अब हमारा देश गांधी और गोडसे को बराबरी से समझने को तैयार हैं…
आजादी के अमृतकाल और 74वें गणतंत्र दिवस तक पहुंचते-पहुंचते हमारा देश परिपक्वता के नए क्षितिज पर पहुंच चुका है। दुनिया के इस बड़े लोकतंत्र में इस दौर में दो फिल्में चर्चा में हैं। एक तो है ‘पठान’, जिसमें बिकनी के रंग पर विवाद हुआ। पर आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि फिल्मों में अभिनेत्री को बिकनी में देखने की दर्शकों की परिपक्वता पर शक की गुंजाइश न तो सेंसर बोर्ड को है, न जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को कोई समस्या है और न ही संस्कृति के पहरेदारों के माथे पर ही शिकन बची है। क्योंकि रुपहले पर्दे पर बिकनी में अभिनेत्री को देखने की सहनशीलता तो दर्शकों ने अपने अंदर पैदा कर ली है। और अब दूसरी फिल्म ‘गांधी और गोडसे’ पर चर्चा करें, तो इस फिल्म के ट्रेलर में बार-बार गांधी और गोडसे को आमने-सामने दिखाया जा रहा है। आजादी के अमृतकाल में अब यह माना जा रहा है कि देश के नागरिकों के सामने गोडसे का पक्ष भी सामने आना चाहिए कि उसकी सोच क्या थी, जिसमें गांधी के प्रति इतनी नफरत पैदा हो गई कि उसे हत्या करने का विकल्प चुनना पड़ा। एक जगह फिल्म के पक्ष में कोई अपना मत रख रहा था कि गोडसे ने जो किया, उसकी सजा उसे मिल चुकी है। ऐसे में लोगों को अब गोडसे का मत भी तो जानना चाहिए। निश्चित तौर से लोकतांत्रिक परिपक्वता का यह उच्चतम स्तर है, जिसमें आजादी के नायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे की बात भी दर्शक मन से सुनकर अपना-अपना मत बनाने के लिए आजाद हैं। इसके बाद लोग इसके लिए भी स्वतंत्र हैं कि चाहें तो महात्मा गांधी को मन के मंदिर में विराजमान रखें और चाहें तो गोडसे की विचारधारा पर मोहित हो जाएं। तो 74वें गणतंत्र दिवस तक पहुंचते-पहुंचते हमने अपनी सोच को लोकतांत्रिक बनाने में कोई कमी नहीं रखी है। एक उज्जवल पक्ष और भी है कि जब राज्यों में जिम्मेदार फिल्मों पर बयानबाजी कर ही चर्चा में रहने की आदत बनाने लगें तो केंद्र के उनके आदर्श ही उनकी गलती की तरफ इशारा करने में कोई कोताही नहीं बरतते। हालांकि इस मत को भी अलग-अलग मायने में विश्लेषण की कसौटी पर परखे जाने की स्वतंत्रता है। पर जिम्मेदारों ने तो फिल्मों पर बयानबाजी से किनारा कर लिया है।
तो 74 वें गणतंत्र दिवस पर यह बात भी काबिले गौर है कि देश तरक्की के नए-नए पायदान पर कदम रख रहा है। अब बात देश में समान नागरिक संहिता की हो रही है। अब दुनिया में हर क्षेत्र में देश के बढ़ते दायरे से इंकार नहीं किया जा सकता। जी-20 की अध्यक्षता का अवसर मिलना निश्चित तौर से बड़ी उपलब्धि है। योग की स्वीकार्यता ने विश्व में भारत के ज्ञान का लोहा मनवाया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संदेश के मुताबिक “हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों पर गर्व का अनुभव कर सकते हैं। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में,भारत गिने-चुने अग्रणी देशों में से एक रहा है। इस क्षेत्र में काफी समय से लंबित सुधार किए जा रहे हैं, और अब निजी उद्यमों को इस विकास-यात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने के लिए ‘गगनयान’ कार्यक्रम प्रगति पर है। यह भारत की पहली मानव-युक्त अंतरिक्ष-उड़ान होगी।हम सितारों तक पहुंचकर भी अपने पांव जमीन पर रखते हैं। भारत का ‘मंगल मिशन’ असाधारण महिलाओं की एक टीम द्वारा संचालित किया गया था,और अन्य क्षेत्रों में भी बहनें-बेटियां अब पीछे नहीं हैं।महिला सशक्तीकरण तथा महिला और पुरुष के बीच समानता अब केवल नारे नहीं रह गए हैं। हमने हाल के वर्षों में इन आदर्शों तक पहुँचने की दिशा में काफी प्रगति की है। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान में लोगों की भागीदारी के बल पर हर कार्य-क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। राज्यों की अपनी यात्राओं, शिक्षण-संस्थानों के कार्यक्रमों और प्रोफेशनल्स के विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों से मिलने के दौरान, मैं युवतियों के आत्मविश्वास से बहुत प्रभावित होती हूं। मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि महिलाएं ही आने वाले कल के भारत को स्वरूप देने के लिए अधिकतम योगदान देंगी। यदि आधी आबादी को राष्ट्र-निर्माण में अपनी श्रेष्ठतम क्षमता के अनुसार योगदान करने के अवसर दिए जाएं, तथा उन्हें प्रोत्साहित किया जाए, तो ऐसे कौन से चमत्कार हैं जो नहीं किए जा सकते हैं?”
पर सत्य यही है कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में, राष्ट्रीय आंदोलन का उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करना भी था और भारतीय आदर्शों को फिर से स्थापित करना भी था। जिस दिशा में देश लगातार कदम आगे बढ़ा रहा है। वसुधैव कुटुंबकम् का भाव भारत की वैश्विक दृष्टि में समाहित है। तो महात्मा गांधी की सोच पर देश आधुनिक विज्ञान और तकनीक के साथ आत्मनिर्भर होने का तानाबाना बुन रहा है। जैसा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संदेश में कहा है कि “मैं इस बात पर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी कि महात्मा गांधी आधुनिक युग के सच्चे भविष्यद्रष्टा थे, क्योंकि उन्होंने अनियंत्रित औद्योगीकरण से होने वाली आपदाओं को पहले ही भांप लिया था और दुनिया को अपने तौर-तरीकों को सुधारने के लिए सचेत कर दिया था।”
तो यह हमारे गणतंत्र के लंबे सफर का ही असर है कि आज हम गांधी और गोडसे की विचारधारा को बराबरी के स्तर पर समझने का भाव पैदा कर पाए हैं। फिर भी यह तय है कि इक्कीसवीं सदी में यह साबित होकर रहेगा कि हम भारतीयों के दिल में महात्मा गांधी हमेशा बसेंगे। एक युगदृष्टा की तरह वह हमेशा अलग-अलग मत और वैचारिक संघर्ष के मध्य मुस्कराकर यह बताते रहेंगे कि भारत कितनी भी विपरीत परिस्थितियों में कभी नहीं हारेगा, क्योंकि ज्ञान और दर्शन, धर्म और संस्कृति की समृद्ध परंपरा की जड़ें यहां गहराई तक समाईं हैं।
Renuka Singh बनीं आईसीसी इमर्जिंग वीमेंस क्रिकेटर ऑफ द ईयर