अपनी भाषा अपना विज्ञान: चमत्कार, दूर से ही नमस्कार

अपनी भाषा अपना विज्ञान: चमत्कार, दूर से ही नमस्कार

समय समय पर अनेक बाबा लोग, गुरु आदि के बारे में प्रसिद्ध हो जाता है कि उनके पास सिद्धि है, चमत्कार है । विज्ञान के छात्र व शिक्षक के रूप में मैं ऐसे दावों पर विश्वास नहीं करता । सभी रिलीजन से सम्बद्ध धर्मगुरुओं में से किसी किसी के हजारों लाखों भक्त बन जाते है । मनुष्यों की यह कमजोरी समस्त देशों और कालों में देखी जाती रही है । समय के साथ वैज्ञानिक समझ विकसित होने पर इसे कम हो जाना चाहिये । पाखण्ड और अंधविश्वास के विरुद्ध आरंभिक आवाज उठाने वालों में स्वामी दयानंद सरस्वती प्रमख थे । सुपर नेचुरल या प्रकृति से परे शक्तियों पर विश्वास नहीं करना चाहिये । विभिन्न रिलीजन या सम्प्रदाय को मानने वाले लोग कभी कभी शिकायत करते है कि दूसरे रिलिजन में भी अंधविश्वास है, उन की आलोचना करते हुए क्यों डर जाते हो ? इस शिकायत में दम है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आपके रिलीजन से जुड़े पाखंड माफ़ हो गए । दूसरे की गलती आपकी गलती को जायज नहीं ठहराती ।

लीपापोती करने के लिहाज से कुछ लोग अधकचरी वैज्ञानिक भाषा का उपयोग करते हुए चमत्कारों की व्याख्या करने की कोशिश करते है जिसे “मिथ्या विज्ञान(Pseudo -Science)” कहा जाता है । मिथ्या विज्ञान की पहचान करने की 16 कसौटियों का यहाँ वर्णन कर रहा हूँ । आगामी अंकों में सामयिक दृष्टि से कोई नई खबर आने पर उसकी पड़ताल इन्ही 16 में से किन्ही कसौटियों पर हम करते रहेंगे ।

मिथ्या विज्ञान की पहचान कैसे करें ?

पिछले एक लाख वर्षों में होमो सेपियन्स (मनुष्य) जब से बुद्धिमान हुआ, उसमें धीरे-धीरे अनेक गुण और आदतें विकसित हुईं।
१. दुनिया में जो हैं तथा जो घटित हो रहा है, उसे बारीकी से देखना, याद रखना, नोट करना और उसमें छुपे हुए अर्थ निकालना
२. कार्य और कारण के आपसी सम्बन्धों पर गौर करना
३. जो समझ में नहीं आ रहा है उसके बारे में पैने सटीक सवाल पूछना और फिर
४. सवालों का उत्तर पाने के लिये प्रयोग की परिकल्पना करना, उसे अंजाम देना, अवलोकनों के आधार पर निष्कर्ष निकालना
५. नये सिद्धान्त या थ्योरी गढना, उनका परीक्षण करना
६. किन्हीं निष्कर्षों के गलत सिद्ध हो जाने पर उन्हें छोड देना, संशोधित करना, नये सिद्धान्त गढना।
७. प्रयोगों की निष्पक्षता के नियमों का पालन करना । जैसे कि दो समूहों की तुलनात्मक समानता, अवलोकन व मापने की पूर्व निर्धारित विधियाँ, सांख्यिकिया गणना, अवलोकनकर्ता का अंधाकरण, दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोग पुष्टि या खण्डन।

ये सारे गुण और आदतें बहुत धीरे-धीरे, इन्सान के अंदर से विकसित हुई हैं, वैज्ञानिकों ने बाहर से नहीं थोपी हैं। लेकिन यह विकास आसानी से नहीं हुआ है। इसके विपरीत गुणों वाली आदतें भी इन्सान के स्वभाव व सोच का हिस्सा रही है जैसे कि चमत्कार, भूत, प्रेत, चुडैल, उपरी हवा, नजर लगना, पूर्व जन्मों के फल, रहस्यमई ऊर्जाएं, टेलीपेथी, जन्मकुण्डली, हस्तरेखाएं, जादू टोना।

मिथ्या विज्ञान वाले उत्तर व व्याख्याएं आसान प्रतीत होते हैं। आसानी से गले उतर जाते हैं। बहुत लोकप्रिय हैं। उन्हें सामाजिक मान्यता प्राप्त है।


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वैज्ञानिक सोच व समझ कुछ कठिन है। ज्ञान व शिक्षा का आधार चाहिये। संदेह करने की आदत होना चाहिये। किसी भी बात को बिना प्रयोग या तथ्य की वैज्ञानिक विधियों के स्वीकार करने के खिलाफ प्रतिरोध होना चाहिये। साहस और ईमानदारी चाहिये। भेड चाल से अलग होना पडता है।

उक्त दो विपरीत किस्म की सोच व व्यवहार में धीरे-धीरे विज्ञान का पलडा भारी होता जा रहा है क्योंकि एक के बाद एक, प्रकृति के अनेक रहस्यों पर से परदा हटता जा रहा है। फिर भी यह लडाई या संघर्ष या प्रक्रिया लम्बी, कष्टसाह्य और श्रमसाध्य है। इसमें लाखों वैज्ञानिकों ने अपनी मेधा, बुद्धि, मेहनत व समय का बलिदान साहस के साथ निःस्वार्थ भावना से किया है।
गेलीलियो अकेला नहीं था जिसने कहा था कि धरती दुनिया का केंद्र नहीं है, वह सूर्य का चक्कर लगाती है।

मिथ्या विज्ञान की पहचान करने हेतु निम्न कसौटियों पर कसें-

१. क्या कोई दावा किसी सिद्धान्त या थ्योरी की अर्हताओं को पूरा करता है?
– मिथ्या वैज्ञानिक दावे कभी भी ज्ञात व स्वीकृत वैज्ञानिक थ्योरी पर आधारित नहीं होते।
– सिद्धान्त के पीछे प्रायोगिक सबूत होना चाहिये । सुनीसुनाई अपुष्ट बातों को आधार नहीं माना जा सकता।
– प्रायोगिक परीक्षणों द्वारा थ्योरी के गलत सिद्ध हो सकने की पात्रता होना चाहिये।
– उक्त सिद्धान्त द्वारा अभी तक न देखे गये परिणामों का अनुमान लगाना सम्भव हो, जिनकी पुष्टि या खण्डन किया जा सके।
– नये अवलोकनों, सबूतों और सिद्धान्तों के कारण जरूरत पडने पर थ्योरी में संशोधन करने का लचीलापन होना चाहिये।
२. क्या कोई दावा प्राचीन ज्ञान पर आधारित है ?
विज्ञान आधुनिक होता है। सतत परिवर्तनशीलता उसकी सबसे बडी ताकत है। पुराने सिद्धान्तां का स्थान नये लेते रहते हैं।

३. क्या कोई दावा वैज्ञानिक शोध पत्रिकाओं के बजाय पहली बार आम जन संचार या मास-मीडिया में प्रसारित किया गया है?
असली वैज्ञानिक प्रगति की घोषणा की एक लम्बी प्रक्रिया होती है। समकालीन वैज्ञानिकों की टिप्पणी तथा सम्मति पर आधारित शोध प्रपत्रों को छापने वाले प्रतिष्ठित जर्नल्स होते हैं।
एचआईवी- एड्स की दवा निकलने की सूचना प्रेस कान्फ्रेन्स द्वारा नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय, पीयर रीव्यूव्ड शोध पत्रिकाओं के माध्यम से दी गई थी।

४. क्या कोई दावा किसी अज्ञात रहस्यमई ऊर्जा या इनर्जी या अन्य परा-प्राकृतिक शक्ति पर आधारित है?
भौतिक शास्त्र में वर्णित ऊर्जा या एनर्जी का अर्थ है। किसी पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान तक हिलाना। पदार्थ गति ऊर्जा के विभिन्न रूप आपस में परिवर्तनशील हैं । (ऊष्मा, प्रकाश, विद्युत्, चुम्बक, ध्वनि) इनके अलावा कोई अन्य रूप नहीं हैं। पदार्थ और ऊर्जा भी आपस में परिवर्तनशील हैं। E=MC2

५. क्या उक्त दावा करने वाले कहते हैं कि उनकी बात को सरकार या अन्य ताकतों द्वारा दबाया जा रहा है?
वैज्ञानिक कभी ऐसे आरोप नहीं लगाते। सच्चाई छुप नहीं सकती। वैज्ञानिक प्रगति को रोकने के लिये कभी षडयंत्र नहीं रचे जाते।

६. क्या उक्त दावा जरूरत से अधिक अच्छा प्रतीत होता है?
वैज्ञानिक प्रगति में अचानक चमत्कार या क्रान्ति नहीं होती। धीरे-धीरे, इंच दर दंच प्रगति होती है। अनेक दशकों के बाद पीछे मुडकर देखने पर जरूर वे परिवर्तन युगान्तरकारी प्रतीत हो सकते हैं परन्तु साल-दर-साल की प्रगति ऐसी है मानों बाल या नाखुन बढ़ रहे हों।

७. क्या उक्त दावे का श्रेय कोई एक महान वैज्ञानिक या विद्वान या संत या मसीहा को दिया जा रहा है?
वैज्ञानिक प्रगति किसी एक इन्सान के बूते पर नहीं होती। पूर्ववर्ती और समकालीन वैज्ञानिकों के योगदान से होती है। आइजक न्यूटन ने कहा था – “यदि मैं क्षितिज में कुछ दूर तक देख पाया हूँ तो मेरे पहले के वैज्ञानिकों के कन्धों पर चढकर ही।”

८. क्या दावे के साथ विज्ञापन, विपणन (मार्केटिंग) जुडा हुआ है?
वैज्ञानिक खोज के साथ कभी विज्ञापन या मार्केटिंग नहीं की जाती कि हमारी दवा या यंत्र को खरीदने से फलां फलां लाभ होंगे। वैज्ञानिक व्यापारी नहीं होते । केवल पेटेन्ट अधिकार छोडकर उन्हें अन्य आर्थिक लाभ नहीं प्राप्त होते।

९. क्या उक्त दावा ओक्कमकी कसौटी पर खरा उतरता है?
वैज्ञानिक खोजों की व्याख्या करने के लिये किसी जटिल रहस्यमई सुपरनेचरल शक्ति के बजाय पहले से ज्ञात आसान सिद्धान्त पर्याप्त होते हैं । ओक्कम की कसौटी के अनुसार सरल व सहज उत्तर बेहतर है।

१०. क्या उक्त दावा सांख्यिकीय गणनाओं पर आधारित है?
विज्ञान में गणित व सांख्यिकी में वर्णित अनेक कसौटियों पर खरा उतरना जरूरी है। संभावनाओं, गलतियों और संयोगों का अपना एक गणित होता है।
बडी संख्याओं के नियम के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के साथ, महीने में एक बार कोई ऐसी घटना घट सकती है, जिसके होने की सम्भावना दस लाख में से एक हो।

११. क्या उक्त दावा एक ऐसे व्यक्ति या संस्था द्वारा किया जा रहा है जो पहले से घोषित रूप से, उक्त विचारधारा या उद्देश्य के प्रति समर्पित है?
विज्ञान हमेशा नल-हायपोथिसिस (नेति-नेति) से शूरू होता है और फिर सबूत ढूंढता है । मिथ्या विज्ञान पहले से घोषित पोषित सिद्धान्त के समर्थन में सबूत देने का दावा करता है। वे भला विपरीत सबूतों को उल्लेख क्यों करेंगे।

१२. क्या दावा करने वाले अपने प्रयोग का पुनः परीक्षण दूसरे निष्पक्ष वैज्ञानिकों से करवाने को तैयार हैं ?
कोई भी अच्छा शोधकार्य अपनी कार्य विधि या प्रयोगविधि का खूब विस्तार से वर्णन करता है कि दूसरे लोग उसे दुहरा सकें। यदि प्रयोग के अवलोकन आपकी थ्योरी या सिद्धान्त का समर्थन नहीं करते हैं तो भी उन्हें छिपाया नहीं जावेगा।

१३. दावे का समर्थन करने वाले अवलोकनों और तथ्यों की गुणवत्ता कैसी है?
क्या सभी अवलोकनों/डाटा को शामिल किया गया है? क्या तरह-तरह के पूर्वाग्रह से बचने की सावधानियाँ रखी गई हैं ? सेम्पल साइज (नमूने का आकार) कहीं बहुत छोटा तो नहीं है ? महज संयोग को कार्य-कारण सम्बन्ध का प्रमाण नहीं माना जा सकता है।

१४. दावा करने वालों की उक्त वैज्ञानिक विषय में क्या हैसियत है ?
अनेक व्यक्ति और संस्थाएं झूठ मूठ की साख पर दिखावा करते हैं। अनेक तथा कथित विश्वविद्यालय पैसे लेकर फर्जी डाक्टरेट या पी.एच.डी. की डिग्री बांटते हैं। सफेद कोट एप्रन पहन कर फोटो खिंचवाते हैं। किसी नामी गिरामी हस्ती के हाथों इनाम या प्रशंसापत्र पाते हैं
असली वैज्ञानिकों या संस्थाओं को इस प्रकार के नाटक की जरूरत नहीं पडती।

१५. क्या दावा करने वाले यह कहते हैं कि अब तक जो चल रहा है, वह सब गलत है ? या कि यह कि चूंकि फलां विचार धारा सही है। उसके समर्थन में हमें उनके दावे स्वीकार कर लेना चाहिय?
वैज्ञानिक खोजों किसी तथाकथित गलती को सुधारने की मुहिम का हिस्सा नहीं होती। वे इस बात की भूमिका नहीं बांधते कि आजकल जो भोजन हम खा रहे हैं वह कितना जहरीला है। हम अपने धरती ग्रह को नष्ट करने पर तुले हुए हैं। बड़ी कम्पनियों का षडयंत्र है कि सौर ऊर्जा पर शोध न होने पायें आदि आदि।
वैज्ञानिकों को किसी विचारधारा या आईडियोलाजी या फिलोसॉफी से मतलब नहीं होता। उनका लक्ष्य केवल सत्य है। रंगभेद या नस्लभेद या स्त्री पुरूष भेद पर आपके राजनैतिक, सामाजिक, विचारों में वैज्ञानिक खोज की विश्वसनीयता का सम्बन्ध नहीं होना चाहिये।

१६. क्या वह दावा – सब कुछ प्राकृतिक(All Natural) – पर आधारित है ?
यह जरूरी नहीं कि तथाकथित प्राकृतिक उत्पाद सदैव अच्छे हों और मानव निर्मित कृत्रिम उत्पाद खराब हों।

Author profile
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डॉ अपूर्व पौराणिक

Qualifications : M.D., DM (Neurology)

 

Speciality : Senior Neurologist Aphasiology

 

Position :  Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore

Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore

 

Some Achievements :

  • Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
  • International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
  • Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
  • Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
  • Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
  • Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
  • Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
  • Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
  • Charak Award: Indian Medical Association

 

Main Passions and Missions

  • Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
  • Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
  • Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
  • Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
  • Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
  • Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
  • Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
  • Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
  • Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
  • Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).