Opium Vegetable {Papaver somniferum}: ये भाजी खाने का नशा नही बल्कि नशे वाली भाजी है-अफीम की भाजी
ये भाजी खाने का नशा नही बल्कि नशे वाली भाजी की पोस्ट है। जी हाँ आज पोस्ट में है सभी प्रकार के नशे की रानी अफीम की भाजी। हालाकि भाजी प्रतिबंधित नही है।
अफीम का वानस्पतिक नाम Papaver somniferum है, जिसे अंग्रेजी में opium कहा जाता है। अफीम इससे निकलने वाला सैकंडरी मेटबॉलाइट याने द्वतीयक उत्पाद है। जिसमे कई महत्वपूर्ण अल्कालोइड्स जैसे मोरफीन, कोडीन, पेपवरीन, नोसकेपीन आदि पाये जाते हैं। ये सभी औषधीय महत्व के हैं।
अफीम से प्राप्त रसायनों का प्रयोग सर्वाधिक निस्चेतक दवाओ के निर्माण में किया जाता है। इसके अलावा सर्दी खांसी, दर्द निवारक, सौंदर्यवर्धक, स्वास्थ्यवर्धक और इन जैसी न जाने कितनी दवाओं के रूप में यह उपयोगी है।
यह सबसे चमत्कारिक एवम् बहुमूल्य दवाओ के समूह का पौधा है। किन्तु इसका दुरूपयोग नशे के रूप में किये जाने तथा इसकी अत्यधिक कीमत होने के कारण इसकी खेती शासकीय तंत्र की देखरेख में ही की जा सकती है, जिसकी अनुमति मध्य प्रदेश के केवल मन्दसौर तथा नीमच जिलों में ही है। इसके अलावा राजस्थान के चित्तौड़ सहित कुछ जिलों में भी इसकी खेती की अनुमति है।
एक समय की बात है, जब अंग्रेज इसे पूरे भारत मे उगाते थे। आजादी के बाद भी 1971- 72 के आसपास छिंदवाड़ा जिले के चौरई में इसकी खेती की जाती थी। दादी बताती थी कि काम के दौरान जब छोटे बच्चे तंग करने लगते थे तो बुजुर्ग उन्हें थोड़ा सा अफीम चटाकर सुला देते थे। इसके अलावा खांसी की अचूक दवा के रूप में भी इसका इस्तेमाल बहुत आम था।
और सबसे महत्वपूर्ण उपयोग यह है कि चिर यौवन प्राप्त करने वाली सभी दवाओं में यह आवश्यक रूप से उपयोग की जाती है। इसके दवा एवम् नशे के उपयोग की जानकारी तो सारी दुनिया को है, लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे की इसकी पत्तियो की साग बहुत ही स्वादिष्ट होती है, जो दाल बाफले के साथ मन्दसौर की प्रमुख पहचान है। स्थानीय लोग कहते हैं कि भाजी खाने से नशा नही होता लेकिन मुझे तो इसे खाने के बाद बहुत नींद आती थी। मेरे मन्दसौर के कार्यकाल में कई बार अफीम की भाजी और दाल बाफले खाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। और एक बार तो घर आते समय रात्रि में इसकी भाजी खाई, फिर क्या था भोपाल आकर ही नींद खुली। खैर कोई चोरी चकारी वाली घटना नही हुई तो अनुभव खराब होने से बच गया।
अफीम भाजी बनाने के लिए कोमल पत्तियों को उबालकर इसे अच्छी तरह निचोड़ लिया जाता है। अतिरिक्त पानी फेक देते हैं। फिर इसे प्याज़, मिर्च, लहसन और अदरख के साथ बघार देते हैं। हालाकि यह विधि आपके काम आने वाली नही है क्योंकि इसे खाने के लिये आपको उन्ही स्थानों पर जाना पड़ेगा जहाँ यह उगाई जाती है।
स्थानीय लोग इसे सुखाकर बाद के लिए रख देते हैं, और आवश्यकतानुसार बनाते रहते हैं। मैंने सूखी भाजी भी खाई है। अफीम के बीज पोस्ता दाना याने खसखस कहलाते हैं। किसी भी तरी वाली सब्जी हो या भरवा मसाला सभी मे खसखस का होना स्वाद की गारंटी मानी जाती है। अफीम प्राप्त करने के लिए इसके अधपके डोडे/फल को चीरा मारकर दूध/ लेटेक्स एकत्र किया जाता है, जिसकी सिर्फ सरकारी खरीदी होती है। बाद में इस डोडे चूरे की भी नीलामी होती है, जिसकी बिक्री भी शायद भांग के समान लाइसेंसी दुकानों से होती है। कुछ लोग कहते हैं कि कई चाय दुकानदार इस चूरे को चाय में मिलाते हैं ताकि लोगो को चाय की लत लग जाये। अब इसमें कितनी सच्चाई है यह तो स्थानीय लोग ही बता सकते हैं।यह जानकारी आपको कैसी लगी, बताइयेगा…।
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिन्दवाड़ा (म.प्र.)