
आपबीती: कोरोना काल में निजी स्कूलों में शिक्षकों की विडम्बना ही थी आधा कह कर भी वेतन नहीं मिला !
सपना उपाध्याय शिक्षिका
इंदौर : बात उन दिनों की है जब कोरोना यमराज बनकर हम सब पर मँडरा रहा था। जीवन अनिश्चितता की डोर पर लटका हुआ था और हर ओर दहशत का साया फैल चुका था। इंसान इंसान से डरने लगा था।फिर भी समाज का हर वर्ग अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी ईमानदारी से निभाने की कोशिश कर रहा था—किराने वाला, दूध विक्रेता, चिकित्सक—सभी अपने-अपने दायित्वों को पूरा करने में जुटे थे।इन्हीं के बीच एक वर्ग और था, जो घर पर रहकर भी पूरे समर्पण से देश की भावी पीढ़ी को सँवारने में लगा था। वह वर्ग था—शिक्षक।
कोविड महामारी के कारण शैक्षणिक संस्थान शुरू में अस्थायी और फिर लंबे समय के लिए बंद हो गए, जिससे ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा को अपनाने की आवश्यकता पैदा हुई। ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफार्मों की ओर संक्रमण ने शिक्षकों के लिए अभूतपूर्व चुनौतियाँ पेश कीं।शिक्षकों ने संस्थागत प्रशिक्षण और स्व-शिक्षण उपकरणों की मदद से ऑनलाइन शिक्षण को तेज़ी से अपनाया। दूसरों की तरह कोई शोर-शराबा नहीं, कोई तालियाँ नहीं, कोई सराहना नहीं—बस चुपचाप, प्रतिदिन, लगातार अपना कार्य।
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मैं भी उन दिनों एक शिक्षिका के रूप में अपना कर्तव्य निभा रही थी। हालाकिं स्मार्ट उपकरणों की उपलब्धता की कमी ,पहले जेब से खर्च कर आधुनिक मोबाइल और लेपटाप लिए.एक नयी टेक्नोलोजी सीखी. घर के सभी काम—झाड़ू-पोछा, बर्तन, कपड़े, खाना—सब स्वयं ही करने पड़ते थे। इन्हीं सब के बीच समय निकालकर ऑनलाइन क्लास लेना, सिलेबस पूरा करना, वर्कशीट बनाना, टेस्ट आयोजित करना, मूल्यांकन करना, परिणाम बनाना, अभिभावक मीटिंग लेना, और यहाँ तक कि बच्चों की कॉपियाँ भी ऑनलाइन ही जाँचनी पड़ती थीं।कोविड लॉकडाउन से जुड़ी अनिश्चितता और लंबे कार्य घंटों के कारण शिक्षकों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं तक का सामना करना पड़ा। पर किसीने शिकायत नहीं की क्योंकि परिस्थिति ही कुछ इस तरह की थी वह आपदा का समय था और बच्चों के भविष्य की चिंता भी हमें थी .
उस कठिन परिस्थिति में लगभग हर वर्ग को उसके परिश्रम का प्रतिफल मिला। कई वर्गों ने तो अपने काम का दोगुना-तिगुना लाभ कमाया। ऑनलाइन बाज़ार फला-फूला, नई-नई ऑनलाइन शिक्षण कंपनियाँ रातोंरात खड़ी हो गईं। आईटी कंपनियों में इतनी तेजी आई कि लोगों की तनख्वाह 3–4 गुना तक बढ़ गई। कई लोगों के लिए यह विपत्ति एक अवसर बन गई।
परंतु बात जब शिक्षक की आती है, तो कहानी दर्दनाक मोड़ ले लेती है।स्कूल प्रबंधन ने हमसे कहा—
“अभी 50% वेतन ले लीजिए, विपदा खत्म होते ही पूरा भुगतान कर दिया जाएगा।”
हम भावनाओं में बहकर, बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए, शत-प्रतिशत समर्पण से पूरे वर्ष काम करते रहे।
लेकिन वर्ष के अंत में जवाब मिला—
“पूरा वेतन केवल उन्हीं को दिया जाएगा जो संस्था से सेवानिवृत्त होगें हैं।”हम जिन्होंने मेहनत से काम किया वे ना यश के ना आर्थिक मूल्यांकन के हकदार बन पाए उस अवधी का वेतन आज तक नहीं दिया गया . जबकि सच्चाई यह थी कि कोरोना काल में विद्यार्थियों से पूरी फीस वसूल की गई।
पारिवारिक कारणों से मैंने लगभग चार वर्ष पहले विद्यालय छोड़ दिया, किंतु आज तक—अनेक बार आवेदन देने के बावजूद—मुझे मेरा भुगतान नहीं मिला।मैं और मेरे साथी कोई इनाम नहीं मांग रहे हैं हमें हमारे काम का मेहनताना मांग रहे हैं .इस विषय को प्रशासन ने भी ध्यान नहीं दिया और स्कूल शिक्षा की और शिक्षकों की समस्याओं पर कोई विचार ,विश्लेषण नहीं हुआ .
शिक्षक वह दीपक है जो दूसरों का मार्ग उजागर करते-करते स्वयं पिघल जाता है।लेकिन आज उसी दीपक की लौ को मंद किया जा रहा है।
मेरी आपबीती है यह मेरे जैसे कई लोगों की है और होगी पर किसीने ने ध्यान नहीं दिया . किसी शिकायत का स्वर नहीं, बल्कि एक सच्चाई का आईना है—ताकि समाज समझ सके कि ऑनलाइन पढ़ाने वाली उस मुस्कान के पीछे कितना संघर्ष, कितना त्याग और कितनी अनकही पीड़ा छिपी थी।
यदि कभी हम शिक्षक को केवल कर्तव्य निभाने वाला व्यक्ति न मानकर मानव भी समझें, तो शिक्षक शायद और ज़्यादा शिक्षा का दीपक और उजाला फैलाएगा।आशा है—एक दिन न्याय अवश्य मिलेगा, और शिक्षक के सम्मान की लौ फिर प्रज्वलित होगी।
सपना उपाध्याय,इंदौर




