Politico Web : मोदी और शाह से शिवराज की सुरमयी लय-ताल बंदी
भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की सुरमयी लय-ताल बंदी आजकल सबसे ज्यादा चर्चा का केंद्र बनी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी के जनजातीय कल्याण मिशन और गृहमंत्री अमित शाह के पुलिस कमिश्नर प्रणाली को मुख्यमंत्री चौहान ने अपना कर जिस उत्साही तरीके से अमली जामा पहनाया है, उस पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री चौहान आजकल पूरी तरह से ‘केंद्रीय नेताद्वय’ के शरणागत हो चुके हैं। उनका फोकस केंद्रीय नेताओं के साथ अपनी ट्यूनिंग बेहतर करने पर है।
बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस शरणागति के क्या कारण हैं। मध्य प्रदेश के लगातार चार बार मुख्यमंत्री बनने के शिवराज सिंह चौहान के दिवास्वप्न में गांधी परिवार के चहेते कमलनाथ ने 2018 दिसंबर में जो पलीता लगाया था, उसकी तपिश आज भी मुख्यमंत्री चौहान को बेचैन कर देती है।
उनकी इस बेचैनी के शमन के लिए उनके निकटस्थ सलाहकारों ने उनमें पांचवी बार मुख्यमंत्री बनने के सुप्त लालसा को एक बार फिर हवा दे दी है। आज की तारीख में मोदी-शाह की जोड़ी की इच्छा के बगैर भाजपा में पत्ता भी नहीं खड़कता है। मुख्यमंत्री चौहान भी जानते व समझते हैं कि इन दोनों को प्रसन्न किए बगैर भाजपा में उनका कोई भी भावी मनोरथ पूरा नहीं हो सकता है। शायद इसीलिए पांचवी पारी के लिए शिवराज सिंह चौहान ने शरणागति की जाजम बिछा दी है।
एक समय भाजपा के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी ने शिवराज सिंह चौहान पर भरोसा जताते हुए उनको पीएम मटीरीयल बता कर खुद के लिए मार्गदर्शक मंडल में सीट रिजर्व करा ली थी। ऐसी परिस्थितियों में शिवराज सिंह चौहान ने अविश्वास की खाई पाट कर केंद्रीय नेतृत्व के साथ जो विश्वास, निकटता व प्रगाढ़ता हासिल की है, वह काबिले तारीफ है।अंदरखाने की खबरों को सही मानें तो इस अघोषित अभियान को कोड नाम दिया गया है M-5th यानी Mission-Fifth जो दिसंबर 2023 में फलीभूत होगा। इस पर भरोसेमंद नौकरशाहों व नेताओं की एक कोर टीम काम कर रही है।
हालांकि मोदी-शाह और चौहान की इस जुगलबंदी को किसी भी एंगल से गलत नहीं कहा जा सकता है। लोकतंत्र में केंद्र और राज्य के मधुरतम संबंधों के दौर में राज्यहित में सर्वाधिक विकास दर देखी जाती रही है।
अब बात करते हैं शरणागति के पहले बिन्दु पर। देश में आदिवासी शोषण के खिलाफ बिगुल बजाने वाले भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को हर वर्ष जनजातीय गौरव दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा कर के भोपाल में भव्य जनजातीय महासम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री मोदी के सपनों को साकार रूप दे दिया। जनजातियों के लिए कुछ ठोस कदम उठाने के बारे में प्रधानमंत्री मोदी की जो परिकल्पना थी उसे मुख्यमंत्री चौहान ने जिस संजीदगी से धरातल पर उतारा है, उससे इस प्रगाढ़ता को और बल मिला है।
बताया जाता है कि मोदी और चौहान की पिछली अनेक मुलाकातों में वार्ता का मुख्य एजेंडा जनजातीय गौरव का मुद्दा ही रहा। मोदी ने इन मुलाकातों के दौरान चौहान के साथ अपने जहन में आ रहे सूक्ष्तम विचारों को शेयर किया ताकि इस आयोजन को गरिमामय भव्यता प्रदान की जा सके। यह कहना गलत नहीं होगा कि मोदी के मस्तिष्क में इस विषय पर जो कुछ चल रहा था, जिन बिन्दुओं पर वे सोच रहे थे, चौहान ने करीने से हर बिन्दु को कुशलतापूर्वक रेखांकित करते हुए जनमानस के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। मोदी को चौहान की यह कार्यशैली बेहद पसंद आई।
मप्र विधानसभा के लिए 2018 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी व जनजातीय वोटों पर सेंध मारकर भाजपा को 5 सीटों से जो नजदीकी पटखनी दी थी, वह टीस आज भी दिल्ली और भोपाल के मन के कोने में दबी पड़ी है। यह पूरा प्रयास उस दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी व पूरी भाजपा ने शिवराज का पूरा साथ दिया है। इस बिन्दु पर सभी एकमत हैं कि आदिवासियों व जनजातियों के साथ अबतक जो अन्याय हुआ है, उसे उनका सम्मान कर समाज में प्रतिस्थापित कर ही किया जा सकता है और भाजपा इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।
आपको मालूम ही है कि लोकसभा की 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं जिनमें सबसे ज्यादा 6 सीटें मप्र से हैं जबकि झारखंड व ओडिसा से 5-5 सीटें हैं। वहीं,मप्र विधानसभा में भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटें पिछली बार की तरह ही अगले चुनाव में भी निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं, इसीलिए सबकी निगाह में हैं।
अब बात करते हैं शरणागति के दूसरे बिन्दु की। रविवार, 21 नवंबर को जब शासन, प्रशासन व नौकरशाही छुट्टी के दिन कुनकुनी धूप का आनंद ले रही थी तो मुख्यमंत्री चौहान ने भोपाल व इंदौर के लिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा कर के सबको चौंका दिया। मुख्यमंत्री के इस फैसले से हर कोई हैरत में था कि आखिर उन्होंने ऐसे वक्त पर लगभग 40 साल से लंबित पुलिस कमिश्नरी का मामला क्यों उठाया।
अफरातफरी में लिए गए इस निर्णय को लेकर शिवराज के मंत्रियों तक में एकराय नहीं थी। सबके अलग अलग सुर निकल रहे थे। पुलिस कमिश्नर प्रणाली भोपाल और इंदौर में कब और कैसे लागू होगी, इसका प्रारूप क्या होगा, नरोत्तम मिश्रा कुछ कह रहे थे और भूपेंद्र सिंह कुछ। इससे साफ पता चल रहा था कि इस जरूरी प्लान के लिए पूरा होमवर्क नहीं किया गया है। आखिर क्या हड़बड़ी थी।
ऊपरी तौर पर लोग मानते हैं कि चौहान ने यह फैसला कर के स्वयं को प्रदेश के उन मुख्यमंत्रियों (सर्वश्री सुंदर लाल पटवा, दिग्विजय सिंह) से आगे कर लिया जो इस प्रस्ताव पर चर्चा व विचार विमर्श तो करते रहे पर इस पर क्रियान्विति की हिम्मत न जुटा सके थे।
अंदरखाने की खबरों के मुताबिक गृहमंत्री अमित शाह पूरे देश में पुलिस सुधार योजना के तहत पुलिस कमिश्नर प्रणाली जल्द से जल्द लागू कराना चाहते हैं।उन्होंने अपनी इस सोच और योजना के बारे में मुख्यमंत्री चौहान से बात की। चौहान ने इस मौके को लपकते हुए शाह की इच्छा के अनुरूप मध्यप्रदेश के दो शहरों भोपाल व इंदौर में तत्काल लागू करने की घोषणा कर डाली। अमित शाह के नजदीकी प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने तो 30 नवंबर तक इस प्रणाली को लागू करने का ऐलान तक कर दिया था।
चूंकि कोई जमीनी तैयारी थी नहीं, होमवर्क जीरो था इसलिए आज भी कागजी घोड़े ही दौड़ रहे हैं। इसके लागू होने में एक और प्रमुख बाधा है आईएएस लाबी का असहयोग।आईएएस अफसर नहीं चाहेंगे कि उनके अधिकारों पर कैंची चले और उनसे जूनियर माने जाने वाले आईपीएस अफसर उनसे ज्यादा ताकतवर साबित हों। आईएएस और आईपीएस की इसी खींचतान के चलते इस प्रणाली का प्रारूप भी तैयार नहीं किया जा सका।
आईएएस एसोसिएशन की इस वर्ष होने वाली एनुअल मीट घोषित तौर पर कोविड-19 के कारण आयोजित नहीं की जा रही है, जबकि वास्तविकता तो यह है कि आईएएस अफसरान अपने पर कतरे जाने का विरोध जताने के लिए इस मीट के आयोजन का विरोध कर रहे हैं।
थोड़ा पीछे जाएं तो पता चलेगा कि मध्यप्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का प्रस्ताव पहली बार कैबिनेट ने 3 जून 1981 को पारित किया था। इसके तहत भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की जानी थी। फिर इसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
27 मार्च 1997 को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार ने इस प्रणाली के अध्ययन के लिए समिति बनाई थी। समिति ने दिल्ली सहित कई बड़े शहरों का दौरा किया था पर कोई फैसला नहीं ले सकी।
फिर इसके बाद वर्ष 2000 में दिग्विजय सिंह सरकार में कमिश्नरी प्रणाली को लेकर एक बार फिर मंथन हुआ। विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किया गया। विधानसभा से प्रस्ताव पारित होने के बाद अनुमोदन के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया लेकिन तत्कालीन राज्यपाल स्वर्गीय भाई महावीर ने इसे स्वीकृति नहीं दी थी।
फिर लंबे अंतराल बाद वर्ष 2012 में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू किए जाने के संबंध में घोषणा की पर ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी। वर्ष 2018 में राजस्व विभाग ने प्रणाली को लेकर प्रस्ताव भी तैयार किया था जिसे कैबिनेट में प्रस्तुत नहीं किया जा सका था।
इस मांग को लेकर मध्य प्रदेश IPS Association के पदाधिकारियों ने 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ से भेंट कर अपनी मांग पर जोर भी दिया था।करीब चार दशक से अटका पुलिस कमिश्नर सिस्टम 2020 में 15 अगस्त को लागू किया जाना था । उस वक्त पर घोषणा किन्हीं अदृश्य कारणों से टाल दी गई थी। पुलिस मुख्यालय कई बार पुलिस कमिश्नर सिस्टम के लिए विभाग को प्रस्ताव भेज चुका है। हालांकि मुख्यमंत्री के इस निर्णय से IAS Lobby में विरोध बढ़ता ही जा रहा है।
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान योजना के अनुरूप पांचवीं बार लक्ष्य भेद कर ‘मध्यप्रदेश के इतिहासपुरुष’ बन पाते हैं या नहीं, इसके लिए अभी हम सबको पूरे दो साल प्रतीक्षा करनी होगी। मुख्यमंत्री चौहान ‘शरणागति’ की अपनी गोटियां सोच समझ कर चल रहे हैं, पर उन्हें उन ‘बाजों’ पर भी निगाह रखनी होगी जो ऐन वक्त पर मुंह से शिकार छपट कर ले जाने में काफी माहिर होते हैं। वैसे भी मप्र ऐसे ‘बाजों’ के मामले में काफी संपन्न प्रदेश है।