Politico Web : क्या दमोह की हार का काला टीका मिटा पाएंगे शिव-विष्णु

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ऑपरेशन चाहे छोटा हो या बड़ा ऑपरेशन थिएटर में जाते समय मजबूत से मजबूत व्यक्ति के दिल में भी यह धुकुर धुकुर होती है कि क्या वह सकुशल ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकल पाएगा। बिल्कुल ऐसी ही स्थिति हर चुनाव के पहले होती हैं चाहे वह भले ही उपचुनाव हो। मध्यप्रदेश विधानसभा की 3 सीटों जोबट, पृथ्वीपुर और रैगांव पर तथा खंडवा लोकसभा सीट पर 30 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव को लेकर दोनों प्रमुख पार्टियों में लगभग ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। इसी वर्ष मई में हुए दमोह विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस से आयातित भाजपा प्रत्याशी राहुल सिंह लोधी की हार के बाद भाजपा अब ज्यादा सतर्कता बरत रही है।
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अजय टंडन
दमोह में कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन की 17 हजार से अधिक वोटों से हुई जीत भाजपा को विशेष तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा की जोड़ी को आज भी टीस मारती है। दमोह में मिली हार के बाद मध्यप्रदेश में भाजपा का नेतृत्व करने वाले दोनों नेता एक टीम की तरीके से खेल रहे हैं। 3 विधानसभा तथा एक संसदीय क्षेत्र के एक एक पोलिंग बूथ पर भाजपा कार्यकर्ताओं की निगाह हो, ऐसी रणनीति तैयार की गई है।
इस चुनाव का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि शिवराज सरकार के 20 मंत्री और 72 विधायक को ये चारों उपचुनाव जीतने का असाइनमेंट दिया गया है। जैसा कि पहले होता रहा है कि मंत्री चुनाव क्षेत्र का दौरा करके अपने गृह नगर या राजधानी भोपाल में विश्राम करने आ जाते थे पर अबकी बार उनको वहीं  अपने अलाटेड चुनावी क्षेत्र में रहना होगा और उनको अलाट किए गए बूथों पर भाजपा प्रत्याशी की विजय हो, यह सुनिश्चित भी करना होगा।
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इस बार जीत के लिए इन मंत्रियों पर कितना दबाव है, यह इस घटना से समझा जा सकता है। भाजपा के लिए माहौल बनाने के लिए निकले  शिवराज के ताकतवर मंत्री कुंवर विजय शाह  शनिवार को जल्दबाजी में कह गए, “इस चुनाव में एक भी पोलिंग बूथ से भाजपा न जीते इसकी जिम्मेदारी पार्टी ने मुझे दी है।” वीडियो वायरल होने से हुई किरकिरी के बाद मंत्रीजी को ट्विटर पर स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा।
इसी दौरान उत्साह में उन्होंने अनजाने में ही पार्टी की आंतरिक रणनीति भी उजागर कर दी कि उन्हें 264 पोलिंग बूथों की जिम्मेदारी दी गई है। विजय शाह ने कहा, “मैं दावा करता हूं कि मंधाता विधानसभा, जहां की जिम्मेदारी पार्टी ने मुझे दी है, अगर कांग्रेस यहां से जीत जाए तो जो भी शर्त हो, लगाने के लिए मैं तैयार हूं। जुबान फिसल जाने पर उक्त बात का बतंगड़ बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।”
उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की बूथ वार रणनीति की योजना केंद्रीय स्तर पर तैयार की गई है और उसी को प्रायोगिक तौर पर मध्यप्रदेश के इन उपचुनावों में भी इस्तेमाल किया जाएगा । इसी रणनीति के मद्देनजर 20 मंत्रियों और 72 विधायकों को बूथ वार जिम्मेदारी दी गई है। इस उपचुनाव में  भाजपा की Micro Level Working देखने को मिलेगी।
  मध्यप्रदेश में होने वाले  कुल 4 उपचुनावों को अगर कोरोना उपचुनाव कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यह चारों उपचुनाव कोरोना के कारण ही हो रहे हैं। खंडवा लोकसभा सीट भाजपा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के कोरोना से निधन के कारण रिक्त हुई। इसी तरह पृथ्वीपुर विधानसभा सीट कांग्रेस के पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर, जोबट विधानसभा सीट कांग्रेस की कलावती भूरिया तथा रैगांव विधानसभा सीट भाजपा के जुगल किशोर बागरी के निधन के कारण रिक्त हुई थी।
खंडवा संसदीय सीट 
खंडवा संसदीय चुनाव में बागली को प्रदेश का 53वां जिला बनाने का मुद्दा प्रमुखता से उठाया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 14 जुलाई को देवास के हाटपिपल्या में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी की प्रतिमा का अनावरण करते हुए बागली को प्रदेश का 53वां जिला बनाने की घोषणा तो कर दी थी पर अभी तक उसकी फाइल ज्यादा आगे नहीं बढ़ी है।
उम्मीद की जाती है कि इस चुनाव में इसी को लेकर क्षेत्रीय निवासियों की भावनाओं को भुनाने का प्रयास किया जाएगा और इस सीट पर 6 बार सांसद रहे नंदू भैया के अचानक चले जाने से उपजी सहानुभूति लहर का फायदा उठाने का भी प्रयास किया जाएगा और भाजपा की ओर से सब कुछ योजनानुसार चला तो उनके पुत्र हर्षवर्धन सिंह चौहान को टिकट दिए जाने की फिलहाल सबसे ज्यादा संभावना दिख रही है।
हालांकि पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस टिकट पाने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं, दीपक जोशी भी उनका साथ दे रहे हैं। संघ की तरफ से कृष्ण मुरारी मोघे का नाम भी चल रहा है। कांग्रेस की ओर से 2009 में सांसद रह चुके अरुण  सुभाषचंद्र यादव का नाम 3 अक्तूबर की शाम तक  सबसे आगे दिख रहा था। पर अचानक व्यक्तिगत व पारिवारिक कारणों का हवाला देते हुए अप्रत्याशित रूप से उन्होंने खुद अपना नाम टिकट दावेदारी से वापस ले लिया।
वैसे कांग्रेस खेमे में हुए इस बदलाव से सबसे ज्यादा खुश तो निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा हैं।वे अपनी पत्नी के लिए टिकट का जो सपना देख रहे थे उन्हें वह पूरा होता दिख रहा है।चर्चा तो यह भी है शेरा ने पहले अपनी पत्नी के लिए भाजपा से टिकट मांगा था। टिकट मिल जाता तो वे भी भाजपा का दामन पकड़ लेते।पर ऐसा कुछ हो न सका तो अब कांग्रेस पर जाल फेंका है।राजनीति में जबतक सारे पत्ते खुल नहीं जाते तबतक जाहिरा तौर पर कुछ भी दावा नहीं किया जा सकता है।
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जोबट विधानसभा सीट
जोबट से पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया को कांग्रेस में टिकट का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा है।पर कांतिलाल भूरिया ने किसी योग्य कैंडीडेट को टिकट दिया जाए कहकर जो पांसा फेंका है, वह उनके बेटे के ही पक्ष में गिरने वाला है।जोबट से भाजपा ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन माना जा रहा है कि विक्रांत भूरिया को टिकट की संभावना को देखते हुए पूर्व कांग्रेसी विधायक सुलोचना रावत को कांग्रेस में कोई संभावना नहीं नजर आई तो वे अपने बेटे विशाल रावत के साथ भाजपा में आ गई हैं।
उन्हें उम्मीद है कि भाजपा उनके बेटे विशाल रावत को विधानसभा पहुंचाने में मदद करेगी। सुलोचना और विशाल रावत के भाजपा में आने के साथ ही टिकट मिलने की संभावना व चर्चा को देखते हुए भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं व नेताओं को अच्छा नहीं लगा और इसकी शुरुआत भाजयुमो जिला अध्यक्ष ने कर दी है। भाजयुमो जिला अध्यक्ष अभिजीत डावर ने पूर्व कांग्रेसियों को भाजपा में लेने का विरोध करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
हालांकि अभी बहुत शुरुआती स्थितियां हैं, 8 तारीख तक नामांकन किया जा सकता है और तब तक मान मनौव्वल के दौर चलते रहेंगे। स्थानीय भाजपा नेताओं का मानना है कि  पिछले वर्ष सरकार बनाने के लिए सिंधिया समेत दो दर्जन से ज्यादा कांग्रेसियों को भाजपा में लेना वक्त की जरूरत थी पर आज अपने कार्यकर्ताओं को किनारे कर के कांग्रेस से आए नेताओं को भाजपा टिकट दे तो कोई औचित्य नही दिखता है।
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पृथ्वीपुर विधानसभा सीट 
निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस ने स्वर्गीय बृजेंद्र सिंह राठौर के सुपुत्र नितेंद्र सिंह राठौर को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। स्वर्गीय बृजेंद्र सिंह राठौर और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के बीच काफी अच्छे संबंध थे, और उन्हीं संबंधों के आधार पर नितिन सिंह राठौर को सबसे पहले उम्मीदवार घोषित किया गया है।वैसे भी इस सीट पर कांग्रेस की ओर से कोई और दमदार दावेदारी भी नहीं थी।
पिता के निधन के बाद ही मिले संकेतों के आधार पर नितेंद्र अपने पिता के विधानसभा क्षेत्र में लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं और वे अपने पूरे क्षेत्र का दो बार दौरा कर चुके हैं यानी उनका होमवर्क अच्छा व प्लानिंग सटीक है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि नितेंद्र सिंह अपने अज्ञात भाजपाई प्रतिद्वन्द्वी से काफी आगे चल रहे हैं।भाजपा को यह सीट जीतने के लिए बड़ा उलटफेर करना पड़ेगा जो काफी कठिन दिखता है।
रैगांव विधानसभा सीट
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सतना की रैगांव विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस में मुख्य मुकाबला होता रहा है, परंतु बहुजन समाज पार्टी भी यहां एक बड़ी ताकत मानी जाती है। यह सीट 2013 में बसपा ने जीती थी लेकिन 2018 के चुनाव में बसपा कांग्रेस से पिछड़ कर तीसरे नंबर पर रहे गई थी।
खास बात यह है कि 1993 से लगातार चार विधानसभा चुनावों में बसपा  प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे और तब कांग्रेस का कोई नाम लेवा भी नहीं था। रैगांव विधानसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। अब तक 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं जिनमें से 5 बार भाजपा ने जीत दर्ज की है और दो बार यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है।
1977 में जनता पार्टी, 1990 में जनता दल और 2013 में बसपा ने यह सीट जीती थी। बसपा विधायक रही उषा चौधरी अब कांग्रेस का दामन संभाल चुकी हैं। 2018 के चुनाव में जुगल किशोर बागरी ने कांग्रेस की कल्पना वर्मा को पराजित किया था। विधायक के तौर पर भाजपा के जुगल किशोर बागरी का यह पांचवा कार्यकाल था।

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इसलिए भाजपा जुगल किशोर बागरी के परिवार से किसी को उतारती है तो सहानुभूति लहर का फायदा मिल सकता है।कांग्रेस की ओर से दो महिला नेत्री दावेदार हैं और अंतिम फैसला कमलनाथ को लेना है। विंध्य की इस सीट पर कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह का भी प्रभाव माना जाता है। कांग्रेस में यदि उनकी बात मानी गई तो भाजपा के लिए वे कड़ा संघर्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। भाजपा या कांग्रेस द्वारा कभी भी बसपा को हल्के में लेने की गलती इस सीट का परिणाम बदल सकती है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मध्य प्रदेश में होने वाले यह चारों उपचुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि वे दमोह की हार का काला टीका मिटा सकें और सत्ता परिवर्तन की खीर खाने के लिए इंतजार कर रहे नेताओं को भी करारा जवाब दे सकें। इस टीम का पहला टारगेट यही है कि खंडवा और रैगांव की सीट बरकरार रखें और जोबट और पृथ्वीपुर को कांग्रेस से झटक सकें। यदि छीन न सकें तो कम से कम कड़ा संघर्ष तो प्रस्तुत कर सकें।
कमलनाथ के नेतृत्व में मध्य प्रदेश कांग्रेस पिछले साल सिंधिया टीम के जाने के कारण सत्ता जाने के झटके से अभी पूरी तरह उबर भी नहीं पाई है और दिग्विजय-कमलनाथ में तनातनी का फायदा उठाने की कोशिश में शिव-विष्णु की टीम कोई कसर नहीं छोड़ रही है। ये उपचुनाव भले ही गिनती में चार ही हैं पर शिव-विष्णु टीम की दशा व दिशा तय करने के लिए चुनावी इतिहास में मील का पत्थर होंगे। बड़ा सवाल यही है कि क्या दमोह की हार का काला टीका मिटा पाएंगे शिव-विष्णु?