धारा 49 के फेर में मप्र-छग के बीच पेंडुलम बने पेंशनर्स- पेंशनर्स एसोसिएशन के प्रांताध्यक्ष श्याम जोशी

पेंशनर्स डे पर 'मामा' के 'प्रिय भांजे-भांजियों' के 'दादा-दादी' जताएंगे विरोध...

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कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट

Bhopal MP: धारा 49 के नाम पर सरकार ने पेंशनर्स की हालत पेंडुलम की तरह कर दी है, जो दायें-बायें डोलने को मजबूर है लेकिन उसे सम्मान के साथ उसका हक पेंशन भी नसीब नहीं हो पा रही है। आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। पेंशन भी कम मिल रही है, जिससे घर का खर्च चलना भी मुश्किल है और न्यूनतम पेंशन 7775 कर रखी है, जो 12 प्रतिशत डीए मिलाकर 9 हजार भी नहीं होती।

ऐसे बुजुर्ग पेंशनर्स इलाज कराना तो दूर, सब्जी-भाजी भी नहीं खरीद पाते। नमक के साथ रोटी खाकर पेट भरने को मजबूर हैं। पेंशनर्स डे 17 दिसंबर को यह बुजुर्ग पेंशनर्स अपनी मांगों की खातिर बूढ़े हाथों में नारे लिखी तख्तियां और फ्लैक्स लिए नजर आएंगे और नारे लगाएंगे कि ” मांग हमारी पूरी हो, चाहे जो मजबूरी हो।”

यह कहना है पेंशनर्स एसोसिएशन मध्यप्रदेश के प्रांताध्यक्ष 80 वर्षीय श्याम जोशी जी का। उनका कहना है कि पेंशनर्स को सबसे ज्यादा पीड़ा धारा 49 दे रही है। जबसे मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ का बंटवारा हुआ है, तब से जब भी पेंशनर्स को कोई आर्थिक राहत की घोषणा होती है तो उसकी सहमति के लिए छत्तीसगढ़ को पत्र लिखा जाता है। इसके फेर में पेंशनर्स को उनका वाजिब हक मिलने में भी पांच-पांच, छह-छह महीने इंतजार करना पड़ता है।

जैसे सरकार ने दो महीने पहले 8 प्रतिशत डीए की घोषणा की, लेकिन पेंशनर्स को राहत नहीं मिली। सरकारी कर्मचारियों को फिलहाल 20 प्रतिशत डीए मिल रहा है, लेकिन बुजुर्ग पेंशनर्स 12 प्रतिशत डीए पर ही अटके हैं और यह भी पता नहीं है कि सरकार ने सहमति के लिए धारा 49 के तहत छत्तीसगढ़ को चिट्ठी अभी तक भेजी भी है या नहीं। सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि बंटवारा होने वाले अन्य राज्यों में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है, केवल मध्यप्रदेश के पेंशनर्स के गले का घाव बनकर यह धारा 49 रिस-रिसकर दर्द दे रही है।

80 वर्षीय जोशी की पीड़ा है कि सरकार प्रदेश के करीब पांच लाख पेंशनर्स की कोई सुध नहीं ले रही है, जिनके सम्मान का पूरा ख्याल रखने का आदेश सुप्रीम कोर्ट भी कई फैसलों में दे चुका है। केंद्र सरकार से आदेश निकलने के पहले ही आईएएस अफसर अपना आदेश जारी करवा लेते हैं, लेकिन बुजुर्ग पेंशनर्स हक के लिए दर-दर ठोकरें खाने को मजबूर हैं और कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। अब जवान कर्मचारियों की तरह पेंशनर्स में विरोध करने की ताकत तो नहीं है, लेकिन सरकार को प्रदेश की पूरे मन से सेवा करने वाले बुजुर्गों का ख्याल रखना अपनी जिम्मेदारी तो समझनी ही चाहिए।

श्याम जोशी जी का दर्द है कि छठें वेतन आयोग का एक जनवरी 2006 से 31 अगस्त 2008 तक 32 महीने का एरियर्स सरकार ने नहीं दिया। हाईकोर्ट ने आदेश दिया तो सरकार ने रिव्यू पिटीशन दायर कर दी। पेंशनर्स को एक जनवरी 2016 से 31 मार्च 2018 तक का एरियर नहीं मिला। मेडिकल के मामले में पेंशनर्स को सरकार कोई मदद नहीं करती, जबकि केंद्रीय कर्मियों का पूरा ख्याल केंद्र सरकार करती है और हम राज्य के पेंशनर्स के लिए जीरो यानि कुछ भी नहीं। कोरोना काल में भी पेंशनर्स को सरकार की कोई मदद नहीं मिली।

श्याम जोशी का कहना है कि कमलनाथ ने 5 प्रतिशत डीए देने की घोषणा की थी, पर इस सरकार ने नहीं दिया। अलटा पलटी हुई सिंधिया उधर से इधर आए और खामियाजा पेंशनर्स को उठाना पड़ रहा है। सरकार पर 19 प्रतिशत डीए ड्यू हो गया। केंद्रीय पेंशनर्स को 31 प्रतिशत डीए मिलता है और हम अभी भी 12 फीसदी पर अटके हैं। यह हालत तब है जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि सरकार के पास पैसे न हों, तब भी पेंशनर्स का पैसा न रोका जाए।

श्याम जोशी का कहना है कि इस साल पेंशनर्स डे 17 दिसंबर को बुजुर्ग पेंशनर्स सरकार की पेंशनर्स विरोधी नीति के खिलाफ “विरोध दिवस” के रूप में मनाकर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ेंगे, नारे लगाएंगे और दस मांगें पूरी करने की मांग करेंगे। सरकार की पेंशनर्स विरोधी नीतियों के विरोध में प्रदर्शन करेंगे।

सभा करेंगे, सरकार की पेंशनर्स विरोधी नीतियों के खिलाफ भाषण देंगे। मांग हमारी पूरी करो, चाहे जो मजबूरी हो क्योंकि “पेंशनर्स डे” हर साल 17 दिसंबर को इसीलिए मनाया जाता है क्योंकि पेंशनर डीएस नाकरा विरुद्ध भारत शासन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लंबी लड़ाई के बाद नाकरा के पक्ष में 17 दिसंबर 1982 को जस्टिस वायबी चंद्रचूड ने फैसला दिया था कि पेंशनर्स के जीवन स्तर में कमी नहीं होनी चाहिए।

जोशी लंबी सांस लेते हुए कहते हैं कि सरकार इसका पालन नहीं कर रही, इसलिए लाखों पेंशनर्स का जीवन तंगी में गुजर रहा है। यही वजह है कि मामा शिवराज के प्रिय भांजे-भांजियों के दादा-दादी अब विरोध जताने को मजबूर हैं। इससे पहले पेंशनर्स मामा शिवराज से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित सभी जिम्मेदारों को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगा चुके हैं।