जिन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की बात:मुसलाधार बारिश ,घनघोर अँधेरा और पावागढ़ की सीढियां उतरना ,भयावह अनुभव

265
संस्मरण 4 -“बारिश की वह रात”

जिन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की बात:मुसलाधार बारिश घनघोर अँधेरा और पावागढ़ की सीढियां उतरना ,भयावह अनुभव

संजीता जैन

मुझे भी अपना एक बारिश का संस्मरण याद आ गया है करीब 4 साल पहले की बात है हम चारसखियां,सरोज,रानी,निर्मला और मैं टेक्सी करके पावागढ़ और स्टेचयू ऑफ यूनिटी घूमने गए थे। हमारा पहला स्टॉप पावागढ़ था।
हम लोग करीब 2 बजे दोपहर में पहुंचे। हमने अपना सामान धर्मशाला में रखा और तैयार होकर दर्शन करने निकल पड़े। हमने सोचा था कि झूले से जाते हैं, दर्शन करके शाम को झूले से नीचे आ जाएंगे। 3 बजे थे, सोचा था शाम 6 बजे तक उतर आएंगे,आकर अन्थऊ ( शाम का भोजन) कर लेंगे, क्योंकि सभी रात्रि भोजन त्यागी हैं। जब हम लोग निकले तो बहुत तेज धूप थी। जून का महीना था, पर बारिश के आसार नहीं थे। इसलिए छाता वगैरा भी नहीं रखा हमने। पूरे रास्ते बहुत गर्मी रही। झूले से जाते हुए हमने बहुत मजे किए ।उस दिन बहुत भीड़ थी, शायद कोई त्यौहार वाला दिन था। दर्शन करने और एक दूसरे का इंतजार करने में तीन घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला। जब सब लोग इकट्ठे हुए, हम गए झूले के वेटिंग एरिया में…. देखा इतनी लंबी लाइन लगी हुई थी। उसमें कुछ छोटे बच्चे,वृद्ध- जन,विकलांग व्यक्ति और फैमिली वाले सब थे। खूब भीड़ थी। हम बैरिकेड्स के बीच चलते हुए झूले तक पहुंचने ही वाले थे, कि अचानक तेज हवाएं चलने लगीं, लाईट चली गई, तेज बारिश शुरू हो गई। शाम के पौने सात का टाइम था । अंधेरा घिर आया था, रात होने लगी और इतना अटूटorig 27 1657496838

पावागढ़ पहाड़ी गुजरात, यह स्थान काली माता मंदिर के कारण बहुत प्रसिद्ध है। बरसात के मौसम में यहाँ का नज़ारा अद्भुत होता है। यह स्थान न केवल ...

बाहर जाकर देखा, चारों तरफ पानी भर गया था ।वहां पास में एक दुकान थी ,वहां से एक व्यक्ति प्लास्टिक कवर औढ़ने को बेच रहा था, कह रहा था “आप प्लास्टिक कवर औढ़कर सीढ़ियों से उतरो, अब झूला नहीं चलेगा”। 7:30 बज गए। अब हमारी हालत खराब.. मरता क्या ना करता.. उतरना तो पड़ेगा ही…मोबाइल टार्च की रोशनी में एक दूसरे का हाथ पकड़ भगवान का नाम लेकर उतरना शुरू किया ..रास्ते में गंदगी पड़ी हुई थी और बारिश से फिसलन हो रही थी।जैसे तैसे हम लोग धीरे-धीरे उतर रहे थे। रास्ता खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था । थकान से चूर , गिरते – बचते चले जा रहे थे। रात्रि का इतना भयानक रूप आज तक नहीं देखा था। हमसे पीछे आने वाले लोग भी आगे निकलते चले जा रहे थे.. हमारे साथ जो दीदी थी वह नहीं चल पा रही थी,उनके साथ चलने के कारण हम लोग बहुत धीरे-धीरे चल रहे थे। हम लोग इतना डर रहे थे कि हम कैसे उतरेंगे और सीढ़ियां खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं।10:00 बजे के करीब हम लोग नीचे उतर पाये। रैलिंग पकड़- पकड़ के चलने से हमारे हाथ में  दर्द करने लगे। जो दीदी चल नहीं पाती थी उनके घुटने अकड़ गए ।जैसे तैसे करके हम जब पार्किंग में पहुंचे ,अपनी गाड़ी के पास… तो पार्किंग पानी से भरी हुई थी। वहां ट्रैफिक जाम था, क्योंकि सभी लोग उतर के आ रहे थे।हैरान परेशान ,भूख के मारे बेहाल, जैसे तैसे करके कार तक पहुंचे । ड्राइवर परेशान हमारी राह देख रहा था ।जब हम धर्मशाला तक पहुंचे तब जान में जान आई। वह रात आज तक नहीं भूलती….इतनी सारी ट्रिप हम लोगों ने साथ में की हैं, लेकिन वैसी भयानक रात हमने कभी नहीं देखी..वह बरसात की रात….
सच में जो बरसात हमें घर के अंदर से देखने में बहुत अच्छी लगती है या हम जिस बरसात के मौसम का मजा लेने के लिए बाहर घूमने जाते हैं , जब कहीं फंस जाते हैं… तब पता चलता है कि बरसात की विकरालता क्या होती है? उस बरसात की रात की बात हमने अपने परिवार वालों को आज तक नहीं बताई । नहीं तो फिर वह हमें कहीं जाने ही नहीं देते …..
यह अलग बात है कि उस ट्रिप के बाद से हम लोगों की हिम्मत नहीं हुई,अकेले कहीं जाने की। बस भगवान ने हमें बचा लिया, कहीं कोई फिसलकर गिर जाती , ज्यादा चोट लग जाती तो क्या होता ?
वहां से लौटने के बाद मेरी दो सखियों को बहुत प्रॉब्लम हुई । रैलिंग पकड़कर चलने के कारण सरोज का हाथ का दर्द हार्ट तक पहुंच गया . बहुत दिनों तक बीमार रही ।और दूसरी रानी दीदी ,जिनको पैरों में तकलीफ थी, उनके मसल्स में स्ट्रेन आ गया और उन्हें घुटने के दर्द के कारण 2 महीने तक बेड रेस्ट करना पड़ा।

505234533 1795964784652180 5302409393009854958 n

संजीता जैन,इंदौर

जिन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की बात: भीगी टीशर्ट बदलने से पकड़ी गई हमारी चोरी !