निरुपमा खरे की कविता -शिउली

439

कविता –

                    शिउली

parijat in puja benefits
शिव के मस्तक पर विराजित,
चंद्र की धवलता,
गौरा के माथे की सिंदूरी आभा
लिए शिउली,
किसी विरहणी के आंसू की तरह,
निशि के अंधकार में
निशब्द झरती शिउली
मानो, अंधेरे में तारों का
श्रृंगार है,
धरा पर गिर कर भी
शिव को स्वीकार है शिउली,
हर का सिंगार,
चांद के ढ़लने के साथ
ढ़ल जाती शिउली,
अनुपम रूप और
अलौकिक महक में रची-बसी,
वैकुंठ से धरा पर,
उतर आई है,
सबको अपने रंग में
रंगती शिउली ।

WhatsApp Image 2024 09 15 at 08.22.23

– निरुपमा खरे,भोपाल 

अशोक के फूल 

Memories: आँगन के नीम जैसा कड़वा गुणकारी प्रेमीला बचपन