Poetry Evening in Denhaag : वैश्विक भाषा, कला एवं संस्कृति संगठन के शुभारंभ पर प्रथम यूरोपीय काव्य संध्या आयोजित

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Poetry Evening in Denhaag : वैश्विक भाषा, कला एवं संस्कृति संगठन के शुभारंभ पर प्रथम यूरोपीय काव्य संध्या आयोजित

“बेल्जियम से कपिल कुमार, जर्मनी से डॉ शिप्रा सक्सेना एवं नीदरलैंड से विश्वास दुबे द्वारा संयुक्त रूप से संयोजित “

जर्मनी से डॉ शिप्रा सक्सेना की विस्तृत रिपोर्ट

वैश्विक भाषा, कला एवं संस्कृति संगठन के भव्य शुभारंभ के अवसर पर प्रथम यूरोपीय काव्य संध्या का आयोजन डेनहेग, नीदरलैंड में संस्था के संस्थापक कपिल कुमार, बेल्जियम, विश्वास दुबे, नीदरलैंड एवं डॉ. शिप्रा शिल्पी सक्सेना, जर्मनी के संयोजन एवं संचालन में किया गया।

इस अवसर पर संस्था के संरक्षको प्रसिद्ध कथाकार एवं साहित्यकार तेजेंद्र शर्मा ने ब्रिटेन से तथा नीदरलैंड की सुविख्यात साहित्यकार एवं कवयित्री प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने कार्यकम में स्वयं उपस्थित होकर अपनी मंगलकामनाएं प्रेषित की।

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कार्यक्रम का शानदार संचालन करते हुए विश्वास दुबे ने अपनी गजलों एवं अपने काव्यात्मक संचालन द्वारा सभी विशिष्ट अतिथियों का मन मोह लिया। जहां एक ओर राकेश पै की रचना “ कोरी किताब के कैनवास पर कोई रंग भरते है” ने भावों के रंग बरसाए, वही इंद्रेश कुमार की रचना “आम सभी को खाना है पर पेड़ नही लगाना है” ने वृक्षारोपण के महत्व को बताया।
सुशांत जैन की ग़ज़ल “कलम की धार तीखी कर तू, दुष्यंत का चेला है”, डॉ सोनी वर्मा के मधुर प्रकृति गीत “रूम झूम रूम झूम बादल बरसे , बिजुरी चमके” ने मौसम बदल दिया।
आलोक शर्मा की की जोशपूर्ण प्रस्तुति “बरसाने होली खेलने आयो कन्हाई, पर राधा न मिल पाई “ ने जहां एक ओर दर्शको को झूमने पर मजबूर कर दिया, वही शिवम जोशी की शानदार ग़ज़ल “इश्क में कौन छोटा कौन बड़ा”, मनीष पांडेय की हास्य का पुट लिए गजल “घर में आते ही सूंघ लेती है, भांप लेती है, बीवी वो मीटर है जो अच्छे अच्छों को नाप लेती है,” महेश वल्लभ पांडेय की ग़ज़ल “इशारे मैं समझ जाता, नजारे तू समझ जाता, तो तेरे साथ मेरी उम्र , मेरा वक्त गुजर जाता”, अश्विनी केगांवकर की खूबसूरत रचना “जिंदगी तू है ख्वाबगाह” एवं “हौसलों की उड़ान तुमसे है”, डॉ ऋतु शर्मा ननन पांडे की जिंदगी से सवाल करती सार्थक कविता “एक दिन जिंदगी से सवाल किया मैने” ने दर्शकों की भावनाओं को उद्वेलित भी किया और हर्षित भी।

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इस अवसर पर साझा संसार के संस्थापक रामा तक्षक ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता संस्कृति के राजदूत “ मैं राजदूत हूं भारत का, मैं पत्थर इसी इमारत का” सुनाकर भव्य कार्यक्रम के आयोजन की शुभकामनाएं दी साथ ही ब्रिटेन की डॉ विद्या सिंह ने अपनी मधु मिश्रित वाणी में “हो गई पगडंडियां सूनी हमारे गांव की, हो गई बेरौनकें गालियां हमारे गांव की“ गाकर सभी को भावुक कर दिया।

कार्यक्रम को अलग रंग देते हुए श्याम पाणिग्रही ने अपनी सुरीली आवाज में “कही दूर जब दिन ढल जाए “ गीत सुनाकर सभी को झूमने पर विवश कर दिया, वही नन्ही अक्षिता पाणिग्रही ने अपनी कविता “एक एक तिनका जोड़ कर चिड़िया अपना घर बनाती है” से सभी के मन को जीत लिया।

विश्वास दुबे जी ने राधा कृष्ण के अनूठे प्रेम को समर्पित अपनी रचना “ क्या राधा ने और श्याम ने एक दूसरे को खुलकर बताया होगा, सुनो प्यार करने लगे है तुमसे क्या ऐसे बोलकर जताया होगा” एवं अपनी पत्नी को समर्पित गज़ल “तुम्हे कितना चाहते है ये जताना पड़ेगा, एक ही बात को बार बार बताना पड़ेगा” सुनाकर दर्शको को मोह लिया।

मोबाइल की आभासी दुनिया से निकलकर वास्तविक दुनिया में जरूरी है आपसी मेल मिलाप। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य रिश्तों को कड़ियों को मजबूत करना भी है कहकर कार्यक्रम के दूसरे भाग का संचालन कर रही डॉ शिप्रा सक्सेना ने मोहक अंदाज में अपने सुप्रसिद्ध गीत “आबे जम जम_” इस काया में क्या रखा है सबने ही मिट्टी माना है, मिट्टी से निर्मित काया को मिट्टी में ही मिल जाना है “ सुनाकर अपनी शानदार प्रस्तुति के लिए दर्शको का भरपूर प्यार एवं तालियां बटोरी।

कार्यक्रम के अंतिम भाग का संचालन कपिल कुमार ने अपनी बेहतरीन गजलों से करते हुए कहा “माना कि झूठ का पर्वत है ऊँचा ,मगर सच मे भी गहराई बहुत है “! हर शेर पर उन्होंने दर्शकों की वाह वाही लूटी।

संस्था की संरक्षक प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने कहा कपिल, शिप्रा एवं विश्वास अद्भुत व्यक्तित्व है, सामर्थ्य बोलता है, उजाला हमारे पास आता नही किंतु उसका ताप हम महसूस कर सकते है, वैसे ही क्षमताओं का एवं प्रेम का ताप इन तीनों के पास है, उस ताप से वशीभूत होकर हम सब इस सारस्वत आयोजन में एकत्र हुए है। उन्होंने कहा कवि किसी का नुकसान नही करता, यही उसके चरित्र की सच्चाई है। इस अवसर पर उन्होंने अनुरोध किया आज विश्व में युद्ध हो रहे है, हिंसा भी। कवियों को अपनी लेखनी की धारदार कर इस विषय पर लिखना होगा। अंत में उन्होंने अपनी कविता आंखों की हिचकियां सुनाई।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि मॉरीशस से वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया कर्मी आशुतोष देशमुख ने सभा को संबोधित करते हुए कहा हिंसा हमारे चारों ओर फैल रही है, ग्लोबल हिंसा को नीचे लाते हुए उन्होंने कहा रिश्तों में भी हिंसा बढ़ रही है। सुनाने वाले ज्यादा है एवं सुनने वाले बहुत कम रह गए है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत से राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय महामंत्री अशोक कुमार बत्रा ने कपिल कुमार, डॉ शिप्रा सक्सेना, विश्वास दुबे की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा विदेशी भूमि पर अपनी भाषा, कला एवं संस्कृति के प्रति ये समर्पण विरले ही देखने को मिलता है, इस उत्सव से जुड़ना गौरव का विषय है। जहां उन्होंने अपने हास्य की कविताओं से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया वही महावीर क्यों महावीर हुए ,” वो आंखो में धूल झोकता, तुम हो आंखे चार किए। वो आंखों में धूल झोंकता , तुम आंखो में प्यार लिए” जैसी अपनी शानदार, भावपूर्ण सार्थक रचनाओं के पाठ से काव्य संध्या को चरम पर पहुंचा दिया।

कार्यक्रम में डॉ शिप्रा शिल्पी, प्रो. पुष्पिता अवस्थी, रामा तक्षक जी, अश्विनी केगांवकर जी की नयी पुस्तकों का विमोचन किया गया ।
साथ ही GLAC द्वारा सभी विशिष्ट अतिथियों को फूल, शाल एवं प्रशस्ति पत्र द्वारा सम्मानित भी किया गया।
कार्यक्रम के अंत में विश्वास दुबे जी ने सभी आमंत्रित अतिथियों एवं संस्थाओं को धन्यवाद ज्ञापन किया।रात्रि भोज पर साहित्यिक चर्चा के साथ एक स्मरणीय संध्या का समापन हुआ।
[ स्रोत GLAC Europe] 

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   शिप्रा शिल्पी सक्सेना
शिक्षाविद, पत्रकार, अनुवादक, लेखक , मीडिया प्रोफेशनल
कोलोन , जर्मनी

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