पलाश का फूल :चर्चित कवि श्री रमेश चन्द्र शर्मा की तीन कविता

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चर्चित कवि श्री रमेश चन्द्र शर्मा की तीन कविता

पलाश का फूल !
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पन्नों में चिपका
पुस्तक में दबा
इंतजार कर रहा
पलाश का फूल !
जर्जर हो चुके
यादों के पलाश
सहज रखे आजतक
मन की कपाट में ।
स्मृतियों की परत
खुलती नहीं अब
धुंधले पड़ चुके सब
प्रेम पगे शब्द !
कुछ अनबांचे पत्र
आजतक रखे हैं
आपकी प्रतीक्षा में
कोट की जेब में !
खूंटी पर टंगी
कुछ पुरानी शर्ट
याद दिला रही मुझे
आपकी,तुरपाई की !
रफू किए कमीज
करीने से सजाकर
ड्राइंग रूम में रखे
सिर्फ आपके लिए !
अटूट विश्वास लिए
क्षितिज देखता हूं
लौट आओगे जरूर
सांध्य समय एक दिन !
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हथेली पर!

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हथेली पर कैक्टस उगाए मैंने !
बोनसाई जैसे बाग लगाए मैंने !
बुद्धिजीवी होने के खतरे बहुत
गंजे सिरपर सरसों सजाए मैंने !
शिखरों की आंखें में किरकिरी
दंभी देवदार के शीश झुकाए मैंने !
अंधेरी रातों को चीरते रहे सन्नाटे
सागर किनारे अलख जगाए मैंने !
फलदार पेड़ों ने छोड़ दी ज़मीन
झाड़ियों से आंगन सजाए मैंने !
छायादार बरगदो ने छांव चुराई
बेजान छतों पर पसीने बहाए मैंने!
हवा के विरुद्ध करते रहे शंखनाद
बादलों के सामने सिर उठाए मैं
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 बादाम लगाकर देख !

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बबूल पर आम लगाकर देख !
गमलों में बादाम लगाकर देख !
जीता जागता शहर वीरान होगा
गड़े मुर्दों पर दाम लगाकर देख !
अपना पराया सामने आने लगेगा
रिश्तेदारी के काम लगाकर देख !
अंदर दबी आग ज्वाला बन उठेगी
हरे जख़्मों पर बाम लगाकर देख!
लोग फिर कदमों में झुकने लगेंगे
साथ मंत्री का नाम लगाकर देख !
शहर की सांसें थमने लगेगी अभी
चौराहों पर जाम लगाकर देख !
दस पीढ़ियों का इतिहास खुलेगा
नेताओं पर इल्ज़ाम लगाकर देख!
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16 कृष्णा नगर- इंदौर