Pahalgam Attack: फेसबुक पर पसरा दर्द और दर्द और बहता रहा सारा दिन आक्रोश का दरिया —

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Pahalgam Attack: फेसबुक पर पसरा दर्द और दर्द और बहता रहा सारा दिन आक्रोश का दरिया —

  1 .पर्यटन रीढ़ है कश्मीर की रीढ़ फिर-फिर तोड़ दी-—मनीषा कुलश्रेष्ठ

हत्यारी क्रूरता एक विकट नंगा सच है। इसका क्या जस्टिफिकेशन हो सकता है? इसकी किसी भी तरह की पक्षधरता निश्चित रूप से शर्मनाक है। सब कुछ tell – tale है… इसका क्या नरेटिव हो सकता है? नंगा सच है जिसका कुछ अगर मगर नहीं है!!!
ज़रा सोचिए टूरिस्ट सीज़न शुरु ही हुआ था कि पच्चीस लाख बुकिंग्स कैंसल हुईं हैं। पर्यटन रीढ़ है कश्मीर की। बस इतना काफी है पाकिस्तान के लिए….कश्मीर में रह रहे इस्लामिक सेपरेटिस्टों, कट्टरपंथी नेताओं – मोहरों के लिए, आतंकियों के लिए कि कश्मीर की रीढ़ फिर-फिर तोड़ दी जाए….फिर आम गरीब कश्मीरियों को अपने पैरों में गिरा लिया जाए कि युवा फिर पत्थर उठा ले। कुर्तों की जेबों में बम रख टूरिस्ट बसों को उड़ा दे।
इस समय समूची स्थिति का विश्लेषण ज़रूरी है…..

2 .वह घोड़ा हांकता था-आतंकियों से भिड़ गया सैयद हुसैन शाह और मारा गया-Krishna Kant

वह घोड़ा हांकता था. सैलानियों को घोड़े पर सैर करवाकर रोटी कमाता था. गरीब परिवार का था. घर का इकलौता कमाने वाला. जब हमला हुआ, तब वह वहीं था. दैनिक जागरण के मुताबिक, हमला होते ही चिल्लाया, ‘ऐसा न करें. ये मासूम हैं. कश्मीर के मेहमान हैं.’
आतंकवादी जब नहीं रुके तो वह दौड़कर एक आतंकी से भिड़ गया और उसकी राइफल छीनने लगा. इसी बीच आतंकी ने फायर कर दिया और उसका शरीर छलनी हो गया. उसके साथी बिलाल ने बताया कि “वह चाहता तो अपनी जान बचा सकता था लेकिन वह आ​तंकियों से भिड़ गया. उसकी बहादुरी से कई लोगों की जान बची. वह आतंकियों से न भिड़ता तो वहां पर जितने लोग थे, सभी मारे जाते.”
1 व्यक्ति, दाढ़ी और मुस्कुराते हुए की फ़ोटो हो सकती है
आतंकियों ने धर्म पूछे, कपड़े उतरवा कर पहचान चेक की, क्या कोई संदेश देने के लिए? क्या हिंदुस्तानियों को धर्म के आधार पर लड़ाने के लिए? इसी एक बात को क्यों तूल दिया जा रहा है? धार्मिक एंगल, देश पर हमले से भी बड़ा कैसे बन गया है?
सैयद हुसैन शाह ने हमवतन हिंदू सैलानियों को बचाने के लिए जान दे दी. आप धर्म के नाम पर आपस में लड़ने की जगह, एक होकर हिंदुस्तान के लिए नहीं लड़ सकते?[मधु कांकरिया की वाल से]

3 .अँधेरा बहुत घना, डरावना, किसी दुःस्वप्न जैसा-उदय प्रकाश

जब चीखें, आँसू और खामोशियाँ इतनी सुनाई देने लगें, भाषा से भूगोल तक, तो साफ़ संकेत है कि अँधेरा बहुत घना, डरावना, किसी दुःस्वप्न जैसा बहुत क़रीब घिर आया है।
सनद रहे, फ़ौजें हर सरहद पर नहीं लड़ सकतीं।
बंदूकें और हथियार घर के भीतर न चलने लगें, यह समझ, संवेदना और अवबोध पैदा करने की आपात घड़ी आ चुकी है।
देश को बचाने के लिए सभी विभाजनकारी टीआरएफ को निष्क्रिय और डिफ्यूज़ करने का पल आ चुका है।
यह मंजर देखने की ताब अब नहीं बची।
ख़ून, सिसकियाँ, विक्षिप्तता, बदहवासी, असहायता …
किसके लिए यह शासन हुए चला जा रहा है?
एक होश खो चुकी सत्ताओं के होश में आने का पल है, पहलगाम का यह दहशतनाक दृश्य।
जाति, धर्म और क्षेत्रीयता अब सब वध्य और वेध्य हैं।
इन हिंसाओं की नींव को, इस जहरीले खरपतवार की जड़ों को खत्म कोई करेगा क्या ?
कैसे ?
हम सबके चेहरे उतरे हुए हैं।
हम अपनी संतानों को पुकार रहे हैं। उन्हें आवाज़ दे रहे हैं ।
सब सलामत तो हैं, न ?
हम तो पहले भी असुरक्षित थे।
अब?
अब हर कोई, हर जगह, हर पल असुरक्षित है।

4 .हजारों लोग बचे – सिर्फ लोकल लोगों की मदद से- स्वाति तिवारी

अमरेंद्र कुमार सिंह पहलगाम हमले के दौरान वहीं मौजूद थे। वो लिखते हैं —
कल पहलगाम में जो हुआ, वो सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था, बल्कि इंसानियत पर हमला था।हम घटना स्थल से महज 300–400 मीटर की दूरी पर थे।मैं और मोना घोड़े पर सवार थे, तभी अचानक गोलियों की आवाज और चीखते लोगों को देखकर समझ आ गया कि कुछ बहुत गलत हो रहा है।हमारा घोड़े वाला हमें लेकर वहां से दौड़ पड़ा – जान बची।हमारा टूर कल से ही शुरू हुआ था, और पहले दिन ही ये हमला हो गया।अब बाकी का कार्यक्रम रद्द कर के, आज ही वापस लौट रहे हैं।
दर्द है उन निर्दोष लोगों के लिए जो मारे गए।कम से कम 3 घोड़े वाले भी मारे गए – जो सिर्फ रोज़ी-रोटी कमाने निकले थे।गुस्सा है सिस्टम से – जब रेकी की जानकारी थी, तो सुरक्षा क्यों नहीं थी?घटनास्थल पर एक भी सिक्योरिटी फोर्स तैनात नहीं थी।अब राजनीति शुरू हो चुकी है –कोई धर्म पूछ रहा है, कोई जात।इन सबसे सावधान रहिए।
4 लोग और लोग मुस्कुरा रहे हैं की फ़ोटो हो सकती है
हजारों लोग बचे – सिर्फ लोकल लोगों की मदद से।घोड़े वाला, होटल वाला, ड्राइवर – सबने दिल से साथ दिया।
कई लोगों ने पैसे तक नहीं लिए।इंसानियत ज़िंदा थी।और वहीं कुछ गिद्ध लोग मौके का फायदा उठाते रहे –श्रीनगर से दिल्ली की दो टिकटों के 38000 रुपए लगे।
—आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई हर हाल में जारी रहनी चाहिए।हमें एकजुट रहना होगा।जो चले गए, ईश्वर उन्हें शांति दे।
विनम्र श्रद्धांजलि।सावधान रहिएगा – राजनीति चालू आहे।

5 .हम युद्ध के बीच में हैं। हम सभ्यताओं के संघर्ष में हैं।–डॉ मधुसूदन पाराशर

मैं अभी कश्मीर में ही हूं। कल सुबह पहलगाम में ही था। पिछले कुछ समय से एक राजकीय अध्ययन यात्रा पर आया हूं। मैं स्वयं और मेरी पूरी टीम पूर्णतः सुरक्षित हैं, सुरक्षा बलों की लगातार निगरानी में हैं। परन्तु यह सच है कि यहां सब ठीक नहीं है। और यहीं क्यों? पूरे भारत में सब कुछ ठीक नहीं है।
हम युद्ध के बीच में हैं। हम सभ्यताओं के संघर्ष में हैं। भारत इस युद्ध का मैदान रहा है हजारों वर्षों से। हम अपनी जमीनें लगातार खो रहे हैं। जन सबसे बड़ा धन है, हमारा जनधन भी हमसे छीना जा रहा है। कहीं वह जान लेकर कहीं धर्म लेकर हमसे हमारे जन को छीन ले रहे हैं।
अफगानिस्तान पाकिस्तान बांग्लादेश के सफल प्रयोगों के बाद कश्मीर इनकी नयी प्रयोगशाला है। यह प्रयोगशाला कामयाब होती दिखाई देती है। हम जल जन जंगल जमीन लगातार खोते आए हैं यहां।
लगभग एक सप्ताह की इस यात्रा के कुछ बिंदुओं को आपसे साझा करें , संभवतः कश्मीर की जटिलता को समझने में मदद मिले-
1 व्यक्ति की फ़ोटो हो सकती है
१) कश्मीरी मुसलमानों को किसी पर्यटक फर्यटन की कोई आवश्यकता नहीं। इनकी ट्रैवल एजेंसी इनका शिकारा, केसर, कहवा, शिलाजीत, मटन रोगन जोश़ सब छलावा है। इनके लिए समय काटने और मनोरंजन का साधन। औसत कश्मीरियों के घरों में इतना पैसा है कि केवल अपनी कालीनें बाहर फेंक दें तो उतने में लखनऊ भोपाल जयपुर में थ्री बीएचके फ्लैट आ जाए। बताने की आवश्यकता नहीं कि यहां एंटी-स्टेट एक्टिविज़्म एक फुल टाइम जॉब है, और दुनिया भर से इसके लिए मोटा फंडिंग आता है।
२) औसत कश्मीरी उसी ज़ुबान में बात करता है जिस भाषा में पाकिस्तान सेना के बड़े अधिकारी और कश्मीर के अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के लोग बोलते हैं। मसलन, वह कहेगा कि जनाब़ दिल्ली ने ये गलत फैसला किया, दिल्ली ने वो किया ये किया। वह कहेगा कि देखिए ये जमीन इंडियन आर्मी के कब्जे में है, ये बिल्डिंग इंडियन आर्मी के कब्जे में है आदि आदि।
३) एक दो मंदिरों को छोड़ दिया जाए तो घाटी के अधिकांश मंदिर चाहें वह मार्तण्ड मंदिर हो या नारानाग हो, सुगंधेश हो, शंकरगौरीश्वर मंदिर हो, ममलेश्वर हो या इन जैसे अनेकों मंदिर सब भग्नावस्था में है। लोकल गाइड इन सब मंदिरों के टूटने का एक ही कारण बताएंगे कि जनाब़ बहुत बड़ा भूकम्प आया था। अधिकांश मंदिरों के भीतर एएसआई के संरक्षण में होते हुए भी मजारें बन गयी हैं।
४) हमारे जवान दुनिया का सबसे कठिन मोर्चा लड़ रहे हैं। राजनय और ग्लोबल सेंटिमेंट अगर हमारे पक्ष में हो, तो हमारी सेना यह युद्ध मात्र चार से पांच वर्ष में जीत सकती है।
५) राष्ट्रपति शासन बहुत ठीक विकल्प था। पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस, और न जाने कितने फ्रंट यह सब प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से आतंकियों और पाकिस्तान के मददगार हैं। अभी जिस आतंकी संगठन ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली उसका नाम है टीआरएफ, द रेजिस्टेंस फ्रंट। टीआरएफ में लश्कर-ए-तैयबा जैश ए मोहम्मद के लोग तो हैं ही यहां के राजनीतिक दलों के लोग भी शामिल है। इंटेलिजेंस को पता था कि कुछ तो होने वाला है, इन राजनीतिक लोगों को भी पता था। वैसे यह इंटेलिजेंस फेलियर नहीं है, कभी विस्तार से लिखेंगे।
६) आप पूरी घाटी घूमिए, आपको कृत्रिम चेहरे ही दिखाई देंगे। ऐसा लगेगा जैसे कि आपसे कुछ छुपाया जा रहा है। अधिकांश हिन्दू स्थानों के नाम बदल दिए गये हैं। पहाड़ों और नदियों के भी। कश्मीर का वास्तविक इतिहास यहां किताबों में नहीं पढ़ाया जाता। जाकिर नाइक, मोहम्मद इशरार और हसनैन के तकरीरों के वीडियो यहां युवाओं के फोन में चलते ही रहते हैं। औसत मुसलमान युवक युवतियों की यहां बस इतनी समझ है कि औसत हिन्दू केवल बुतपरस्त है और ये जाहिल कौम है, कत्ल किए जाने योग्य ही है।
निष्कर्ष: कश्मीर विवाद एक कृत्रिम विवाद है। इस विवाद का ईंधन इस्लामिक अतिवाद है। कुल जमा आठ दस परिवारों को इस विवाद से तगड़ा लाभ है। इस समस्या का समाधान है। सेना और हमारी व्यापक हिन्दुस्तानी जनता इसका समाधान निकाल ही लेंगे।
डॉ मधुसूदन पाराशर
नारानाग, कश्मीर
वरूथिनी एकादशी
वि. सं २०८२

6 .बहुत देर तक कोई सरकारी सहायता नहीं पहुंच पाई थी , कोई वाहन नहीं थे, तब स्थानीय लोग घरों से बाहर निकले-आशुतोष कुमार 

आतंकियों ने धर्म पूछा, अगर आप इतना ही याद रखेंगे और यह भूल जाएंगे कि हमले के दौरान और उसके ठीक बाद घायलों को अपने कंधों पर या पोनियों पर हस्पताल पहुंचाने वालों ने न धर्म पूछा न जाति पूछी तो आप आतंकवादियों की ही मदद कर रहे हैं।
हस्पतालों में डाक्टरों और नर्सों ने बहुत कम सुविधाओं के बावजूद अपनी, भूख , प्यास और नींद सब भूल कर घायलों का इलाज किया , जिससे मृतक संख्या को काफी नियंत्रित किया जा सका। अगर आप इसे भूल जाएंगे तो आतंकवादियों की ही मदद कर रहे होंगे।
बहुत देर तक कोई सरकारी सहायता नहीं पहुंच पाई थी , कोई वाहन नहीं थे, तब स्थानीय लोग घरों से बाहर निकले और अपनी जान की बाजी लगाकर उन लोगों को रेस्क्यू किया जो हमले की ज़द में थे। अगर आप यह भी भूल जाएंगे तो आप आतंकवादियों की ही मदद कर रहे हैं।
सारा का सारा जम्मू कश्मीर इस जघन्य हत्याकांड के विरोध में उठ खड़ा हुआ है। समूचे कश्मीर में कल रात भर लोगों ने मशाल जुलूस निकाले हैं, आतंकियों की कड़ी से कड़ी निंदा की है, बिना किसी भय और हिचक के उन्हें संदेश दिया कि कश्मीर का बच्चा बच्चा उनके खिलाफ़ तन कर खड़ा है। अगर आप यह भूल जाएंगे और रात भर हिंदू मुस्लिम नफरती पोस्टर बनाने वालों को याद रखेंगे तो आप आतंकवादियों की ही मदद कर रहे हैं।

आज सारा का सारा कश्मीर बंद है। आतंकवाद के विरोध में नागरिकों की पहल पर किया जा रहा यह बंद ऐतिहासिक है। कश्मीर की जनता आतंकियों को साफ संदेश दे रही है कि तुम हमारे दुश्मन हो, तुम्हारी दाल अब गलेगी नहीं, तुम्हारी जड़ें अब पनपने नहीं दी जाएंगी, चाहे इसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े। अगर आप इस ऐतिहासिक क्षण को भूल जाएंगे तो आप आतंकवादियों की ही मदद कर रहे होंगे।

साभार
आशुतोष कुमार जी के वॉल से

7 .कैसे हैं वे -12 सदस्यों का ग्रुप है, बुआ मामा के परिवार हैं और श्रीनगर घूमने जा रहे-संगीता सेठी 

हमेशा की तरह अपने सहयात्रियों से बात करने की कोशिश थी। हम बीकानेर से चले वो जोधपुर से आ रहे थे। उनकी बोली से लग रहा था कि वो छत्तीसगढ़ के हैं । तीन लड़के तीन लड़कियां हमारी सीट पर खाना खा रहे थे। तीन महिलाएं और तीन पुरुष साथ वाले केबिन में थे। बेहद उत्साहित थे सब। कहीं बुआ फूफा मामा मामी के उच्चारण थे मुँह पर। बच्चे एक दूसरे को धौल जमाते हुए पूछ रहे थे तेरा जन्मदिन…तेरा जन्मदिन.. एक ने कहा 12 सितम्बर और मैं उन बच्चों के बीच बोल पड़ी मेरा भी 12 सितम्बर । वो 2003 का बच्चा था ।फिर बातें शुरू हुई तो खत्म ही नहीं हुई।
मालूम हुआ वो 12 सदस्यों का ग्रुप है, बुआ मामा के परिवार हैं और श्रीनगर घूमने जा रहे हैं ।श्रीनगर कहते हुए उनके चेहरे चमक रहे थे । रायपुर से आए थे, दो दिन जोधपुर घूमा है, अब जम्मू और श्रीनगर जाएंगे। हमने भी उनको अपने किस्से बता कर श्रीनगर की तारीफें की। वो मेरी निटिंग को बार बार छूकर देखते और आंटी-आंटी कह कर खुश हो रहे थे। सभी बच्चे अभी नई नई जॉब में थे। तभी फोन उठाते ही सर सर करते । दो बच्चे सी. ए. थे। हम ये जानकर उनकी तारीफ कर रहे थे कि वो बुआ मामा के बच्चे हैं और इस तरह पर्यटन पर मिलकर जा रहे हैं वरना आज के युग में सब अकेले रहना चाहते हैं। राजेन्द्र और मैं उनसे बात करते हुए खो गए थे कि हमारा स्टेशन जालंधर आ गया था। उनमें से दो लड़के हमारे पीछे आए और हमारा सामान उतारने में मदद की । और हमारे पैर छुए। हम उनके यूँ पैर छूने से आश्चर्य में थे । हमने उन्हें कहा तुम्हारा ट्रिप बहुत अच्छा रहने वाला है।
जब से पहलगाम की घटना हुई है मेरा मन व्यथित है । मुझे उस परिवार की चिंता है। हमने उनका नंबर नहीं लिया। बस उस ग्रुप 24-25 की युवती सिया नाम याद है। और एक 40-45 साल की मंजू जैन नाम याद है। वो रायपुर और राजानन्द गाँव के हैं।
कोई उनके बारे में जाने तो कृपया मुझे खबर करे। कोई रायपुर या राजानन्दगाँव से इस पोस्ट को पढ़े तो उनके बारे में बताए।
ईश्वर से उनकी सलामती की प्रार्थना कर रही हूँ।
 8 .सत्ता तय करे कि उसे क्या, कब और कैसे करना है।–अरुण सिंह 
समझ में नहीं आता है कि धर्म, राजनीति, सेकुलर, अंधभक्त, सच्चे भक्त, वामपंथियों-दक्षिणपंथियों, मुसलमानों-हिंदुओं, संघियों-लीगियों, समाजवादियों-साम्यवादियों पुजारियों-नमाज़ियों,इज़रायल समर्थक-फिलिस्तीन समर्थक, मोदी-भक्त, मोदी-विरोधी, सत्ता-समर्थक, सत्ता-विरोधी, योजकों-विभाजकों आदि-आदि लोग कैसे एक हृदयविदारक घटना के बाद एक दूसरे पर घृणा थूकते-थूकते, ये दुखी लोग अगली ही पोस्ट में अपनी एक मुस्कान भरी तस्वीर, अपनी कविताएँ, लोकार्पण-विमोचन, जन्मोत्सव, वैवाहिक वर्षगांठ पर आशीर्वाद माँगते आदि की पोस्ट व तस्वीरें लगाते हैं।बेशर्मी से रील लगा रहे हैं।ये धूर्त ग़ज़ब है भई! विकृति लगती है यह तो।
केवल एक दिन की पोस्ट देख लीजिए।कितने चेहरे सामने आ जाएँगे।दरअसल, यही समाज संदिग्ध है।दोगले नकली लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है।यह एक क़िस्म की निर्लज्जता, मूल्यहीनता और निर्ममता नहीं है? तथाकथित संवेदनशील और बौद्धिक-आतंकियों से देश को कम ख़तरा है ? ऐसे समाजों में पुलवामा, संभल, मुर्शिदाबाद, पूर्वोत्तर की घटनाएँ और अबोध बच्चियों के साथ कुकृत्य जैसी घटनाएँ धीरे-धीरे स्थायी भाव में बदल जाती हैं।और बदल ही गईं हैं।
पहलगाम नरसंहार घटना की समीक्षा कर रहे लोग इतना तक तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे किसके पक्ष में हैं या किसके विरुद्ध-अपनी विचारधारा, प्रति-विचारों के या मनुष्यता के? कि उन्हें विरोध किसका करना चाहिए ?
चलिए मान लेते हैं कि आतंकियों ने धर्म पूछकर मारा या नहीं, कलमा पढ़ाया कि नहीं पढ़ाया (जबकि पूछा था), यह मुद्दा नहीं है, आतंकियों की इस क्रिया के पीछे कुछ न कुछ मंशा जरूर रही होगी।मुद्दा यह है कि आतंकियों ने देश के नागरिकों की हत्या की है।नरसंहार किया।उन्हें इसकी सजा हर हाल में मिलनी ही चाहिए।इसकी कोई भी क़ीमत चुकानी पड़े।यदि सरकार यह नहीं करती है तो उस पर यह दबाव सबको मिलकर करना चाहिए।बस, इतनी-सी बात समझने की ज़रूरत है।यह देश की सुरक्षा और भविष्य का मामला है।
क्षमा के साथ कहूँगा कि यह सच है कि कुछ कश्मीरियों को पूरी भारतीयता में बदलना कठिन काम है।और यही “कुछ” आतंकियों के पनाहगाह हैं।जो इसे नहीं जानते या मानते उन्हें क्या कहें !
पंद्रह साल पहले (अप्रैल, 2015) श्रीनगर में “क्लाइमेट चेंज“ एक पर मीडिया वर्कशॉप के सिलसिले में गया था।श्रीनगर देखने में तो अनुपम है ही, लेकिन दहशत तारी रहता है वहाँ।जिस समय हम पहुँचे थे, उसी समय श्रीनगर एअर पोर्ट से डल झील के रास्ते में सेना ने तीन आतंकियों को मार गिराया गया था।
फ़िलहाल, वहाँ वर्कशॉप में आये एक विशेषज्ञ की निजी बात सुनकर सन्न रह गया-“कश्मीर को भारत कलेजा काट कर दे दे लेकिन वे मन से भारत के नहीं होंगे।” और यह विशेषज्ञ स्वयं कश्मीरी थे।देश के प्रति उनकी आस्था असंदिग्ध थी।सोचिए, कुछ कश्मीरियों के मन में यह बात बैठाने में विरोधियों को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी।और ब्रेनवॉश करने वाले कब से लगे हैं।यह बेहद चिंताजनक बात है।पिछले दस सालों में वहाँ का मानस कितना बदला होगा, कह नहीं सकता।
जहाँ तक मैं समझता हूँ कि ज्यादातर कश्मीरी लोग दो ही प्रमुख वजहों से वहाँ से निकलते हैं- धन्धा करने या वहाँ के युवा पढ़ने।अगर तीसरी बड़ी वजह है तो वहाँ के पंडितों का पलायन।चौथी वजह मुझे खोजना होगा अभी।
एक सच यह भी है कि कश्मीरियों के लिए शेष भारत कस्टमर है।वे वहाँ भी आप से कमाते हैं और वहाँ से बाहर निकलते हैं तो भी कमाई करने के लिए ही निकलते हैं -दुशाले और मेवे लेकर।वे आनंद के लिए नहीं आते।शेष दुनिया वहाँ “स्वर्गीय आनंद” के लिए जाती है।यह बुरी बात नहीं है। धारा 356 हटने के बाद से वहाँ कितना बदला, कह नहीं सकता।लेकिन ताज़ी घटना से यह तो लग ही रहा है कि वहाँ अभी बहुत कुछ दुरुस्त करने की ज़रूरत है।
लेकिन यह है कि जब तक कश्मीरी अवाम पूरी इच्छाशक्ति के साथ कश्मीर-आतंकमुक्त-संघर्ष में देश का साथ नहीं देता है, तब तक वहाँ से आतंकी घटनाएँ रोक पाना ज़रा मुश्किल है।यह सत्ता तय करे कि उसे क्या, कब और कैसे करना है।
जो लोग ज्ञान दे रहे हैं कि यह करना चाहिए, वह करना चाहिए, उन्हें समझना होगा कि कश्मीर जितना खूबसूरत है, उतना ही दुर्गम भी है।वहाँ चौकसी आसान नहीं है।कुछ लोग कहते हैं कि राजस्थान की सीमा से पाकिस्तानी सीमा लम्बाई में अधिक जुड़ी है लेकिन वहाँ तो आतंकी नहीं आते। देखिए कि घटना स्थल पाकिस्तानी सीमा से नहीं, लद्दाख सरहद के क़रीब है।ऐसे में क्या कहेंगे ?
घर में चूहा और मच्छर रोकना भी बहुत कठिन होता है।आमने-सामने बहादुरों से लड़ा जा सकता है, कायर चूहों नहीं।हाँ, उनके उन्मूलन का सटीक तरीक़ा सरकार को निकालना ही होगा। वह निश्चित ही निकाल सकती है।यदि यह पिद्दी पड़ोसी देश से प्रायोजित है तो निर्णायक रूप से दबाइए उसे।भीतर बाद में देखा जाएगा।
बाकी ज़िंदा मिले आतंकियों के साथ क्या करना है, यह ठीक से तय किया जाना चाहिए।जिन्होंने मारा है, उन्हें ही नहीं, जो आतंक के आका हैं, उन्हें भी ठीक से रेलने की योजना बनाना सरकार का दायित्व है।
सरकार जी ! सड़क-वड़क, बिजली-पानी, जहाज-वहाज,रेल-सेल कुछ समय के लिए सब छोड़िए।रोक दीजिए।पहले निपटाइए इन्हें।रैटॉल लगाइए, पिंजड़ा लगाइए, फाँस लगाइए, चूहामार दवा रखिए, कुछ भी करिए, परन्तु इन्हें नेस्तनाबूद करिए।सड़े सेबों को दफ़्न करिए।वादियों में फिर से दुर्गंध आने लगी है।वहाँ हवा साफ़ करिए।पहले शांति और स्थिरता चाहिए, विकास उसके बाद।
और बुद्धिमान जी ! आप भी फ़ोटू-फाटू चेंपते रहिए, कुछ तो करते रहिए !!
9 .मैंने कलमा पढ़ा—संस्मरण याद आ गया –शंभूनाथ शुक्ल 
वैसे मुझे कलमा याद है। और इसकी वजह हैं डॉ. सुनीति कुमार चाटुर्ज्या। डॉ. चाटुर्ज्या ने अपने एक संस्मरण में लिखा है कि मिस्र पहुँच कर उन्हें पिरामिड देखने के लिए एक परमिट लेना था। परमिट इशू करने वाला बाबू टिपिकल क्लर्क था। उसकी दाढ़ी और वेश से मैं समझ गया, यह बेहद धर्मभीरु है। उसने पूछा, आर यू मुस्लिम! मैंने कलमा पढ़ा,
“ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मदुर रसूल अल्लाह
अल्लाह हो अकबर”
यह संस्मरण मैंने आज से ६० वर्ष पहले पढ़ा था। फिर याद कर लिया कि यदि कभी मिस्र जाना हुआ तो काम आयेगा।
पर अभी तक मिस्र जाना हुआ नहीं और गत दिसम्बर में पासपोर्ट भी एक्सपायर हो गया। पासपोर्ट के दफ्तर में तारीख मई लास्ट की मिल रही है।
सभी की फेसबुक वाल से साभार