किसी को रास नहीं आई सीधी जिले की यह टेढ़ी घटना (No one liked this crooked incident of sidhi district)

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किसी को रास नहीं आई सीधी जिले की यह टेढ़ी घटना (No one liked this crooked incident of sidhi district);
सीधी जिले में पत्रकार-रंगकर्मी और पुलिस का असंवेदनशील व्यवहार चर्चा का विषय बना हुआ है। अभी कुछ दिन पहले ही सतना में एक दुराचारी महंत की घटना के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए सीधी की यह घटना टीआरपी में पहले पायदान पर पहुंच गई है। एक्शन भी हुआ है, पहले टीआई-एसआई को लाइन अटैच करने की बात सामने आई। फिर डीजीपी ने इन्हें निलंबित कर जांच के आदेश दिए। कुल मिलाकर पुलिसिया ज्यादती पर कथित पत्रकार- रंगकर्मी भारी पड़ गए हैं। या फिर यह कहा जाए कि उन पुलिस अधिकारियों को यह कतई भान नहीं था कि फोटो वायरल करने का अंजाम क्या हो सकता है, जब कि पत्रकार का नाम जुड़ जाए।
सवालिया निशान कुछ इस तरह लगे। क्या यू ट्यूब चैनल चलाने वाला पत्रकार नहीं हो सकता? क्या हर यू ट्यूब चलाने वाला ब्लैक मेलर होता है? क्या यही बात हर पुलिसकर्मी-नेता-अधिकारी के बारे में कह सकते हैं? पुलिस को अपराध होने पर कानून के अनुसार कार्यवाई का अधिकार है लेकिन इस तरह किसी को अपमानित करने का नहीं है। हर कोई पत्रकार और कलाकार को अपने ढंग से परिभाषित कर सकता है लेकिन पुलिस ने जो किया वह अस्वीकार्य है।
जैसा कि आरोपी पुलिस अफसर की सफाई आई थी कि सुरक्षा की वजह से किया गया। उस पर प्रतिक्रिया आई कि जिस तरह इन्होंने कपड़े उतरवाकर आरोपियों की सुरक्षा का ख्याल रखा था। उसी तरह अब इन जिम्मेदारों की सुरक्षा की जरूरत है। यह घर में रहें या ऑफिस में। फांसी न लगा लें पनिशमेंट  पर, इससे इन्हें इसी अवस्था में यानि अर्धनग्न रखकर इनकी हिफाजत की जाए। फिर पांच दिन बाद पूछा जाए कि क्या यह अपने पुराने मत पर कायम हैं या यह महसूस हो रहा है कि उनसे गलती हुई है। सवाल यही है कि  समर्थन में पहुंचे लोगों को अर्धनग्न करके उन पर धारा 151 लगाना और उनका सोशल मीडिया मे फोटो वायरल करना कहाँ तक उचित है?
खैर स्थानीय विधायक के खिलाफ खबर प्रसारित करने पर आठ लोगों को थाने में अर्धनग्न करने के मामले में मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लेकर डीजीपी व आईजी रीवा से एक सप्ताह में जवाब मांगा है। पर बड़ा सवाल यह है कि एक पत्रकार या फर्जी पत्रकार के नाम पर हो रहे इस बवाल के बीच क्या हमें इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि आम आदमी आज भी पुलिसिया खौफ के सामने निरीह है। जब खाकी सामने रौब झाड़ती है तो कानून का “क” भी जेहन में नहीं आ पाता। हालांकि देशभक्ति-जनसेवा के आदर्श वाक्य से ओतप्रोत पूरा पुलिस महकमा ऐसा नहीं है। पर ऐसी एक-एक मछली पूरे तालाब को गंदा करने की कोशिश करती तो दिखती ही है। अब भी बदलाव की बड़ी गुंजाइश है ताकि सीधी जिले की ऐसी टेढ़ी घटनाएं आम आदमी को निराश न कर सकें।