Politico Web: शिव-विष्णु की जुगलबंदी से विरोधी पस्त
230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में दिसंबर 2018 में 114 कांग्रेसी विधायकों वाली कमलनाथ सरकार को 15 माह में पछाड़ कर भाजपा की सरकार बनाना और उसे दिन प्रतिदिन मजबूत करना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्य़क्ष विष्णु दत्त शर्मा की जुगलजोड़ी से बेहतर और कोई नहीं कर सकता है।
आपको याद होगा कि 1991 में केंद्र में नरसिंह राव सरकार एक अल्पमत वाली जुगाड़ू सरकार थी लेकिन वह पूरे 5 साल चली और मई 1996 में जब कार्यकाल पूरा हुआ तो वह पूर्ण बहुमत वाली सरकार बन चुकी थी। राजनीति में संख्या बल का बहुत महत्व होता है और जो भी व्यक्ति इस संख्या बल का पार्टी हित में जुगाड़ कर लेता है वही ‘राजनीति का सिकंदर’ माना जाता है। मप्र में 2018 में 109 विधायकों वाली भाजपा को 2021 तक 126 तक पहुंचाने वाली शिव-विष्णु की जोड़ी को भी ‘राजनीति का सिकंदर’ कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
मप्र में शिव-विष्णु का समवेत स्वर में काम करना उन लोगों के लिए जरूर चिंता की बात है जो इंतजार कर रहे थे कि दमोह के बाद यहां भी पार्टी का भट्ठा बैठा तो शिवराज हटाओ मुहिम को एकाएक तेजी मिल जाएगी। पर इस उपचुनावों के परिणामों ने इस जोड़ी के लिए ‘शिलाजीत’ का काम किया है।
यकीन मानिए, इन परिणामों से उत्साहित यह जोड़ी अब राजनीति भी T20 match के अंदाज में करेगी यानी दोनों एंड से आक्रामक बैटिंग देखने को मिलेगी। क्रिकेट में बल्लेबाज जब क्रीज पर थोड़ी देर टिक जाता है तो बाल भी उसे फुटबाल जैसी दिखती है यानी गेंद को देखने, समझने और खेलने में कतई दिक्कत नहीं होती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि काफी समय बाद मध्यप्रदेश में सरकार और पार्टी के बीच ऐसी जुगलबंदी देखी गई जा रही है जब सरकार और पार्टी दोनों एक ही लाइन लेंथ पर काम कर रही है।ऐसा तब ही संभव हो सकता है जब दोनों नेता एक दूसरे को अपने लिए खतरा न मानकर एक दूसरे के लिए पूरक की भूमिका में काम करें।
थोड़ा पीछे जाएं तो पाएंगे कि नवंबर 2018 में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के छह माह पहले खंडवा के तत्कालीन सांसद (अब दिवंगत) नंदकुमार सिंह चौहान की जगह जबलपुर के सांसद राकेश सिंह को मध्य प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई थी। उस वक्त होने वाले उपचुनावों में लगातार भाजपा की हार तथा नंदकुमार सिंह चौहान की विवादास्पद बयानबाजी के चलते उन्हें हटाया गया था।
एक सार्वजनिक बयान में चौहान ने तो यहां तक कहा था कि नेताओं को अपराधियों की मदद करना मजबूरी होती है। एक अन्य बयान में चौहान ने उस वक्त के चर्चित कठुआ दुष्कर्म कांड में पाकिस्तान का हाथ होने की बात कहकर अपना व पार्टी का मखौल उड़वाया था। बड़ी उम्मीदों के साथ जबलपुर के सांसद राकेश सिंह को सामने लाया गया ताकि महाकौशल व विंध्य में भाजपा को फायदा मिल सके। पर ऐसा हुआ नहीं। सांसद राकेश सिंह को भी 2018 के विधानसभा चुनाव में अपेक्षाकृत परिणाम ना लाने की कीमत चुकानी ही थी।
भाजपा की जीत का क्रम जारी न रख पाने, पार्टी से विधायकों की नाराजगी व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ मनमुटाव की खबरों के चलते राकेश सिंह का जाना तो तय हो गया था पर 2019 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी ने थोड़ा इंतजार किया ताकि जनता में यह संदेश न जाए कि पार्टी हारी तो अध्यक्ष बदल दिया।
1 अक्टूबर 1970 को जन्में, खजुराहो संसदीय सीट से पहली बार सांसद बने विष्णु दत्त शर्मा और भाजपा के पुराने खिलाड़ी शिवराज सिंह चौहान की जोड़ी ने पर्दे के पीछे रहते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए प्रदेश स्तर पर भाजपा में मार्ग सुगम बनाया और संघ की सिफारिश पर इसी के प्रतिसाद स्वरूप विष्णुदत्त शर्मा को 15 फरवरी 2020 को भाजपा अध्यक्ष के तौर पर पेश कर फ्रंट में ले आया गया। सत्ता में पुनर्स्थापित करने का जो काम पार्टी अध्यक्ष के तौर पर राकेश सिंह न कर पाए थे, उसे इस जोड़ी ने बाखूबी कर दिखाया।
मप्र में हाल ही में एक लोकसभा सीट व विधानसभा की तीन सीटों के लिए हुए उपचुनावों के परिणामों ने शिव-विष्णु की जुगलबंदी पर मोहर ही लगा दी है।
इस उपचुनाव में कांग्रेस की गढ़ माने जाने वाली दोनों सीटें- पृथ्वीपुर और जोबट पर Micro Level Working कर के उनसे झटकना कोई आसान काम नहीं था। कांग्रेस की सीटें हथियाने के चक्कर में भाजपा रैगांव वाला अपना किला हार गई। पार्टी को मिल रहे नेगेटिव फीडबैक के चलते यहां पर सत्ता संगठन की पूरी ताकत झोंक दी गई थी, लेकिन भाजपा को यहां पर निराशा हाथ लगी।
शिव-विष्णु की जोड़ी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अब आदिवासियों पर फोकस करना शुरू कर दिया है। इस रणनीति के बारे में स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी मानते हैं कि आदिवासी हमसे छिटक रहा था। उल्लेखनीय है कि 2018 के चुनावों में आदिवासी कांग्रेस के पक्ष में गया था और भाजपा को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। पर इन उपचुनावों में भाजपा ने लोकसभा खंडवा की पांच विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। साथ ही जोबट जो कि कांग्रेस का गढ़ रहा, कांतिलाल भूरिया का वर्चस्व वाला क्षेत्र, लेकिन अब भाजपा ने प्रदेश के आदिवासियों का भरोसा जीतने में सफलता हासिल कर ली है।
इस जोड़ी की जुगलबंदी के चलते इन चुनावों में एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि जनता को फिलहाल बढ़ती मंहगाई से कोई सरोकार नहीं है। इन चुनावों में जनता ने उनके क्षेत्र में विकास के वादे और हुए कामों को तवज्जो दी है। इस उपचुनाव में मुख्यमंत्री ने 40 से ज्यादा सभाएं लीं ज्यादातर में वीडी शर्मा भी साथ थे।
इनके नेतृत्व में चुनाव प्रबंधन समिति ने एक एक घंटे की रिपोर्ट ली और उस रिपोर्ट के मुताबिक Micro Level Working की गई और समय रहते कार्ययोजना में जरूरी बदलाव किए गए ताकि मनमाफिक परिणाम मिल सके। उपचुनाव से एक बात स्पष्ट है कि शिवराज के चौथे कार्यकाल में लागू जनोन्मुखी योजनाओं पर जनता ने अपनी संतुष्टि की मुहर लगा दी है।
यह जीत शिवराज और विष्णु की जोड़ी को नई शक्ति मिलने जैसी है। मध्यप्रदेश में भाजपा और उसकी सरकार जो काम कर रही है जो जनोन्मुखी योजनाएं ला रहे हैं उसका जनता तक लाभ पहुंच रहा है, यह बात इस चुनाव से स्पष्ट हो गयी है। प्रदेश भाजपा के नेता भी इन उपचुनावों में मिली जीत को शिवराज-विष्णु की जोड़ी की बढ़ती हुई ताकत का प्रतीक मानते हैं।
इस जोड़ी की सबसे अच्छी व सकारात्मक रणनीति यह रही कि इसने अपने प्रतिद्वंद्वियों का कद छोटा करने की बजाए अपना कद बढ़ाने में शक्ति लगाई। इसी का परिणाम है कि आज ‘मुख्यमंत्री पद’ पाने की लालसा रखने वालों को स्वमेव hibernation में जाना पड़ा। पर खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं है। ऐसे लोगों को एक बार फिर Anti Incumbency Factor बढ़ने या केंद्रीय नेतृत्व की भृकुटि तनने तक ‘मुख्यमंत्री पद’ रूपी मलाई की प्रतीक्षा करनी होगी।
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विष्णु दत्त शर्मा के सारथित्व में मुख्यमंत्री के तौर पर पांचवें कार्यकाल की तैयारी शुरू कर दी है। शिवराज फिर मुख्यमंत्री बन पाएंगे या नहीं यह अभी कहना बहुत जल्दी होगा पर उन्होंने तो अपनी तैयारी शुरू कर दी है। समीकरण न बदले, विरोधी ऐसे ही पस्त रहे और विष्णु का इसी प्रकार साथ मिलता रहा तो ही यह संभव प्रतीत होता है। अबतक का परफार्मेंस देखकर शिव-विष्णु की जोड़ी को मप्र की अबतक की श्रेष्ठ जोड़ी तालमेल वाली जोड़ी कहा जाए तो गलत नहीं होगा।