अपनी भाषा अपना विज्ञान:आँखों ही आँखों में
‘आँखें बोलती है।‘ ‘मुहब्बत तो आंखों से बयां होती है।‘ ‘आंख से कुछ छुप नहीं सकता।‘ ‘लोग आँखें दिखाते हैं, फेर लेते हैं और चुराते भी हैं।‘ और ‘कहीं पर नजरें, कहीं पर निशाना होता हैं’. ‘निगाहें मिलाने को जी चाहता है.’ ‘नजर नजर की बात होती है।‘ ‘नजरे मिलती हैं, और चार होती है।‘
मनुष्यों और कुछ हद तक पशुओं से संवाद में बिन बोले बहुत कुछ आंखो से अभिव्यक्त करना और उसे पढ़ पाना सम्भव है। यह प्रतिभा शायद स्त्रियों में अधिक होती है। तभी तो पुरुषों का झूठ वे तुरन्त पकड़ लेती है। कहती है- “मेरी तरफ़ देखकर बोलो।”
लेकिन रुखे-सूखे विज्ञान के इस अरसिक कालम में आज की चर्चा का विषय है नयी तकनालाजी के माध्यम से नैनों की चंचलता को कैमरे से पढ़ना और कुछ खास निष्कर्ष निकालना।
[Eye Gase Recording] [देखने की दिशा का पलपल आकलन]
कम्प्यूटर्स और स्मार्टफोन के सेल्फी वाले कैमरे लगातार बेहतर होते जा रहे हैं। आंख के गोले, पलक और पुतली की छोटी छोटी हरकतों को वे एक सेकण्ड के एक हजारों हिस्सें तक केच कर लेती हैं।
मान लीजिये आप एक पेंटिंग या फोटोग्राफ को गौर से देख रहे हैं। उसमें एक पार्टी का दृश्य है. अनेक स्त्री पुरुष है। बहुत कुछ हो रहा है। और एक कैमरा आपकी आंखों पर फोकस किया हुआ है. पूरे एक मिनिट की अवधि में आपने उस सीन को खूब अच्छे से निहारा । कभी आपकी नज़रें कहीं जाती, कहीं ठहरती, फिर भटकती, फिर रुक जाती, ऊपर-नीचे- दायें बायें गतियां करती रहती, किन्ही किन्ही Target पर बार – बार जाती, अधिक देर ठहरती (कौन जाने कोई सुन्दर, प्रिय स्त्री हो)।
इन गतियों को एक ग्राफ या प्लाट के रूप में दर्शाया जा सकता है। [चित्र 1] इस विधि का शोध में खूब उपयोग हो रहा है।
एक प्रसिद्ध रूसी कलाकार इलया रपिन की पेंटिंग
‘अप्रत्याशित विज़िटर ‘ (1884-1888)
उक्त कृति को निहारते समय किसी व्यक्ति की नज़रों की गति का रिकार्ड
[तालिका – 1]
EYE TRACKING TECHNOLOGY के शोध में अनेक उपयोग
- मानसिक रोग जैसे कि साइजोंफ्रेनिया
- भाषा और संवाद रोगों मे बातचीत में मदद
- ऑटिज़म
- लॉकड सिन्ड्रोम
- झूठ पकड़ने की मशीन Lie detection
- छात्रों द्वारा अध्ययन के दौरान
यहां दो शख्सियतों का उल्लेख करना चाहूंगा। दामीनिक बाबी, जिसके पास यह तकनीक नहीं थी और स्टीफेन हॉकिंग, जिनके पास थी।
एक फ्रेन्च पत्रकार जीन डामिनीक बॉबी, 43 वर्ष, गम्भीर ब्रेन अटैक के बाद लॉक्ड-इन-सिण्ड्रोम (ताला-बन्द अवस्था) में चले गये। केवल बायीं आँख व उसकी पलक हिला पाते थे। दो वर्ष में उनकी मृत्यु हो गई। परन्तु इस अवधि में अपनी स्पीच थेरापिस्ट की मदद से उन्होंने अपनी कहानी लिखवा डाली |
फ्रांसीसी वर्णमाला, अंग्रेजी जैसी है- ए से जेड तक छब्बीस अक्षर।| अब उनका क्रम अलग तरह से जमाया गया। फ्रेंच भाषा में कौन सा अक्षर सबसे ज्यादा उपयोग में आता है? शायद ई’ (E) उसके बाद दूसरा, तीसरा…… से लेकर सबसे कम प्रयुक्त होने वाला शायद जेड (z) स्पीच थेरापी सहायक इस नये क्रम से अक्षर बोलना शुरु करती। जो अक्षर चुनना होता उस पर पलक झपकाई जाती। उसे लिख लिया जाता। फिर दूसरा, फिर तीसरा। शब्द पूरा होने पर कुछ चिन्ह (कोड) अलग था। अनेक घण्टे प्रतिदिन, अनेक महीनों की थका देने वाली, बोरियत भरी मशक्कत के बाद रचना पूरी हुई।
नाम रखा गया “द डाइविंग बेल एण्ड द बटरफ्लाय”।
गोताखोर लोग जब गहरे पानी पैठ करते हैं तो मोती पाने के लिये सागर तल तक उतरना पड़ता है। पानी आपके शरीर को ऊपर फेंकता है। नीचे जाने के लिये पीठ पर एक भारी वजन बाँधते हैं जिसे डाइविंग बेल (गोताखोरी का घण्टा) कहते हैं। जीन डामिनिक को ताला-बन्द अवस्था में ऐसा ही लगता था कि उनके शरीर पर भारी भरकम वजन रख दिया गया है, उनका दम घुट रहा है, वह छटपटा रहा है, उसका हल्का सा मन एक तितली के समान छूट कर उड़ जाना चाहता है।
स्टीफेन हाकिंग प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री। अनेक पुस्तकों के लेखक।
“समय का संक्षिप्त इतिहास”, “ब्रह्माण्ड एक लघु खोल में”, आदि आदि.
उन्हें मोटर न्यूरान रोग हुआ। धीरे धीरे चारों हाथ पैरों की शक्ति जाती रही। व्हीलचेयर पर आ गये। बोलना बन्द हो गया। सुनना, समझता, सोचना, मन में लिखना, शोध करना जारी रहा। शरीर कैद था। मन पूरे ब्रहमाण्ड में विचरण करता था। जीवन के तीन दशक गुजारे।
लेकिन इतना सारा लिखा कैसे? आंखों से। सामने कम्प्यूटर के पर्दे पर पूरी वर्णमाला छपी रहती। प्रत्येक शब्द की स्पेलिंग के अनुसार बारी बारी से उसके अक्षरों पर दृष्टि जाती, एक क्षण ठहरती, फिर अगला अक्षर। शब्द और वाक्य पूरा होने पर पलक को एक बार या दो बार झपकाया जाता। यदि Science शब्द लिखना हो तो डिजिटल कीबोर्ड पर S.C.I.E.N.C.E. पर बारी से नजरे फेरी जाती। धीरे धीरे प्रेक्टिस इतनी अच्छी हो गई कि तेज गति से टाइपिंग होने लगा।
इस तकनीक के माध्यम से अब वाचाघात [Aphasia] अनुच्चारण [Anarthria] और जन्म जात मूक बधिर कहलवा पा रहे हैं। वे लेखक नहीं है। उन्हें अपनी बात कहनी भर है। कल्पना कीजिये एक मरीज की, जिसके मुंह से कोई ध्वनि नहीं निकलपाती, बहुत देर से परेशान है।
वह कुछ कहना चाह रहा है लेकिन बता नहीं पा रहा। घर वाले या अस्पताल में देखभाल करने वाले भी जूझ रहे हैं। क्या यह? नहीं, क्या वह? नहीं नहीं?, फिर क्या?
इस तरह के मरीजों को चाहिये Eye Glaze Reader [नैन – गति मापक] – कैमरा – जो वर्णमाला के अक्षरों, या चित्र संग्रह में से चित्रों की एक झांकी में से छंटवाने का काम तीव्र गति और सटीकता के साथ कर देवे।
इस तरह का हार्डवेयर और साफ्टवेयर फिलहाल महंगा है लेकिन जैसा कि जैसा कि कम्प्यूटर तथा सूचना तकनालाजी के साथ लगातार होता रहा है, उम्मीद है कि दाम जल्दी ही कम होगें।
मरीज द्वारा चित्र, शब्द या वाक्य का चयन करते ही मशीन का सॉफ्टवेयर उसका उच्चारण बोल उठता है और एक डॉक्यूमेंट में टाइप करता जाता है।
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[Eye movement Recording] [आंखों की गति का पलपल आकलन]
अनेक न्यूरोलाजिकल रोगों में आंखों की गति में गड़बड़ी आती हैं। पढ़ने या चित्र देखने को कुछ नहीं कहा जा रहा है कैमरा आखों पर फोकस किया हुआ है। इन्फ्रारेड कैमरा है जो अंधेरे में भी रेकार्डिंग कर सकता।
मरीजो से कहते है – सामने देखो। आंखे खुली रखो। पलकें कम झपकाओं। अब दायीं ओर देखो। या दायीं ओर इस वस्तु या इस प्रकाश बिन्दु को देखो। वहीं देखते रहो। नजरे मत हटाओ। अब बायीं ओर, फिर ऊपर, फिर नीचे। अब जल्दी जल्दी दायीं – बायीं, ऊपर – नीचे। अब धीमी गति से चलायमान एक प्रकाश बिन्दु की ओर देखते रहो जो दायें से बायें, बायें से दायें, ऊपर – नीचे गति कर रहा है।
रेकार्डिंग में क्या देखते हैं? आदेश मिलते हैं। गति में कितने मिली सेकण्ड देर होती है, गति या speed कितनी है ? आँखें लक्ष्य तक सटीकता से पहुंचती है या नहीं ? बीच में रुकती तो नहीं, आदि आदि।
अब सीधे लेट जाओ। फिर दायीं करवट, बायीं करवट। अब आपके दोनों कानों में बारीबारी से ठण्डी और गरम हवा प्रवाहित करूंगा और देखूंगा कि ओखों में क्या हरकत होती है। एक हलचल होती है जिसे Nystagmus कहते हैं। निस्टेग्मस – आंख के गोलो का कम्पन।
इस प्रकार की जाँच का नाम है ENG – Electro Nystagmogram या EOG – इलेक्ट्रोआक्यूलोग्राम अनेक न्यूरोलाजिकल अवस्थाओं में ENG / EOG से रिसर्च तथा डायग्नोसिस में मदद मिलती है। [देखिये तालिका – 2]
[Table – 2] [तालिका – 2]
ENG – EOG की उपयोगिता
(1.) वटाइगों / चक्कर रोग आन्तरिक कर्ण के तथा वहां से मस्तिष्क तक जाने वाली नर्व के रोग
(2.) असन्तुलन / अटेक्सिया रोग – सेरिबेलम रोग,
(3.) गतिज रोग / movement disorders – पार्किन्सोविंडम तथा उससे मिलते जुलते रोग
आंख की पुतली [Pupil] के आकार व गति का आकलन
आंख के अग्र केन्द्रीय भाग में एक झालर लटकी रहती है जिसे आइरिस [Iris] करते हैं। अधिकांश भारतीयों में इसका रंग काला या गहरा कधई होता है। राजकपूर और ऐश्वर्या राय की आंखों में नीला था।
इस झालर के केन्द्र में एक छोटा सा छेद होता है जो गहरा काला दिखता है। इसे पुतली या Pupil कहते हैं। बाहर से आने वाला प्रकाश इसी छिद्र में से भीतर प्रवेश करके, पहले लेंस में से गुजरता हैं और फिर पर्दे (Retina) पर बिम्ब बनाता है।
Pupil का आकार छोटा बड़ा होता रहता है। IRIS रूपी झालर में दो तरह की सूक्ष्म मोसपेशियां होती हैं जो Pupil को संकुचित [Construction] करके छोटा बनाती है या विस्फारित [Dilatation] करके फैला देती है, बड़ा बना देती है। 1 से 5 मिमी के दायरे में सिकुड़ने फैलने का खेल प्रतिपल चलता रहता है।
यदि हम अंधेरे कमरे में हो, कुछ सूझ न पड़ रहा हो, पुतली फैल जाती है। बड़ी हो जाती है, ताकि अधिक से अधिक प्रकाश आंख के अन्दर प्रवेश करे।
यदि हम चकिया चौंध रोशनी में खड़े होती पुतली सिकुड़ती है, छोटी हो जाती है ताकि भीतर कम लाइट घुसे।
हमारी मानसिक अवस्था का पुतली के आकार पर पड़ता है। मन शाल – स्थिर – आराम – की अवस्था में हो तो Pupil छोटी रहेंगे। भय, उत्तेजना, क्रोध, प्यार भरी भावुकता आदि अवसरों पर सिम्पथेटिक नर्वस सिटम ओर एण्डोक्राइन ग्रस्थियों द्वारा Adrenative – Non Adrenative आदि हार्मोन की मात्रा अधिक निकलने से Pupil विस्फारित हो कर बड़ी हो जाती है।
पुलिस द्वारा Forensic जांच में, झूठ – मापी यंत्र [Lie Detector] के रूप में आँख की पुतली का फैल जाना एक मापक के रूप में जाना जाता है।
झूठ बोले कौवा कांटे। उसी समय हार्मोन की मात्रा में सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं। अति संवेदनशील कैमरा आँख की Pupil में महीन को अन्तर को केच कर लेता है। कुछ न्यूरोलाजिकल बीमारियों के निदान में Pupillometer [पुतली-मापक] से मदद मिलती है।
क्यों न इस लेख का अन्त थोड़ी सी रसिकता के साथ कर लिया जावे।
एक शोध में पुरुषों को महिलाओं के चित्र दिखाएं थे और उनकी सुन्दरता को एक से दस की स्केल पर अंकित करने को कहा गया।
सभी चेहरे खूब सुन्दर अभिनेत्रियों के थे। प्रत्येक चेहरा जानबूझ कर दो बार डाला गया था। जिन चेहरों को सर्वाधिक सुन्दर माना गया या उनमें एक बात कामन थी। उन सभी मे आँखों की पुतलियों का आकार Photoshop द्वारा बड़ा कर दिया गया था।
मृगनयनियां तभी अधिक सुन्दर लगती है जब उनकी Pupils विस्फारित हों।
यूरोप में मध्ययुग में अभिजात्य कुल की सामन्ती महिलाओं में Belladona की बूंदे / ointment लगाने का फैशन था। बेलेडोना पौधे से Atropine निकलता है जो अधिक मात्रा में जहरीला होता है। आंखों मैं थोड़ी सी मात्रा उन्हें पुरुषों को नजर में अधिक सुन्दर और सेक्सी बना देती थे। Belladonna शब्द की व्युत्पत्ति क्या है : Bella सुन्दर, Donna – स्त्री
विस्फारित नेत्रों से देखने में मुश्किल होती है। आँखो की जांच करवाते समय जो बूंदे डाली जाती है वे भी Pupil को फैलाती है।
पुरुष सत्तात्मक बायोलाजी और मानसिकता स्त्रियों से जो न करवायें वह थोड़ा है।