
Open letter to Indore Collector-पूर्व सूचना आयुक्त राहुल सिंह का तंज: “RTI लगाने वालों की नहीं, भ्रष्ट अधिकारियों की भी बनाएं सूची”
Bhopal/Indore: मध्यप्रदेश के पूर्व राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इंदौर कलेक्टर को एक खुला पत्र लिखकर प्रशासन पर तीखा व्यंग्य किया है। उन्होंने कहा है कि अगर प्रशासन “RTI लगाने वालों” की सूची बना रहा है, तो समानांतर रूप से “भ्रष्ट अधिकारियों” और “छिपाई गई जानकारियों” की सूची भी तैयार की जानी चाहिए।
राहुल सिंह ने पत्र में लिखा-
“RTI आवेदन बार-बार लगाने वालों की सूची बनाना स्वागत योग्य कदम है, परंतु इससे भी जरूरी है उन अधिकारियों की सूची बनाना जिनके दफ्तरों में बार-बार RTI लगानी पड़ती है। अगर जानकारी समय पर और पारदर्शिता से दी जाए, तो RTI की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।”
“सूचना छिपाने वालों की भी सूची बने”
पूर्व सूचना आयुक्त ने प्रशासन पर तीखा सवाल उठाते हुए कहा कि केवल आवेदकों को निशाना बनाना एकतरफा दृष्टिकोण है। उन्होंने सुझाव दिया-
👉 “एक सूची उन भ्रष्ट कामों की भी बनाएं, जिनकी जानकारी को बार-बार RTI से छिपाया जाता है।”
👉 “एक सूची उन अधिकारियों की भी जारी करें जो यह कहते हैं कि RTI से विकास कार्य रुक रहे हैं।”
👉 “और एक सूची उन अधिकारियों की भी बननी चाहिए जो ब्लैकमेल के मामलों में FIR दर्ज नहीं कराते, जबकि कानून में प्रावधान स्पष्ट है।”
“RTI में मैच फिक्सिंग का खेल भी देखा”
राहुल सिंह ने अपने कार्यकाल के अनुभव साझा करते हुए कहा कि RTI प्रणाली में “कुछ आवेदक और अधिकारियों” के बीच मैच फिक्सिंग का खेल चलता है।
उन्होंने लिखा-
“मैं देश का शायद पहला सूचना आयुक्त था जिसने RTI आवेदक के ‘संतुष्टि प्रमाण पत्र’ देने के बावजूद भ्रष्ट अधिकारियों पर जुर्माना लगाया। कई बार देखा कि आवेदक और अधिकारी मिलकर सूचना आयोग में अपीलें खारिज करवाने की साजिश करते हैं।”
“कौन से ऐसे पावन विकास कार्य हैं जिन पर ब्लैकमेल का डर?”
अपने पत्र में सिंह ने प्रशासनिक व्यवस्था पर तीखा सवाल उठाया-
“मुझे यह जानने की जिज्ञासा है कि आखिर वे कौन से पावन और पुनीत ‘विकास कार्य’ हैं, जिनको लेकर हमारे ईमानदार अधिकारी ब्लैकमेल हो रहे हैं?”
उन्होंने कहा कि प्रशासन को सूची बनाने में ऊर्जा नष्ट करने की बजाय पारदर्शिता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
“अगर RTI की धारा 4 लागू हो जाए तो खत्म हो जाएगा सारा टंटा”
पूर्व आयुक्त ने याद दिलाया कि RTI अधिनियम 2005 की धारा 4 के अनुसार, सभी सार्वजनिक सूचनाओं को स्वतः सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
“अगर यह प्रावधान पूरी ईमानदारी से लागू हो जाए, तो RTI आवेदन लगाने की जरूरत ही नहीं रहेगी। हां, जब सारे कामकाज पारदर्शी हो जाएंगे, तब जिन ‘विकास कार्यों’ में तेजी दिखाई जाती है, वहाँ शायद मंदी का माहौल बन जाए,” उन्होंने तंज कसते हुए कहा-
“ये जो पब्लिक है, सब जानती है”
राहुल सिंह ने अपने पत्र का समापन एक तीखे लेकिन व्यंग्यपूर्ण अंदाज में किया- “आप सूची बनाइए, ये जो पब्लिक है, सब जानती है।”
सोशल मीडिया पर लिखा यह पत्र तेजी से वायरल हो रहा है। नागरिक समाज और पारदर्शिता के पक्षधर इसे “प्रशासनिक ढोंग पर सटीक प्रहार” बता रहे हैं।
**पृष्ठभूमि**
हाल ही में इंदौर प्रशासन ने यह निर्णय लिया था कि जो व्यक्ति बार-बार RTI आवेदन लगाते हैं, उनकी सूची तैयार की जाएगी। इस निर्णय पर पारदर्शिता के क्षेत्र में कार्यरत लोगों ने सवाल उठाए थे कि इससे “सूचना के अधिकार” को कमजोर करने की कोशिश हो रही है।
राहुल सिंह का यह खुला पत्र उसी विवाद का जवाब माना जा रहा है- जिसमें उन्होंने सीधे तौर पर व्यवस्था की कमजोर नस पर हाथ रखा है।
**विश्लेषणात्मक टिप्पणी**
यह पत्र न केवल RTI प्रणाली की जमीनी सच्चाई को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सूचना का अधिकार केवल नागरिक का हथियार नहीं, बल्कि शासन की पारदर्शिता की कसौटी भी है।
राहुल सिंह की यह बेबाक चिट्ठी एक बार फिर याद दिलाती है कि लोकतंत्र में सवाल पूछना अपराध नहीं, बल्कि जवाबदेही की बुनियाद है।




