हे ईश्वर यह क्या हो रहा है…?

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आज शाम को मोबाइल की घंटी बजी। नंबर सेव नहीं था, पर ट्रू कॉलर हमारे भ्रातृवत होशंगाबाद के मुकेश शर्मा का नाम बता रहा था। मैंने फोन रिसीव किया और उधर से आवाज आई कि भाईसाहब आपको कोई सूचना मिली। मैंने कहा नहीं…। मैंने पूछा क्या हुआ, तो उधर से आवाज आई कि प्रशांत को अटैक आया है। मेरा दिमाग घूम गया। सबसे पहले दिमाग में भाजपा के युवा प्रवक्ता उमेश शर्मा का चेहरा घूम गया। जो पूरी तरह से फिट जैसे दिखते हुए अटैक के चलते हाल ही में इस फानी दुनिया से कूच कर गए थे। जिनके जाने की खबर ने मुझे भी बहुत दुःखी किया था। वह 11 सितंबर की बात थी और अब छह दिन बाद 17 सितंबर को फिर अटैक की खबर सुनने से दिल भारी हो गया था। क्योंकि मामला भी दिल का था और प्रशांत दिल के भी बहुत करीब था। मैंने मुकेश से अधीर होकर पूछा… कैसा है प्रशांत…? मुकेश ने राहत पहुंचाते हुए बताया कि अस्पताल में है और अब ठीक है। मैंने कहा प्रशांत न तो फैटी है और न ही कोई समस्या थी उसे…फिर अटैक आना चिंता की बात है। मुकेश ने बताया कि वह अस्पताल में छोड़कर आया है। मैंने कहा तुम वापस जाओ तो अपने फोन से ही प्रशांत से बात करा देना। मुकेश बोला ठीक और मैंने फोन रख दिया। सोच रहा था कि जीवन की आपाधापी में कितना फंसा है हर आदमी कि सामान्य तौर पर बात होती रहे, यह भी संभव नहीं रहता। अभी 15 सितंबर को ही प्रशांत ने मेरी पुस्तक ‘द बिगेस्ट अचीवर शिवराज’ के विमोचन की सूचना और तस्वीर हम लोगों के एमएएमसी ग्रुप पर पोस्ट की थी। 14 को पुस्तक का विमोचन विधानसभा में हुआ था, तो 15 को मैं विधानसभा नहीं जा पाया था। प्रशांत 15 को विधानसभा आया था, तो उसे यह सूचना मिली होगी। सारी बातें दिमाग में चल ही रही थीं, कि एक ग्रुप पर दु:खद सूचना पर यकायक नजर टिकी, तो खोलकर देखा। दिल टूट गया था यह पढ़कर कि नर्मदापुरम के वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत दुबे के निधन की सूचना मिल रही है। अब तो दिमाग भी काम नहीं कर रहा था। पलटकर मुकेश को फोन लगाया तो वह रुआंसी आवाज में बोला कि मेरी हालत अब बोलने की भी नहीं है। तीन अटैक आए और प्रशांत का निधन हो गया। नर्मदापुरम में प्रशांत का घर मुकेश के सामने ही है। दुख यह भी कि दो छोटी बेटियां हैं और एक बेटी की तबियत भी ठीक नहीं रहती। अब बात करने को कुछ नहीं रह गया थी। मुकेश ने फोन रखते-रखते यह बताया कि प्रशांत का अंतिम संस्कार कल पिपरिया में होगा…। और कुछ देर बाद ही प्रशांत के साथ सात साल एक साथ रहकर पत्रकारिता करने वाले दीपक का फोन आ गया, क्योंकि उसे पता था कि प्रशांत मेरे बहुत करीब था। शायद यही कह रहा था कि सब कुछ बुझ गया, अंधेरा पसर गया है…। सच यही था कि सब कुछ खत्म हो चुका था। प्रशांत दुनिया से विदा हो गया था, बिल्कुल दबे पांव…बिना किसी आहट के। पड़ोसी को तो क्या उसकी पत्नी को भी भनक नहीं लगी और दिल के दो मासूम कलेजे तो अभी इन शब्दों का भान करने लायक भी नहीं हैं…।
प्रशांत की उम्र बमुश्किल 40-42 होगी। जब मैंने एमपीपीएससी की परीक्षाएं न होने पर पत्रकारिता का रूख कर लिया और इसी बीच देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर के पत्रकारिता विभाग से एमए इन मास कम्युनिकेशन में प्रवेश लिया, तब प्रशांत हमारा सहपाठी था। हालांकि उस दौरान हम उम्र में उससे ज्यादा थे, पर सहपाठी होने के चलते मित्रता में भी सम्मान का व्यवहार प्रशांत सहित सभी साथी करते थे। पर सहपाठी होने का मतलब ही यही होता है कि बातें तो दिल से ही होती हैं। दो साल बाद फिर सब अलग-अलग दिशाओं में कूच कर गए। प्रशांत होशंगाबाद जो अब नर्मदापुरम है, में सक्रिय पत्रकारिता के रास्ते पर दौड़ रहा था। खूब जी लगाकर पत्रकारिता की। बढ़ों को सम्मान दिया, बराबरी वालों संग यारी निभाई और छोटे पत्रकारों को स्नेह सहित मार्गदर्शन करने में कोई कंजूसी नहीं की। और यही वजह है कि उसके असमय जाने का आत्मिक आघात सभी को है।
प्रशांत ने एक सजग पत्रकार रहते हुए उन सभी उलझनों को भी मोल लिया, जो पत्रकारिता धर्म के आड़े आती हैं। चाहे खनन की आवाज उठाने पर उसे अपहरण और धमकियों का दंश झेलना पड़ा हो। या फिर समय-समय पर संस्थानों को बदलने और पत्रकारिता के साथ-साथ आर्थिक समन्वय का दोहरा बोझ ढोने का संघर्ष। इन सब पर आत्मसम्मान के साथ नौकरी करने और घर की जरूरतों को पूरा करने की बड़ी चुनौती हो। पर प्रशांत की यह खूबी थी कि पत्रकारिता के अपने अग्रज, साथी और अनुज कोई भी हों, वह अगर नर्मदापुरम पहुंचे तो व्यवस्थाएं करने और आत्मीयता से भरा साथ देने में कभी भी पीछे नहीं हटा प्रशांत। और इसके बाद भी कभी किसी के सामने समस्याओं का रोना तो दूर…बल्कि जिक्र तक नहीं किया। अभी पिछली दफा बात हुई तो यही कि बहुत दिन हो गए नर्मदापुरम आए, आ जाओ। तो मैंने भोपाल आने का न्यौता दे दिया। पत्रकारिता के दुर्गम रास्तों में हमें अगर सर्वाधिक समय साथ रहने का अवसर मिला, तो वह विधानसभा पत्रकार दीर्घा समिति के सदस्य बतौर 2018 में केरल, कर्नाटक और कन्याकुमारी के दौरे में करीब एक सप्ताह संग बिताए थे हमने। करीब बीस साल के वह सात दिन ताउम्र संग रहेंगे हमारे जेहन में प्रशांत…जिन्हें संग लेकर तुम दूसरी दुनिया को बिना बताए ही चले गए …। फिर वही गाने गूंज रहे हैं फिजां में…’दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहां…’, या ‘ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना…’। पर अब कब लौटोगे और किस देह में आओगे … शायद ही यह निष्ठुर आंखें पहचान पाएं…। हां दिल में प्रशांत के रूप में तुम हमेशा जिंदा रहोगे, कभी विदा नहीं होगे प्रिय मित्र, भाई …। पर ईश्वर से यह शिकायत जरूर रहेगी कि कोरोना के भीषण त्रास के बाद आखिर यह क्या हो रहा है? हार्ट अटैक से यूं जीवन जीने की हसरत लिए जवानी में ही दुनिया से कूच करने को मजबूर क्यों कर रहे भगवान…। कभी-कभी यह शब्द भी बेमानी लगने लगते हैं कि ‘ईश्वर जो करता है, वह अच्छे के लिए ही करता है।’