रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया, तब पता चला कि मध्यप्रदेश और देश के हजारों युवा भविष्य संवारने के लिए यहां सालों से जमे हैं और मुश्किल हालातों में वतन वापसी को बेचैन हैं। यूक्रेन में अब तक हर दिन उन्हें बेहतर भविष्य की उम्मीदें जगाता था, वहां अब हर सुबह भयावह हो चली है, दोपहर मौत का गीत गाती है, शाम जिंदगी को मुंह चिढ़ाती है और रात पलकें झपकने से जी चुराती है।
खौफ का तूफान सांय-सांय कर कानों को बहरा कर रहा है और आंखों के सामने घनघोर अंधेरा छा रहा है। कोई बंकर में पड़ा जिंदगी बचाने को मजबूर है, तो कोई सीमा की तरफ दौड़ लगा देश लौटने की जुगत में चैन खो रहा है। कम से कम वह सभी भारतीय युवक-युवती, जिनके कानों तक धमाकों की गूंज पहुंच रही है…यही सोच रहे हैं कि आ अब लौट चलें…। आखिर जिंदगी बनाने के लिए उस वतन गए थे, जहां अब जिंदगी ही दांव पर लग गई है। इधर माता-पिता परेशान हैं तो उधर बच्चों की सांसें अटकी हुई हैं।
इस बीच भारत सरकार का “ऑपरेशन गंगा” अभियान माता-पिता और यूक्रेन में फंसे बेटे-बेटियों के कलेजों को ठंडक पहुंचाने वाला है। यूक्रेन में फंसे 219 बच्चों को लेकर मुंबई पहुंचा एयर इंडिया का विमान मानो भागीरथ बनकर अपनी धरती पर राहत की गंगा की पहली खेप ले आया है। और अब उम्मीद बंधी है कि भविष्य संवारने यूक्रेन गए देश के लाल और लाड़लियों का भविष्य अपने वतन लौटकर सुरक्षित हो सकेगा। ऐसी विषम परिस्थितियों में कुछ भी हो लेकिन यह अहसास तो होता ही है कि “मोदी है तो मुमकिन है”। और भरोसा इसलिए होता है क्योंकि मोदी ने संकटमोचक बनकर कई मौकों पर यह साबित कर दिया है।
ऐसे में मूल सवाल फिर वही कि आखिर सस्ती पढ़ाई के लिए हमारे होनहार कब तक दूसरे देशों में जाकर अपना भविष्य दांव पर लगाने को मजबूर रहेंगे। दोहरी विडंबना यह कि देश में पर्याप्त डॉक्टर नहीं है और जो विद्यार्थी डॉक्टरी की पढ़ाई करना चाहते हैं, उन्हें पढ़ने के संसाधन देश में उपलब्ध नहीं हैं। निजी कॉलेजों में डॉक्टरी की पढ़ाई इतनी महंगी कि या तो कुबेर या फिर माफिया ही अपने बच्चों पर डॉक्टरी थोप सकते हैं या फिर उनके सपने में रंग भरने की हिम्मत जुटा सकते हैं। खैर अब जो हालात यूक्रेन में बने हैं, यदि विश्व युद्ध हुआ तो पूरी दुनिया में वहीं हालात बन सकते हैं। ऐसे में भविष्य बनाने के लिए दूसरे देशों की नागरिकता ले चुके अप्रवासी भारतीय भी देश लौटकर अपने वतन की मिट्टी की सौंधी महक में जीने की चाह रखेंगे। और तब सबका ही दिल अपने वतन के लिए ही धड़केगा और गुनगुनाएगा कि ” आ अब लौट चलें…।
यह संयोग ही है कि यूक्रेन से सभी भारतीय विद्यार्थियों को देश में सुरक्षित वापस लाने के अभियान का नाम “ऑपरेशन गंगा” रखा गया है। और “आ अब लौट चलें…” गीत की फिल्म का नाम है “जिस देश में गंगा बहती है…”। इसके संगीतकार शंकर-जयकिशन हैं और गीतकार शैलेन्द्र हैं। इस गाने को लता मंगेशकर और मुकेश ने गाया है। 60 के दशक का यह गीत आज भी पूरी तरह से समसामयिक है। तो इस गीत को पढ़कर हम यह महसूस कर सकते हैं कि अपना वतन क्या होता है और अपना घर ही अपना घर होता है। एक नजर डालते हैं इस गीत पर। रविवार की सुबह इसे सुनेंगे, तो मन आनंदित हुए बिना नहीं मानेगा…यह भरोसा है।
– गीत –
आ अब लौट चले
नैन बिछाये, बाहें पसारे
तुझको पुकारे देश तेरा…।
सहज है सीधी राह पे चलना
देख के उलझन बच के निकलना
कोई ये चाहे माने ना माने
बहोत है मुश्किल गिर के संभलना…।
आँख हमारी मंज़िल पर है
दिल में खुशी की मस्त लहर है
लाख लुभाये महल पराये
अपना घर फिर अपना घर है…।