

हमारी रसोई
Poi Saag: महावर की भाजी-इस साग को खाकर आप लखपति या करोड़पति बन सकते हैं !
लीजिये स्वाद पोई साग वाली दाल/ दर भजिया का, क्योंकि इंसान चाहे जितनी तरक्की कर ले, लेकिन जिंदगी चलेगी तो सिर्फ दाल -रोटी से। लेकिन इस दाल में है पोई की शक्ति…
बड़े बड़े चिकित्सा सलाहकार और वैज्ञानिक भी मानते हैं कि दाल के बिना भोजन अधूरा है। दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं, और इसी प्रोटीन से हमारी कोशिकाएं बनी होती हैं। इसीलिए प्रोटीन को बिल्डिंग ब्लॉक ऑफ दी बॉडी कहते हैं। लेकिन क्या आपको पता है, कि वर्षों से इन दालों की शक्ति बढ़ाने का काम भाजियाँ ही कर रही हैं। जब दालों के साथ भाजी पड़ती है तो इसे दर -भजिया कहते हैं। आज आपको हमारे क्षेत्र में पाई जाने वाली और दालों में पड़ने वाली एक खास भाजी से परिचित कराता हूँ। यह है, पोई मतलब महावर की भाजी। इसका पोई नाम कोमलता के कारण व महावर नाम फलों से निकलने वाले लाल रंग के कारण पड़ा।
इस साग को खाकर आप लखपति या करोड़पति बन सकते हैं। इस साग के बारे में आपको जानकारी नही है तो फिर आपको प्रकृति के विषय मे और अधिक जानने की आवश्यकता है। आजकल सब्जियाँ बहुत महँगी चल रही है तो सब्जियों को लेकर महँगाई का रोना रोने वाले मित्र इस पोस्ट जरूर पढ़ें, थोड़ी राहत मिलेगी।
पोई साग, जिसे मालाबार पालक या पोयसाग भी कहा जाता है, एक पौष्टिक हरी पत्तेदार सब्जी है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में किया जाता है. यह एक सदाबहार लता है जो प्राकृतिक रूप से उगती है और वृक्षों और झाड़ियों का सहारा लेकर ऊपर चढ़ जाती है.पोई के साग में कैल्शियम, आयरन और फाइबर भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें मौजूद मैग्नीशियम और कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करता है। साथ ही इसे खाने से आर्थराइटिस और के दर्द में भी राहत मिलती है।पोई साग में फाइबर की अधिक मात्रा होती है। इससे पाचन शक्ति बढ़ जाती है और मेटाबॉलिज्म मजबूत होता है। पोई खाने से कब्ज दूर होती है और डाइजेशन भी दुरुस्त होता है।
पोई साग की दर भजिया बनाने के लिए दाल को पकाते समय कुकर में ही पोई साग और एक दो टमाटर डाल दें। या फिर उबली हुई दाल को बघारते समय भी इसे काटकर फ्राई कर सकते हैं। यह बहुत जल्दी और आसानी से पक जाती है। अन्य विधि सामान्य दाल बनाने की तरह ही है। इसके अलावा आप इसे सीधे शाक भाजी के रूप में आजमा सकते हैं। स्वाद भी और उपयोग भी दोनो में यह पालक का विकल्प हो सकती है। मैं यहाँ पर बात कर रहा हूँ एक सस्ती सुंदर और टिकाऊ टाइप की वनस्पति की जो बहुत असानी से खेत खलिहान, मेडो पर या गमले पर कहीं भी लग जाती है। इसकी ग्रोथ बहुत तेजी से होती है, खासकर शीत ऋतु में। इसमें कोई खाद डालने की भी अतिरिक्त आवश्यकता नही है।
इसके गुणों की अगर बात करूँ तो आयरन का खजाना है इसमें। वृहद से लेकर सूक्ष्म पोषक तत्व सभी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। विटामिन ए, बी काम्प्लेक्स, विटामिन सी, के आदि के साथ साथ कई एमिनो अम्ल इसमें सहज उपलब्ध हैं। हम सब इसे बेझिझक पसन्द करें, इसके लिए यह मुफ्त में उपलब्ध है और सबसे खास बात यह है कि इसका स्वाद भी लाजबाब होता है। जरा ध्यान से सोचिए कि विटामिन ए की कमी से आंखे कमजोर हो जाएं तो इलाज में कितना खर्च करना पड़ता है?
आयरन की कमी से खून की कमी हो जाती है, सोचिए अस्पताल के कितने चक्कर काटने पड़ते हैं? कैल्शिम की कमी से हड्डियाँ कमजोर हो रही हैं, पैदा होने वाले शिशुओं से लेकर वृद्धवस्था की उम्र तक कम्प्लेन, ईटा- वीटा टाइप के मिलावटी पावडर खा-खाकर पता नही कितने रुपये खर्च कर रहे है? शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए प्रोटीन-एक्स खा रहे हैं, जबकि यह हमारी वनस्पतियों और दालों में प्रचुरता से मिल ही रहा है। और तो और अगड़म भगड़म टाइप के नामो वाले नामचीन व्यंजन खाने महंगे महंगे रेटोरेंट में जा रहे है, जबकि यह सब सीधे सादे स्वरूप में पूर्व से ही हमारे आसपास उपलब्ध है।
जो दिखता है, वो बिकता है के सिद्धांत वाले बाजार न जाने कैसे-कैसे और कहाँ-कहाँ से आपकी जेब ढीली कर रहे हैं। आजकल तो एक नया फंडा आ गया है, जो सबसे हटकर है वो खास और महंगा है, चाहे फिर वो धुआँ या राख ही क्यों न हो। आपके जीवन मे मचने वाले इन सभी तमाशों की कीमत जोड़िये और बताइये कि इस सीधी सादी वनस्पति से अगर आपका शरीर बिना किसी तमाशे के सुरक्षित और स्वास्थ्य रहता है तो फिर हुई ना लाखों या करोड़ो की बचत।
और फिर भी नही मानना है तो फिर बचपन मे पढ़ी कहानी “शरीर की कीमत” को ध्यान करिये। जिसमे शरीर के एक एक अंग की कीमत समझाई गई है। यह वनस्पति एक लता के रूप में किसी सहारे पर चढ़ी होती है। इसका प्रचलित नाम पोई, लाली या malabar spinach है। इसकी दो किस्मे हमारे क्षेत्र में देखने को मिलती हैं। एक है इसका Busella rubra और दूसरी Busella alba दोनो में से किसी का चयन भी आप भोजन के लिए कर सकते हैं। फलों में प्राकृतिक प्राकृतिक रंग पाया जाता है जिसका प्रयोग आप महावर की तरह कर सकते हैं। या फिर किसी अन्य पकवान को रंग देने के लिए भी यह उत्तम विकल्प है।
(टीप: दर भजिया शब्द दाल के साथ कोई भी पत्तेदार साग मिलाकर बनाने के लिये प्रयोग करते हैं)
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिन्दवाड़ा (म.प्र।)
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