम स्टूडेंट्स दूसरी क्लास का पाठ्यक्रम पढ़ पाते हैं। जबकि, ग्रामीण स्कूलों में 8वीं क्लास के सिर्फ 43.2% स्टूडेंट्स ही ये कर सकते हैं। 5वीं में चार में से एक स्टूडेंट ही अंग्रेजी का वाक्य पढ़ सकता है। कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्रारंभिक शिक्षा पर आर्टिकल 16 के इस असर को लेकर चिंता जताई थी।

इसलिए लागू की गई थी नो डिटेंशन पॉलिसी

यह नो पॉलिसी राइट टू एजुकेशन 2009 का हिस्सा थी। ये सरकार की पहल थी, जिससे भारत में शिक्षा की स्थिति में सुधार हो सके। इसका मकसद था कि बच्चों को शिक्षा के लिए बेहतर माहौल दिया जा सके, ताकि वो स्कूल आते रहें। फेल होने से स्टूडेंट्स की आत्मसम्मान को ठेस पहुंच सकती हैं। साथ ही फेल होने से बच्चे शर्म भी महसूस करते हैं जिससे पढ़ाई में वो पिछड़ सकते हैं। इसलिए ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ लाई गई थी, जिसमें 8वीं तक के बच्चों को फेल नहीं किया जाता।