भोजशाला में शांति, पठान की सफलता और धार में भाजपा की हार!
वरिष्ठ पत्रकार छोटू शास्त्री का कॉलम
मालवा के महत्वपूर्ण आदिवासी जिले धार में स्थानीय निकायों के चुनावों में 9 जगह वोट पड़े। इसमें कांग्रेस ने 6 सीटें जीती और भाजपा को मिली 3 सीटें। चुनाव में कहीं कोई गड़बड़ी जैसी बात नहीं हुई। यहां तक कि बसंत पंचमी भी शांति से गुजर गई। भोजशाला में कहीं कोई विवाद या कहीं से कोई नारे की गूंज सुनाई नहीं दी। इसी बसंत पंचमी के दिन शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ रिलीज हुई और मेगा सुपरहिट हो गई। फिल्म ने 3 दिन में करोड़ों का बिजनेस कर लिया। धार जिले के नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार और बसंत पंचमी के आसपास शाहरुख खान की पठान फिल्म का जबरदस्त ब्लॉकबस्टर होना यह बताता है कि ’भाजपा और उसके नेता हिंदू भावनाओं को समझने में चूक कर गए।
नगर निकाय चुनाव के नजरिये से धार जिले के तीन रिजल्ट बहुत महत्वपूर्ण हैं। पहले नंबर पर पीथमपुर है, जो शहरी सभ्यता का और विकसित समाज का प्रतीक है। यहां कांग्रेस जीत दर्ज की। दूसरा नंबर राजगढ़ और सरदारपुर का है जो व्यापारी, जैन समाज और राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के प्रभाव का क्षेत्र है, वहां भी कांग्रेस जीती। तीसरा क्षेत्र कुक्षी है, जो पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुना देवी का हार्डकोर आदिवासी क्षेत्र है, यहां भी कांग्रेस जीती। धार जिले में इन तीन अलग-अलग प्रकृति वाले राजनीतिक क्षेत्रों में कांग्रेस की जीत यह बताती है, कि लोग अब भाजपा से ज्यादा कांग्रेस को पसंद करने लगे हैं। सच्चाई यह है कि खुद कांग्रेसी भी नहीं समझ सके कि वे क्यों जीते। पर, हारने वाली भाजपा को यह जरूर पता होना चाहिए कि धार जिले में उसका मजबूत संगठन और मजबूत कार्यकर्ता काडर बेस्ट पार्टी होने का दावा कहां खो गया।
कांग्रेस में कई खामियां हैं, उनके पास अनुशासनबद्ध संगठन नहीं है। उनके पास न तो काडर है और न पैसा है। सबसे बड़ी बात यह कि वह 18 सालों से सत्ता में भी नहीं है! जितने दिन कांग्रेस सत्ता में रही, उसमें भी उसके खाते में कोई उपलब्धि दर्ज नहीं हुई! विंध्य क्षेत्र के कांग्रेस के कद्दावर ब्राह्मण नेता पं श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी ने एक बार कहा था कि काडर या संगठन से ज्यादा जरूरी होता है नेता का कद और नेता का निडर होना। नेता जितना बड़ा होगा, उसके समर्थक भी उतने ही ज्यादा होंगे। यही समर्थक उसके वोटर और काडर बनते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस काडर वाली पार्टी नहीं, बल्कि बड़े कद वाले नेताओं की पार्टी है। यह जिक्र इसलिए किया गया कि धार जिले में कांग्रेस के पास न तो कोई बड़े कद वाला दिग्गज नेता न है, न ही था। फिर भी उसने कमाल कर दिया।
हमारे देश में मनोरंजन में राजनीति है और राजनीति में मनोरंजन। यही कारण है कि यहां कभी राजनीति में मनोरंजन की घुसपैठ हो जाती है, कभी मनोरंजन की आड़ में राजनीति होने लगती है। एन बसंत पंचमी के दिन शाहरुख खान की फिल्म का हिट होना बताता है कि भाजपा समर्थित हिंदूवादी संगठनों का विरोध अब जनता को समझ आ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यसमिति की बैठक के बाद अपने भाषण में प्रदेश के उन कद्दावर नेताओं को स्पष्ट चेतावनी दे दी थी, राजनीतिक फायदों के लिए फिल्मों का विरोध बंद होना चाहिए। उसका असर ये हुआ कि ‘पठान’ के खिलाफ बोलने वालों के मुंह सिल गए। नरेंद्र मोदी को ये बात समझ आ गई कि फिल्मों का इस तरह विरोध सभ्य समाज में भाजपा की छवि खराब कर रहा है। पश्चिमी और खाड़ी देशों में भाजपा के प्रति नकारात्मक माहौल बन रहा है ! आश्चर्य है कि प्रदेश के नेता एवं संगठन प्रमुख इस बात को भोपाल और धार में बैठकर नहीं समझ पाए, जो प्रधानमंत्री ने दिल्ली में बैठे-बैठे सोच लिया।
यह पढ़ने के बाद बहुत सारे लोगों को लग सकता है कि धार की राजनीति से ‘पठान’ फिल्म की तुलना क्यों हो रही है! इसलिए कि हिंदू मानसिकता को पढ़ने का ये सबसे सही समय है। पार्टी के नेता ‘पठान’ के विरोध के समय ये नहीं समझ सके कि इसका क्या असर होगा! केशरिया रंग और शाहरुख़ खान दोनों का विरोध लोगों के गले नहीं उतरा! यही स्थिति धार की रही, जहां भाजपा के नेता जन मानसिकता को सही टटोल नहीं सके और नतीजा हार के रूप में सामने आया।
भाजपा कई तरह की गलतियां कर रही है। राहुल गांधी की पदयात्रा से उपजी सहानुभूति, राहुल को सोशल मीडिया पर पप्पू बनाकर पेश करने कोशिश और हिंदू मानसिकता को नहीं पढ़ पाना भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी है। इसमें स्थानीय कमजोरी यह कही जा सकती है कि धार के मतदाताओं को भी भाजपा हल्के में ले रही है। जहां तक प्रदेश की बात है भाजपा के सत्ता और संगठन के कद्दावर नेता और उनके समर्थकों के प्रति नकारात्मकता कांग्रेस को उस मुहाने पर खड़ा कर सकती है, जहां उसे जनता सबसे खराब विकल्पों में से बेहतर विकल्प मानकर चुन सकती है।
देखा जाए तो देश और प्रदेश की मानसिकता को भाजपा के दो ही लोग बेहतर समझते हैं। एक है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरा है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। शिवराज राजनीति में मनोरंजन नहीं करते हैं और न मनोरंजन को राजनीतिक नजरिए से देखते हैं। पार्टी के किसी हिंदू अनुषांगिक संगठनों, भाजपा समर्थक संगठनों और बड़े नेताओं द्वारा की गई किसी फिल्मी प्रतिक्रिया का उन्होंने समर्थन किया और न टिप्पणी की। क्योंकि, वे समरस राजनीति के कद्दावर नेता हैं। उनका कद उत्तर भारत के बड़े भाजपा नेताओं में है।
अंत में समझ यही आता है, कि धार के नगर निकाय चुनाव में जो हुआ वह कहीं विधानसभा चुनाव में झाबुआ, अलीराजपुर, खरगोन और बड़वानी में न हो जाए। क्योंकि, आदिवासी समाज में ‘जयस’ नाम का जो अवतार है, वह किसी ‘पठान’ से कम नहीं है। भाजपा को कांग्रेस के साथ आदिवासी बेल्ट में ‘जयस’ सोचने और समझने के लिए मजबूर कर सकता है।